मार्च में पारा 40 पार,आसमान से बरसेगी ‘आग’
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अप्रैल में ज्यादा दिन चलेगी लू
अक्सर आमतौर पर अप्रैल से जून के महीनों में लगातार 5 से 6 दिन लू चलती है, लेकिन इस बार 10 से 12 दिन लू का असर जारी रहेगा। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हीटवेव के दिनों की संख्या दोगुनी होती है तो 2025 अब तक का सबसे गर्म साल होगा। इन दिनों का तापमान सामान्य से 5 डिग्री या इससे भी ज्यादा रह सकता है।
पहाड़ी इलाकों में भी हीटवेव का असर
मैदानी, पहाड़ी और तटीय इलाकों के लिए हीटवेव की स्थिति तय करने का आधार अलग होता है। किसी दिन हीटवेव का असर तब ज्यादा माना जाता है जब उस दिनों के मौसम का तापमान सामान्य से 5°C ज्यादा होता है.
तटीय इलाका- अधिकतम तापमान 37°C से ऊपर होगा।
मैदानी इलाका- अधिकतम तापमान 40°C से ऊपर हो।
पहाड़ी इलाका- अधिकतम तापमान 30°C से ऊपर हो।
कब होती है हीटवेव?
अगर तापमान सामान्य से 6.5°C या उससे ज्यादा बढ़ जाए तो उसे गंभीर हीटवेव माना जाता है। IMD ने इस साल देश के ज्यादातर हिस्सों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से ज्यादा रहने का अनुमान लगाया है।अकोला, दिल्ली, यूपी, राजस्थान के चितौड़गढ़ और मध्यप्रदेश, यूपी के प्रयागराज में कल पारा 40 डिग्री के पार पहुंच गया है। वहीं इसे और बढ़ने की आशंका है।
2024 क्यों रहा सबसे गर्म साल
- औसत तापमान: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बताया कि 2024 के लिए वार्षिक औसत जमीन सतह वायु तापमान 25.75 डिग्री सेल्सियस था, जो दीर्घकालिक औसत (1991-2020) से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक है और 1901 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे अधिक है।
- न्यूनतम और अधिकतम तापमान: औसत न्यूनतम तापमान 20.24 डिग्री सेल्सियस था, जो सामान्य से 0.90 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जबकि औसत अधिकतम तापमान 31.25 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो सामान्य से 0.20 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
जलवायु परिवर्तन प्रभाव
- हीटवेव: भारत ने इतिहास में अपनी सबसे लंबी हीटवेव का अनुभव किया, जिसमें कई क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस (113 डिग्री फ़ारेनहाइट) से ऊपर चला गया, जिससे पूरे देश में चरम मौसम पैटर्न में योगदान मिला।
- वैश्विक रुझान: भारत में रिकॉर्ड गर्मी जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के व्यापक वैश्विक पैटर्न के अनुरूप है।
- संयुक्त राष्ट्र ने नोट किया कि 2024 वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म वर्ष होने वाला है, जिससे प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ेंगी और दुनिया भर में व्यापक क्षति होगी।