स्वच्छ भारत मिशन से 70 हजार बच्चों का जीवन बचा है-पीएम मोदी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की सफलता रेखांकित करते हुए इस अभियान को लोगों के स्वास्थ्य के लिए बाजी पलटने वाला बताया है। गांधी जयंती के अवसर पर दो अक्टूबर, 2014 को शुरू किए गए इस अभियान को अगले महीने 10 साल पूरे होने वाले हैं।
इसके पहले पीएम ने एक्स पर अपनी एक पोस्ट के जरिये इसका महत्व रेखांकित किया और ब्रिटेन के साप्ताहिक साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छता के इस कार्यक्रम ने बाल और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
एक शोध के अनुसार, भारत की राष्ट्रीय स्वच्छता पहल, स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालयों के निर्माण से हर साल लगभग 60,000-70,000 शिशु मृत्यु को रोकने में मदद मिली है। अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने दो दशकों में 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और 600 से अधिक जिलों को कवर करने वाले सर्वेक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय तक पहुंच में वृद्धि और 2000 से 2020 तक शिशु और बाल मृत्यु दर में कमी के बीच संबंध की जांच की गई। निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि जिला स्तर पर शौचालय तक पहुंच में 10 प्रतिशत अंकों का सुधार शिशु मृत्यु दर में 0.9 अंकों की कमी और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 1.1 अंकों की कमी हुई है।
शौचालय कवरेज का बाल मृत्यु दर पर प्रभाव
ऐतिहासिक रूप से, भारत में शौचालयों तक पहुंच और बाल मृत्यु दर में विपरीत संबंध रहा है। शोधकर्ताओं ने पाया कि किसी जिले में शौचालय कवरेज को 30% या उससे अधिक बढ़ाने से शिशु और बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई। लेखकों ने कहा, ‘पूर्ण संख्या में, यह गुणांक सालाना अनुमानित 60,000-70,000 शिशुओं की जान ले सकता है।’
अध्ययन के परिणाम वैश्विक और दक्षिण एशियाई साक्ष्यों से मेल खाते हैं जो दिखाते हैं कि बेहतर स्वच्छता से बाल मृत्यु दर में 5-30% की कमी आ सकती है। हाल के अध्ययनों में शौचालय की बढ़ती पहुंच के व्यापक लाभों पर भी ध्यान दिया गया है, जैसे कि महिलाओं की सुरक्षा में वृद्धि, कम चिकित्सा व्यय के कारण वित्तीय बचत और समग्र रूप से जीवन की गुणवत्ता में सुधार।
इन लाभों के बावजूद, जाति और धर्म आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं के कारण शौचालयों को अपनाने और उनका उपयोग करने में असमानताएं बनी हुई हैं। लेखकों ने बताया कि स्थानीय अधिकारी कभी-कभी अभियान के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बलपूर्वक उपाय और भेदभाव का सहारा लेते हैं, जिससे व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन होता है, खासकर मैला ढोने वालों और निचली जाति के लोगों के अधिकारों का।
लेखकों ने लिखा, ‘ये प्रथाएं स्वच्छ भारत मिशन के प्रभावी और न्यायसंगत कार्यान्वयन के लिए चुनौतियां पेश करती हैं।’ उन्होंने इन मुद्दों के कारण स्वच्छता-संबंधी व्यवहार परिवर्तन की दीर्घकालिक स्थिरता के बारे में चिंता जताई।
स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति
स्वच्छ भारत मिशन को आधिकारिक तौर पर 2 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओर से लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण घरों में शौचालय उपलब्ध कराकर खुले में शौच को खत्म करना था। जुलाई 2024 तक, नौ वर्षों में ग्रामीण और शहरी भारत में लगभग 12 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने अभियान की प्रगति को स्वीकार किया। 2019 तक, इसने 6.3 लाख गांवों के लगभग 50 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचाया। खुले में शौच से मुक्त गांवों में रहने वाले परिवारों को सालाना 50,000 रुपये तक की बचत हुई, जिससे सदस्यों को लागत से 4.7 गुना अधिक लाभ हुआ।
- यह भी पढ़े………………
- दिल्ली हाईकोर्ट ने विकीपीडिया को जमकर फटकार लगाया
- नए कानून बी0एन0एस0 (भारतीय न्याय संहिता) के तहत सारण में मिली पहली सजा
- अपनी खुशी के लिए आप किसी को जेल में नहीं डाल सकते है-अभिषेक मनु सिंघवी