स्वामी विवेकानन्द ने जन्म नहीं, अवतार लिया था!

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“उठो! जागो! जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो तब तक काम करो।”-स्वामी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज के दिन स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ था। हम यों कह सकते हैं कि उन्होंने अवतार लिया था। स्वामी विवेकानन्द एक राष्ट्रभक्त, सुधारक, संत तथा राष्ट्र-नवनिर्माता के रूप में हमारे सामने विद्यमान हैं। स्वामी जी यह जानते थे कि भारत को ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जिनमें आदर्श की भावना ओतप्रोत हो रही हो, जो इन आदर्शों को प्राप्त करने में अपने जीवन तक को न्योछावर करने के लिए तैयार रहें।

स्वामी जी ने भारत के नवयुवकों को देशभक्ति का आदर्श दिया। उन्होंने कहा था- “हमें चाहिए कि हम अगले पचास वर्षों तक केवल इसीकी-मातृभूमि की पूजा करें। हमें चाहिए कि फिलहाल कुछ वर्षों के लिए अपने बाकी देवी-देवताओं को मन-मंदिर से निकाल दें। केवल यही देवता ऐसा है जो जाग रहा है अर्थात हमारी हिन्दू जाति। बाकी सभी देवता सो रहे हैं। हम इन देवताओं की पूजा क्यों करें? हम उस देवता की पूजा क्यों नहीं करते जो हमें चारों ओर दिखाई देता है।”

स्वामी विवेकानंद अपनी मातृभूमि के गौरव की गाथा कहने में कभी नहीं थकते थे। वे हमारे महान राष्ट्र के अनंत इतिहास की चर्चा करते थे। लेकिन यह चर्चा आधुनिक विकास के सन्दर्भ में होती थी। वह जानते थे कि हमारे प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास में हमारे भविष्य के लिए प्रेरणा का स्रोत विद्यमान है। उनका मानना था कि जब तक देश के गरीब, दुःखी, दीन-हीन और दलित नहीं उठेंगे, भारत माता नहीं जागेगी। लाखों स्त्री-पुरुष पवित्रता के जोश से उद्दीप्त होकर ईश्वर के प्रति अटल विश्वास से शक्तिमान बनकर और गरीबों, पतितों एवं पददलितों के प्रति सहानुभूति से सिंह के समान साहसी बनकर इस सम्पूर्ण भारत देश में सर्वत्र उद्धार, सहायता, सामाजिक उत्थान और समानता के सन्देश को कार्यान्वित करते हुए विचरण करेंगे।

जब किसी के अन्दर बैठा हुआ जन्मजात सुधारक जागता है तो रूढ़ियाँ, दोष, सामाजिक कुंठाएँ, कालबाह्य मान्यताएँ उसे बेचैन कर देती हैं। समाज के जीवन-प्रवाह को स्वच्छ बनाने में वह प्रयत्नशील होता है। उसमें कुरीतियों के प्रति चिढ़ उत्पन्न होती है और वह स्वाभाविक रूप से सुधार के कार्य में प्रवृत्त रहता है। इतिहास साक्षी है कि सुधार का कार्य युवा वर्ग ने प्रारंभ किया है। सुधारकों की माला में गुँथे हुए एक पुष्प का नाम स्वामी विवेकानंद का आता है।

रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने ईस्वी सन् १८९३ में शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में जाकर जो व्याख्यान दिए उससे विश्व का प्रबुद्ध वर्ग हिल गया। उस हिन्दू संन्यासी के क्रान्तिकारी विचारों को सुनने के बाद उन्हें भुलाना कठिन था। इस विजय से भारत में आत्मचेतना बढ़ी। पश्चिम की यात्रा के पश्चात् भारत में जो भाषण किये वह उनका नवयुवकों के लिए आह्वान था। धर्म की व्याख्या करने का उनका आशय नवयुवकों को अपने कर्त्तव्य, देश एवं देशवासियों के प्रति सचेत करना था।

स्वामीजी कहते हैं- “उठो! जागो! जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो तब तक काम करो।” ये शब्द कितने ओजपूर्ण और प्रेरणादायक हैं? उन्होंने देश के निर्माण के लिए युवाओं को सदा प्रेरित किया और प्रोत्साहन दिया।

स्वामी विवेकानंद की जयंती पर हम युवा उनके आदर्शों पर चलते हुए राष्ट्र की उन्नति के लिए हरसंभव प्रयास करें और सदाचरण से विश्व में अपनी श्रेष्ठता का उन्नत उदाहरण उपस्थित करें तो ही सच्चे अर्थों में उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि होगी।

 

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