स्वामी विवेकानंद ने की थी देवभूमि के पहाड़ों में अद्वैत आश्रम बनाने की कल्पना.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
युवाओं के प्रेरणास्रोत, दुनिया में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद का आज जन्म दिवस है। उत्तराखंड की पांच बार यात्रा करने वाले महान संत ने पहाड़ में आश्रम बनाने की कल्पना स्विट्जरलैंड के आल्पस पर्वत के भ्रमण पर की थी। इसकी चर्चा उन्होंने अपने शिष्यों से की।
इसका परिणाम यह रहा है कि चम्पावत के लोहाघाट में अद्वैत आश्रम की स्थापना हुई, जो अब मायावती आश्रम के नाम से देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। लोहाघाट के इस अद्वैत आश्रम के बारे में उन्होंने कहा है, यहां पर वेदांत की सर्वोच्च उपासना यानी ध्यान किया जाएगा। यहां पर किसी तरह की मूर्ति पूजा, धूपबत्ती, आरती व किसी भी तरह की पूजा-अर्चना नहीं की जाएगी।
गोशाला, अस्पताल व झील आज भी आश्रम की शान
अद्वैत आश्रम में 1913 से एक धर्मार्थ अस्पताल संचालित है। जिसमें देश-दुनिया के डाक्टर नि:स्वार्थ भाव से सेवा में जुटे रहते हैं। इस जगह पर एक गोशाला, कृत्रिम झील भी है। स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय लोहाघाट में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. प्रकाश लखेड़ा ने बताया कि इस जगह का वातावरण जैव विविधता से भरा है। विवेकानंद लंदन से जिस प्रेस को लाए थे, वह आज भी यहीं है। इस जगह से प्रबुद्ध पत्रिका का प्रकाशन होता है।
आश्रम में 15 दिन ठहरे थे विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से कैप्टन सेवियर दंपती ने 19 मार्च 1899 को लोहाघाट के मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना की थी। स्वामी जी 29 जनवरी, 1901 को काठगोदाम पहुंचे थे। वहां से 175 किलोमीटर दूर लोहाघाट तक की दुर्गम यात्रा की थी। तब मार्ग में बहुत अधिक बर्फ थी। तीन जनवरी से 19 जनवरी तक आश्रम में ठहरे थे। उनके इस प्रवास के दौरान की स्मृतियां आज भी आश्रम में जीवंत हैं। डा. लखेड़ा बताते हैं, स्वामी विवेकानंद ने अपने शिष्यों से कहा था, सभी प्रकार के अन्य कार्यों को छोड़कर मैं अपना शेष जीवन इसी आश्रम में व्यतीत करना चाहूंगा। यहां पर पूर्णतया एकाग्रचित्त एवं स्थिर होकर अध्ययन करूंगा एवं पुस्तक लिखूंगा।
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