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सुरेशचन्द्र शुक्ल विदेश में महात्मा गाँधी की पत्रकारिता के संवाहक है - प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा. - श्रीनारद मीडिया

सुरेशचन्द्र शुक्ल विदेश में महात्मा गाँधी की पत्रकारिता के संवाहक है – प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


नार्वे से डिजिटल अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी और कविसम्मेलन में प्रसिद्ध समालोचक और मुख्य अतिथि शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
विदेशों में महात्मा गाँधी की पत्रकारिता के संवाहक हैं। बेशक सुरेशचन्द्र शुक्ल के सामने वे चुनौतियाँ नहीं थी जो महात्मा गाँधी के सामने थीं पर सकैंडिनेवियाई देशों की चुनौतियाँ तो थीं।
सकैंडिनेवियाई संस्कृति, सभ्यता और उनकी जीवन शैली सीखना और उसके साथ संवाद करना और उसके साथ भारतीयों को पत्रकारिता से जोड़ना सुरेशचन्द्र शुक्ल के लिए यह भी दुर्गम पथ था।
इनकी पत्रकारिता दुर्गम पथ पर चलने वाली पत्रकारिता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता की डॉ. वीर सिंह मार्तण्ड ने और संचालन किया सुवर्णा जाधव ने।
डॉ. हरी सिंह पाल, प्रो. विष्णु सरवदे, डॉ. वीर सिंह मार्तण्ड ने विदेशों में हिन्दी की पत्रकारिता में सुरेशचन्द्र शुक्ल को महत्वपूर्ण बताते हुए विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल बताया।

स्पाइल- दर्पण में नागरी लिपि के अंक:
मैं स्पाइल-दर्पण से वर्षों से जुड़ा हूँ। मैंने स्पाइल को निकट से जाना है। नार्वे से निकलने वाली इस पत्रिका की सबसे बड़ी विशेषता है की यह नागरी अंकों का स्तेमाल करती है। इसमें मेरी रचनायें भी छपी हैं।
अमेरिका की पत्रिका सौरभ:
इसके अलावा अमेरिका से निकलने वाली पत्रिका सौरभ अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति अमेरिका की पत्रिका है। न्यूड यार्क के डॉ. विजय मेहता ने मुझे सौरभ का सम्पादक बनाया है।
सुरेशचन्द्र शुक्ल की विदेशों में 40 वर्षों का पत्रकारिता का

हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास 200 वर्ष पुराना है:
अनुभव है परन्तु विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास 200 वर्ष पुराना है।

पश्चिम बंगाल में हिन्दी पत्रिका साहित्य त्रिवेणी:
अहिंदी प्रदेशों में भी पत्रकारिता विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता से मिलती जुलती है। चुनौतियाँ भी शायद मिलती-जुलती हों।
मैंने कम्प्यूटर की शिक्षा प्राप्त करके 2003 से हिन्दी पत्रिका नव साहित्य त्रिवेणी का प्रकाशन शुरू किया था। इन सालों में पत्रिका मेरी अंगुलियों के बीच से गुज़री है। एक-एक शब्द का आत्मसात् करके पत्रिका निकाली है।

लॉकडाउन त्रिवेणी महामारी शुरू होने पर:
कोविड – 19 (कोरोना) महामारी में लॉकडाउन त्रिवेणी के कारण प्रेस बन्द हो गया। पत्रिका बाइंड करने वाले वाले मिलना बन्द हो गये।
तब मैंने इण्टरनेट पर ‘लॉकडाउन त्रिवेणी’ पत्रिका शुरू की जो साप्ताहिक थी। यह सील सील बाद में पाक्षिक होकर और नाम बदल कर ‘नव साहित्य त्रिवेणी’ नाम से पाक्षिक प्रकाशित हो रही है।

40 साल सकैंडिनेवियाई पत्रकृत मील का पत्थर:
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने बताया जब वह 26 जनवरी 1980 को ओस्लो, नार्वे आए थे तब न तो टाइप राइटर था न कोई सामान्य मेज जिसपर लेआउट एवं कंपोज़िग और कट-पेस्ट कर सकें।
किसी हिन्दी सेवी को को सकैंडिनेवियाई साहित्य, समाज, और यहाँ की भाषा का पत्रकारिता के हिसाब से ज्ञान नहीं था।
यहाँ मुझे नार्वेजीय भाषा, साहित्य, मुद्रण कला और पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त की ताकि समाज, देश और अपने भारतीय समाज के मध्य एक सूचनात्मक सेतु बनाया जा सके।
साहित्य और भाषा के लिए लचीली भाषा जिसमें स्थानीय शब्दों के अलावा उसे विस्तार से समझाना ताकि सेतु निर्माण किया जा सके और संवाद में गतिरोध न हो। नार्वे, स्वीडेन और डेनमार्क में समाज के दर्शनशास्त्रीय समझ विकसित की जा सके।
हमने भारतीय केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर, दूतावास, भारतीय पत्रकार-पत्रिकाओं- लेखकों और नार्वे के लेखकों और नार्वे में रहने वाले पहली पीढ़ी के भारतीयों को शिक्षित और उनका मनोरंजन पत्रिका, बैठक और कार्यक्रमों के माध्यम से किया है।
धर्म का पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं:
पत्रकारिता और लेखन में धर्म का कोई सार्वजनिक स्थान नहीं होता, धर्म निजी होता है।
विदेशों में भारतीय भाषाओं के पहले राह दिखाने वालों में महात्मा
महात्मा गाँधी मार्ग दर्शक:
महात्मा गाँधी को विदेशों में पत्रकार मार्गदर्शक मानता हूँ।
उसके पहले पत्रकारिता एक ग्रुप और समाज में निश्चित समाज, समूह के उद्देश्य से बँधी थी।
गुणवत्ता, सत्य, सत्यापन, पारदर्शिता, श्रोत ज़रूरी:
जो लेख और सूचना हो वह भावनात्मक नहीं वरन सत्य हो, उसकी जाँच करके उसे विश्वसनीय पारदर्शिता के साथ मानवीय मूल्यों और समानता के अधिकार की बात करे।

अन्तराष्ट्रीय कवि सम्मेलन:
कवि सम्मेलन की शुरुआत प्रमिला कौशिक ने संगीतबद्ध वाणी वन्दना से की।
अन्तराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भाग लेने वालों में भारत से डॉ. हरनेक सिंह गिल, डॉ. सरिता गुप्ता, प्रमिला और अशोक कौशिक दिल्ली, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद, सुवर्णा जाधव पुणे, डॉ करुणा पाण्डेय और अनुराग अतुल लखनऊ, डॉ. ऋषी कुमार मणि त्रिपाठी खलीलाबाद, डॉ. सुधीर कुमार शर्मा भिलाई थे।
विदेशों से अमेरिका से डॉ. रामबाबू गौतम, नीरजा शुक्ला कनाडा , सुरेश पाण्डेय स्वीडेन, गुरु शर्मा और सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ नार्वे थे।

शुभकामनायें:
भारतीय दूतावास ओस्लो से इन्दर जीत और भारत से केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के डॉ. दिग्विजय सिंह तथा केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय दिल्ली के उप निदेशक डॉ दीपक पाण्डेय, हैदराबाद से प्रो . विष्णु सरवदे, डॉ. शकील अहमद ने शुभकामनायें दीं।

कार्यक्रम जा आयोजन और संचालन:
नार्वे से भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम और स्पाइल-दर्पण पत्रिका ने संयुक्त रूप से किया था जिसका बहुत सुन्दर संचालन किया सुवर्णा जाधव ने।

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