Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
समाज-क्रांति के पुरोधा थे सुब्बारावजी. - श्रीनारद मीडिया

समाज-क्रांति के पुरोधा थे सुब्बारावजी.

समाज-क्रांति के पुरोधा थे सुब्बारावजी.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

सलेम नानजुंदैया सुब्बाराव यानी सुब्बारावजी, अनेकों के भाईजी अब हमारे बीच में नहीं है, 93 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ा और दिल ने सांस लेना छोड़ दिया, वे हमें जीवन के अन्तिम पलों तक कर्म करते हुए, गाते-बजाते हुए अलविदा कह गये। वे आजादी के सिपाही तो थे ही, लेकिन आजादी के बाद असली आजादी का अर्थ समझाने वाले महानायक एवं महात्मा गांधी के सच्चे प्रतिनिधि थे। उन्होंने गांधी के रहते तो गांधी का साथ दिया ही, लेकिन उनके जाने के बाद गांधी के अधूरे कार्यों को पूरा करने का बीड़ा उठाया। वे पुरुषार्थ की जलती मशाल थे। उनके व्यक्तित्व को एक शब्द में बन्द करना चाहे तो वह है- पौरुष।

सुब्बाराव ने बहुत कुछ किया, लेकिन अपना पहनावा कभी नहीं बदला, हाफ पैंट और शर्ट पहने हंसमुख सुब्बाराव बहुत सर्दी में भले ही पूरी बांह की शर्ट में मिलते थे। अपने अटल विश्वास, अदम्य साहस, निर्भीकता, लेकिन अपने व्यवहार में विनीत व सरल सुब्बाराव इस देश की अमूल्य धरोहर थे, आत्मा थे। महात्मा गांधी के विचारों को आत्मसात करके जीने और उससे समाज को सतत समृद्ध-सम्पन्न करते रहने वाली पीढ़ी के वे एक अप्रतिम व्यक्ति-जुझारू व्यक्तित्व थे।

सुब्बारावजी का निधन एक युग की समाप्ति है। वे गांधीवादी सिद्धांतों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला के प्रतीक पुरुष थे। उनका जीवन सार्वजनिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, गैरराजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने के आदर्श मूल्यों की प्रेरणा था। हो सकता है ऐसे कई व्यक्ति अभी भी विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हों। पर वे रोशनी में नहीं आ पाते। ऐसे व्यक्ति जब भी रोशनी में आते हैं तो जगजाहिर है- शोर उठता है।

सुब्बारावजी ने आठ दशक तक सक्रिय सार्वजनिक गांधीवादी जीवन जिया, उनका जीवन मूल्यों एवं सिद्धान्तों की प्रेरक दास्तान है। वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट सार्वजनिक जीवन में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। रचनात्मक कार्यकर्ता बनाने का कठिन सपना गांधीजी का था, लेकिन सुब्बाराव ने रचनात्मक मानस के युवाओं को जोड़ने का अनूठा काम किया। उनके पास युवकों के साथ काम करने का गजब हूनर था। वे सच्चे सर्वोदयी कार्यकर्ता बन हजारों-लाखों युवकों तक पहुंचे और उनकी भाषा, उनकी संस्कृति, उनकी बोलचाल में उनसे संवाद स्थापित किया।

सुब्बारावजी वैचारिक क्रांति के साथ समाज-क्रांति के पुरोधा थे। उनके क्रांतिकारी जीवन की शुरुआज मात्र 13 साल की उम्र में शुरू हो गयी थी, जब 1942 में गांधीजी ने अंग्रेजी हुकूमत को ‘भारत छोड़ो’ का आदेश दिया था। कर्नाटक के बंगलुरु के एक स्कूल में पढ़ रहे 13 साल के सुब्बाराव को और कुछ नहीं सूझा, तो उन्होंने अपने स्कूल व नगर की दीवारों पर बड़े-बड़े शब्दों में लिखना शुरू कर दिया- ‘क्विट इंडिया- भारत छोड़ो।’ नारा एक ही था, तो सजा भी एक ही थी- जेल। 13 साल के सुब्बाराव जेल भेजे गए। बाद में सरकार ने उम्र देखकर उन्हें रिहा कर दिया, पर हालात देखकर सुब्बाराव ने इस काम से रिहाई नहीं ली। आजादी के संघर्ष में सक्रिय सहभागिता निभाई।

सुब्बारावजी की सोच प्रारंभ से ही अनूठी, लीक से हटकर एवं मौलिक रही। 1969 में गांधी शताब्दी वर्ष को मनाने की भी सुब्बाराव की कल्पना अनूठी थी। वे सरकार के सहयोग से दो रेलगाड़ियां- गांधी-दर्शन ट्रेनों को लेकर समूचे देश में घूमें और गांधी दर्शन को जन-जन का दर्शन बनाने का उपक्रम किया, पूरे साल ये ट्रेनें छोटे-छोटे स्टेशनों पर पहुंचती-रुकती रहीं और स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी, आम लोग इनसे गांधी दर्शन एवं जीवन को देखते-समझते रहे। यह एक महा-अभियान ही था, जिसमें युवाओं से सीधे व जीवंत संपर्क हुआ। अणुव्रत में काम करते हुए मुझे भी गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में उनके सान्निध्य एवं सम्पर्क करने का अवसर मिलता रहा।

