स्वामी जी का सम्पूर्ण जीवन बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व का धनी रहा है।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
“जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं”…. मात्र 39 वर्ष, 5 मास और 23 दिन की अल्पायु में जिन्होंनें चिरसमाधि प्राप्त की। जिन्होंनें इस अत्यल्प काल में ही वर्तमान भारत की एक सुदृढ़ आधारशिला प्रतिष्ठित की। भारतीय इतिहास के इस संकटमय संक्रांतिकाल में, जिस महापुरुष ने धर्म, समाज, शिक्षा और राष्ट्र में समष्टि मुक्ति के महान आदर्श को प्रतिष्ठित किया। जो भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म की चैतन्य, मूर्तिमन्त स्वरुप थे। जिनके मुखमंडल पर तेज, वाणी में ओज और हृदय में जिज्ञासाओं का महासागर विद्यमान था। जो युवाओं के दिलों की धड़कन थे। ऐसे महान व्यक्तित्व का नाम है ‘स्वामी विवेकानंद’
युवाओं की प्रेरणा व दिलों की धड़कन: उम्र महज 39 वर्ष, अपनी मेधा से विश्व को जीतने वाले, युवाओं को अंदर तक झकझोर कर रख देने वाले, अपनी संस्कृति व गौरव का अभिमान विश्व पटल पर स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद की आज पुण्यतिथि है। इस अवसर पर उनके संदेशों व आदर्शों को अपने से प्रारंभ करते हुए,घर-घर पहुँचाने की प्रबल आवश्यकता है।
हिन्दुस्थान नौजवान है, युवाशक्ति से भरा हुआ है। युवा के मन में व आँखों में सपने होते हैं, नेक इरादे होते हैं। मजबूत संकल्प शक्ति होती है, युवा पत्थर पर भी लकीर खींचने का सामर्थ्य रखते हैं। और इन्हीं युवाओं के भरोसे स्वामी विवेकानंद ने आह्वान किया था की मैं मेरी आँखों के सामने भारत माता को पुनः विश्वगुरु के स्थान पर विराजमान होते हुए देख रहा हूँ। ‘ओ मेरे बहादुरों इस सोच को अपने दिल से निकाल दो की तुम कमजोर हो। तुम्हारी आत्मा अमर,पवित्र और सनातन है। तुम केवल एक विषय नहीं हो, तुम केवल एक शरीर मात्र नहीं हो’। यह कथन है लाखों-करोड़ों दिलों की धड़कन व प्रेरणा स्त्रोत स्वामी विवेकानंद का।
धर्म और संस्कृति के महान उन्नायक: विवेकानंद के जीवन को पढ़ने से ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कैसे एक बालक विवेकानंद, योद्धा सन्यासी विवेकानंद के रुप में पूरे विश्व की प्रेरणा बन गया। स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवन बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व का धनी रहा है। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा, भारतीय संस्कृति का सही रुप, व्यापक समाज सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, स्वदेशी का भाव, भारत का भविष्य आदि। भारत को अपने पूर्व गौरव को पुनः प्राप्त व स्थापित करने के लिए, समस्याओं के निदान के लिए स्वामी विवेकानंद के विचारों का अवगाहन करना होगा।
देशोद्धार का संकल्प: अपनी प्रथम विदेश यात्रा से लौटने के बाद भारत की दुर्दशा पर स्वामीजी ने गहन चिंतन किया। उनके अनुसार इसके मुख्य कारण थे अत्यधिक आस्तिकता और शारीरिक कमजोरी। वो अक्सर कहते थे ‘हे भगवान’, ‘हे भगवान’ की रट लगाना और नाक पकड़कर मोक्ष की कामना करना, इसी कारण भारतीयों के मन मरे हुए और कलाईयां सिकुड़ी हुई हैं।
‘होई है सोई जो राम रचि राखा’, इस भाग्यवाद के भरोसे रहकर ही भारतीय बंधुओं ने पराधीनता की बेड़ियों से अपने हाथों को जकड़ रखा है। इसलिए स्वदेश लौटते ही स्वामीजी ने अपने प्रत्येक भाषण में ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ के इस महामंत्र का मजबूती से उद्घोष किया। कर्म की प्रधानता का महत्व बताते हुए, युवाओं को विवेकानंद छाती ठोककर कहते थे, व्यायाम के आगे भगवतगीता का पाठ करना भी बेकार है। व्यायाम कीजिए, खेल खेलिए, फुटबाल को जोर से किक कीजिए, आसमान में गेंद जितनी ऊंचाई पर पहुंचेगी, उतनी ही दूर तक आप आकाशस्थ ईश्वर के पास पहुंचेंगे, गीतापाठ से कभी भी नहीं।
आधुनिक भारत के निर्माता: दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग उनके विचारों से प्रभावित हुए और आज भी उनसे प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं। सी राजगोपालाचारी के अनुसार “स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा की”। सुभाष चन्द्र बोस ने कहा “विवेकानंद आधुनिक भारत के निर्माता है”। महात्मा गाँधी मानते थे कि ‘विवेकानंद ने उनके देशप्रेम को हजार गुना कर दिया । स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक भारत के लिए कीमती और चमकता हीरा साबित किया है। उनके योगदान के लिए उन्हें युगों और पीढ़ियों तक याद किया जायेगा’। जवाहर लाल नेहरु ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लिखा है- “विवेकानंद दबे हुए और उत्साहहीन हिन्दू मानस में एक टानिक बनकर आये और उसके भूतकाल में से उसे आत्मसम्मान व अपनी जड़ों का बोध कराया”।
कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के प्रेरणास्रोत थे, तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह इसलिए कि स्वामीजी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु भारतवासियों के मनों में एक स्वाभिमान का माहौल निर्माण किया। आज के समय में विवेकानंद के मानवतावाद के रास्ते पर चलकर ही भारत एवं विश्व का कल्याण हो सकता है। वे बराबर युवाओं से कहा करते थे कि हमें ऐसे युवकों और युवतियों की जरूरत है जिनके अंदर ब्राह्मणों का तेज तथा क्षत्रियों का वीर्य हो। आज विवेकानंद पुण्यतिथि पर उनके जीवन को पढ़ने के साथ ही उसे गुनने की भी जरूरत है। हम भाग्यवान है कि हमारे पास एक महान विरासत है। तो आईए, उस महान विरासत के गौरव को आधार बना युवा मन के साथ संकल्पबद्ध होकर आगे बढ़े।
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