सीवान के सांस्कृतिक इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय रच रहा टेराकोटा प्रदर्शनी!

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डीएम  के निर्देश आंबेडकर भवन में पर जिला प्रशासन द्वारा किया गया आयोजन

दो दिवसीय टेरा कोटा प्रदर्शनी सह प्रशिक्षण शिविर में प्रतिभागियों का उत्साह प्रभावित कर रहा …..

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया :

सीवान  जिला समाहरणालय के समीप स्थित आंबेडकर भवन के संवाद कक्ष में शनिवार को सीवान के सांस्कृतिक इतिहास का एक अन्य स्वर्णिम अध्याय रचा जाता दिखा। सीवान के जिलाधिकारी  मुकुल कुमार गुप्ता के निर्देश पर आयोजित टेराकोटा प्रदर्शनी में उपस्थित छात्र छात्राएं सिर्फ प्रदर्शनी में माटी की कलाकृतियां को देख ही नहीं रहे हैं अपितु भरपूर उत्साह से लैस होकर माटी कला का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं और सुंदर सुंदर मिट्टी की कलाकृतियां भी बना रहे हैं। वहां प्रदर्शनी में लगी माटी की मूर्तियां कलाकारों के कलात्मक कल्पना को दिखा रही है तो सीवान में माटी कला के विकास की अपार संभावनाओं को भी उजागर कर रही हैं। वहां मौजूद युवा अपनी कलात्मक अभिरुचि को जागृत कर ही रहे हैं, साथ ही सीवान के पुरातन कला के धरोहर के संरक्षण का संवेदनशील प्रयास भी होता दिख रहा हैं। कुल मिलाकर टेराकोटा प्रदर्शनी का अद्भुत दृश्य मन को लुभा रहा है।

टेराकोटा सीवान की सांस्कृतिक और कलात्मक पहचान रही है। पटना संग्रहालय में 1910 से संजोई गई माटी की कलाकृतियां सीवान के सांस्कृतिक अध्याय के एक स्वर्णिम अतीत की तस्दीक करती दिखती है। एक जमाने में सीवान में निर्मित सुराही, तश्तरी, गिलास की सुंदर सुंदर माटी की कलाकृतियां शाही दरबारों की रौनक होती थी। यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले यहां के जमींदार या अन्य बड़े लोग जब राज दरबार में जाया करते थे तो बतौर उपहार माटी की कलाकृतियां ले जाया करते थे। लेकिन समय के साथ और आधुनिक तकनीक के दौर में यह टेराकोटा से संबंधित कला विलुप्त होती जा रही है।

टेराकोटा एक अनूठे एवं विशेष प्रकार का चीनी मिट्टी शिल्प है। यह शब्द आमतौर पर मिट्टी से बनी मूर्तियों के लिए उपयोग किया जाता है। टेराकोटा कलाकृतियां बेहद शानदार स्वरुप की होती है। मिट्टी के सुराही, तश्तरी, गिलास और अन्य वर्तन के साथ सुंदर सुंदर आभूषण भी बनाए जाते हैं। सीवान में पाए जानेवाले विशेष प्रकार की मिट्टी कोहरौत की खासियत होती है कि इसे सानने पर यह हाथ में चिपकती नहीं है और इससे सुंदर, मनोहारी माटी की कलाकृतियां बनाई जा सकती है।

सीवान के पुरातन टेरा कोटा कला को संजोने और युवाओं में कलात्मक अभिरुचि को जागृत करने, माटी कला के विकास के माध्यम से रोजगार के अवसर सृजित करने, युवाओं में डिजिटल डिटॉक्स के प्रति रुझान बढ़ाने यानी डिजिटल उपकरणों से दूरी बढ़ाने, बच्चों में सृजनात्मकता के विकास के उद्देश्य से समय समय पर टेरा कोटा प्रदर्शनी का आयोजन बेहद जरूरी है ताकि सीवान में माटीकला के विकास को प्रोत्साहन मिल सके। सीवान में माटी कला के विकास का सिर्फ सांस्कृतिक संदर्भ ही नहीं है अपितु उसका आर्थिक आयाम भी है। शायद इसी तथ्य को संजीदगी से महसूस कर सीवान के बेहद संवेदनशील और ऊर्जावान जिलाधिकारी श्री मुकुल कुमार गुप्ता ने दो दिवसीय टेराकोटा प्रदर्शनी के आयोजन का निर्देश जिला प्रशासन के अधिकारियों को विगत दिवस दिया था। युवा चित्रकार रजनीश मौर्य ने इस प्रदर्शनी के आयोजन में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई। गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व उनके द्वारा एक राज्यस्तरीय टेराकोटा प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया था।

मौके पर मौजूद जिला कला और संस्कृति पदाधिकारी सह जिला खेल पदाधिकारी   ऋचा वर्मा  ने बताया कि बच्चों में कलात्मक अभिरुचि को जागृत करने और प्राचीन माटीकला टेरा कोटा के प्रति लगाव बढ़ाने के लिए डीएम सर के निर्देश पर यह दो दिवसीय टेरा कोटा प्रदर्शनी सह प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया है। मौके पर मौजूद वरीय शिक्षक आशुतोष नंदन ने बताया कि टेरा कोटा प्रदर्शनी में बच्चों का उत्साह देखने लायक है।

इस टेराकोटा प्रदर्शनी के आयोजन के दौरान उपस्थित युवाओं का उत्साह प्रभावित कर रहा था। विद्याभवन महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉक्टर रीता कुमारी जहां चॉक पर माटी की कलाकृतियों को आकार देती दिखीं वहीं वरीय व्याख्याता डॉक्टर पूजा तिवारी और डॉक्टर रीता शर्मा भी अपने महाविद्यालय की छात्राओं के साथ माटी की कलाकृतियां बनाती दिखीं। प्रदर्शनी में रखी गई माटी की कलाकृतियां सिर्फ मन को मोह नहीं रही थी अपितु माटी कला के प्रखर विकास की संभावनाओं को भी उजागर कर रही थीं। निश्चित तौर पर यदि समन्वित प्रयास हो तो सीवान की पुरातन सांस्कृतिक विरासत टेराकोटा को पुराना गौरव हासिल कराना बहुत मुश्किल नहीं है। परंतु यह भी सत्य है कि डीएम साहब के पहल पर आयोजित टेरा कोटा की प्रदर्शनी ने सिवान के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरा अध्याय तो जोड़ ही दिया है।

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