मध्य प्रदेश के चंबल के इलाकों में सुब्बाराव ने जो काम किया, वह असंभव सरीका था। सरकार करोड़ों रुपये खर्च करके और भारी पुलिस-बल लगाने के बाद भी कुछ खास हासिल नहीं कर पायी थी। फिर कहीं से कोई लहर उठी और डाकुओं की एक टोली ने संत विनोबा भावे के सम्मुख अपनी बंदूकें रखकर कहा- हम अपने किए का प्रायश्चित करते हैं और नागरिक जीवन में लौटना चाहते हैं! यह डाकुओं का ऐसा समर्पण था, जिसने देश-दुनिया के समाजशास्त्रियों को कुछ नया देखने-समझने पर मजबूर कर दिया। बागी-समर्पण के इस अद्भुत काम में सुब्बाराव की अहम भूमिका रही। यह अहिंसा का एक विलक्षण प्रयोग था।

सुब्बारावजी के महान् एवं ऊर्जस्वल व्यक्तित्व को समाज-सुधारक के सीमित दायरे में बांधना उनके व्यक्तित्व को सीमित करने का प्रयत्न होगा। उन्हें नये समाज का निर्माता कहा जा सकता है। उनके जैसे व्यक्ति विरल एवं अद्वितीय होते हैं। उनका गहन चिन्तन समाज के आधार पर नहीं, वरन् उनके चिन्तन में समाज अपने को खोजता है। उन्होंने साहित्य के माध्यम से स्वस्थ एवं गांधीवादी मूल्यों को स्थापित कर समाज को सजीव एवं शक्तिसम्पन्न बनाने का काम किया। समाज-निर्माण की कितनी नयी-नयी कल्पनायें उनके मस्तिष्क में तरंगित होती रही है, उसी की निष्पत्ति थी चंबल के डाकुओं का समर्पण। चंबल के ही क्षेत्र जौरा में सुब्बाराव का अपना आश्रम था, जो दस्यु समर्पण का एक केंद्र था।

पन्द्रह से अधिक भाषाओं के जानकार सुब्बारावजी बहुआयामी व्यक्तित्व और विविधता में एकता के हिमायती रहे। वे महात्मा गांधी सेवा आश्रम में अपने कार्यों व गतिविधियों के माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए समर्पित रहे। खादी ग्रामोद्योग, वंचित समुदाय के बच्चों विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा, शोषित व वंचित समुदाय के बीच जनजागृति व प्राकृतिक संसाधनों पर वंचितों के अधिकार, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण, युवाओं के विकास में सहभागिता के लिए नेतृत्व विकास, महिला सशक्तिकरण, गरीबों की ताकत से गरीबोन्मुखी नियमों के निर्माण की पहल आदि के माध्यम से समाज में शांति स्थापना करने के लिए वे संकल्पित रहे। उनके जीवन के अनेक आयाम रहे, उनके हर आयाम से आती ताजी हवा के झोंकों से समाज दिशा एवं दृष्टि पाता रहा है। भारत की माटी को प्रणम्य बनाने एवं कालखंड को अमरता प्रदान करने में भाईजी की अहं भूमिका रही।

सुब्बारावजी ऐसे कर्मठ कर्मयौद्धा थे कि अंत समय तक भी काम ही करते रहे। उनके लिए आजादी का मतलब समयानुरूप बदलता रहा। कभी अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति का संघर्ष, तो कभी अंग्रेजीयत की मानसिक गुलामी से आजादी की कवायद। पूज्य विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण ने विचारों की जंग छेड़ी तो सुब्बारावजी उनके साथ में भी मजबूती से डटे रहे। वे आजाद भारत में कभी गरीबों के साथ खड़े होते तो कभी किसानों के साथ। लेकिन उनका विश्वास गांधीवाद में दृढ़ रहा, देश के विकास एवं राष्ट्रीयता की मजबूती के लिये वे प्रयत्नशील रहे।

आजादी के बाद के समय में गांधीवादी व्यक्तियों का अकाल रहा या राजनीति की धरती का बांझपन? पर वास्तविकता है-लोग घुमावदार रास्ते से लोगों के जीवन में आते हैं वरना आसान रास्ता है- दिल तक पहुंचने का। हां, पर उस रास्ते पर नंगे पांव चलना पड़ता है। सुब्बाराव नंगे चले, बहुत चले, अनथक चलते रहे। आजाद भारत के ‘महान सपूतों’ की सूची में कुछ नाम हैं जो अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं। सुब्बारावजी का नाम प्रथम पंक्ति में होगा। सुब्बारावजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता, उन्हें खुदा हाफिज़ भी नहीं कहा जा सकता, उन्हें श्रद्धांजलि भी नहीं दी जा सकती। ऐसे व्यक्ति मरते नहीं। वे हमें अनेक मोड़ों पर नैतिकता का संदेश देते रहेंगे कि घाल-मेल से अलग रहकर भी जीवन जिया जा सकता है। निडरता से, शुद्धता से, स्वाभिमान से।

Leave a Reply

error: Content is protected !!