आतंकवाद भारत की सुरक्षा के लिये सबसे गंभीर खतरा बन गया है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पहलगाम हमला, भारत की सुरक्षा और सामाजिक संरचना के लिये आतंकवाद के लगातार खतरे की एक गंभीर याद दिलाता है। वर्ष 2019 के बाद से आतंकवाद विरोधी उपायों में महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, जिसमें कश्मीर में बुनियादी अवसंरचना का विकास और क्षेत्रीय एकीकरण के प्रयास शामिल हैं, ऐसे हमले आतंकवादी रणनीति की बदलती प्रकृति एवं निरंतर सतर्कता की आवश्यकता को दर्शाते हैं। आगे की राह के रूप में भारत को उन्नत खुफिया समन्वय, तकनीकी क्षमताओं और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से अपनी आतंकवाद विरोधी सुरक्षा पहलों को मज़बूत करने की नितांत आवश्यकता है।
आतंकवाद किस प्रकार भारत की आंतरिक सुरक्षा और भू-राजनीतिक हितों को चुनौती दे रहा है?
- सीमा पार आतंकवाद (पाकिस्तान प्रायोजित): भारत को पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद का लगातार खतरा बना रहता है, जहाँ आतंकवादी कश्मीर और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों से घुसपैठ करते हैं। इन समूहों को प्रायः पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों का समर्थन प्राप्त होता है।
- वर्ष 2019 का पुलवामा हमला और हाल ही में हुआ पहलगाम नरसंहार, जिसमें पर्यटकों को उनके धर्म के आधार पर निशाना बनाया गया, इन हमलों की दृढ़ता व क्रूरता को दर्शाता है।
भारत अपने आतंकवाद-रोधी प्रयासों को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- इंटेलिजेंस जानकारी के साझाकरण और एकीकरण को सुदृढ़ करना: भारत को कार्रवाई योग्य सूचना के निर्बाध प्रवाह को बनाने के लिये NIA, IB, RAW एवं राज्य पुलिस बलों जैसी विभिन्न एजेंसियों के बीच खुफिया जानकारी के एकीकरण को और बढ़ाया जाना चाहिये।
- आतंकी समूहों और उनकी गतिविधियों की त्वरित पहचान करने तथा गंभीर परिस्थितियों में प्रतिक्रिया समय को कम करने के लिये शीघ्र हस्तक्षेप करने में सहायता की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने से आतंकवाद विरोधी अभियानों की सटीकता एवं समयबद्धता में और सुधार होगा।
- उन्नत निगरानी और AI-संचालित निगरानी प्रणालियों का कार्यान्वयन: निगरानी के लिये AI-संचालित तकनीकों को अपनाने से भारत के आतंकवाद-रोधी प्रयासों में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
- उन्नत चेहरे की पहचान प्रणाली, पूर्वानुमान विश्लेषण और डेटा माइनिंग टूल की तैनाती से संभावित आतंकवादी खतरों एवं नेटवर्क की पहचान करने में सहायता मिल सकती है, इससे पहले कि वे हमला कर सकें।
- ये प्रौद्योगिकियाँ वित्तीय लेनदेन, संचार और सोशल मीडिया गतिविधि में असामान्य पैटर्न का पता लगाने में सहायता कर सकती हैं जो प्रायः आतंकवादी गतिविधियों से पहले होती हैं।
- स्मार्ट फेंसिंग और ड्रोन के माध्यम से सीमा सुरक्षा में वृद्धि: आतंकवादी समूहों द्वारा सीमा पार से घुसपैठ को रोकने के लिये भारत को संवेदनशील सीमाओं पर ‘स्मार्ट फेंसिंग’ में निवेश करना चाहिये, जिसमें सेंसर, निगरानी कैमरे और मानव रहित हवाई वाहन (UAV) शामिल हों, ताकि एक व्यापक एवं उत्तरदायी निगरानी प्रणाली बनाई जा सके।
- सीमाओं पर गश्त करने और वास्तविक काल में आवागमन को ट्रैक करने के लिये ड्रोन का उपयोग करने से घुसपैठियों के लिये बिना पकड़ में आए सीमा पार करना मुश्किल हो जाएगा।
- यह पहल, जब BSF और अन्य स्थानीय सुरक्षा बलों के बीच बेहतर संचार एवं समन्वय के साथ मिलकर काम करेगी, तो सीमा पार आतंकवाद व तस्करी में काफी कमी आएगी।
- सामुदायिक सहभागिता और कट्टरपंथ विरोधी कार्यक्रम: भारत को ज़मीनी स्तर पर कट्टरपंथ विरोधी मज़बूत रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। स्थानीय समुदायों को शामिल करके, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर एवं पूर्वोत्तर जैसे संघर्ष क्षेत्रों में, अधिकारी विश्वास का निर्माण कर सकते हैं तथा चरमपंथी विचारधाराओं के प्रसार को रोक सकते हैं।
- कमज़ोर युवाओं के लिये शैक्षिक कार्यक्रम, व्यावसायिक प्रशिक्षण और सामाजिक एकीकरण पहलों को लागू करने से संभावित भर्तियों को आतंकवादी समूहों से दूर करने में मदद मिलेगी।
- आतंकवाद से संबंधित कानून को संशोधित और मज़बूत करना: भारत को साइबर आतंकवाद और हाइब्रिड युद्ध जैसे उभरते खतरों का सामना करने के लिये अपने आतंकवाद विरोधी कानूनों को संशोधित करने पर विचार करना चाहिये।
- अकेले हमला करने वाले और स्वतंत्र रूप से काम करने वाले कट्टरपंथी व्यक्तियों जैसे आतंकवाद के नए रूपों से निपटने के लिये UAPA एवं NSA के तहत प्रावधानों को मज़बूत करने से सरकार को अधिक सक्रिय रूप से जवाब देने में मदद मिलेगी।
- व्यापक आतंकवाद-रोधी साइबर सुरक्षा अवसंरचना: चूँकि साइबर युद्ध आधुनिक आतंकवाद का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बन गया है, इसलिये भारत को आतंकवाद से संबंधित साइबर खतरों का मुकाबला करने पर केंद्रित एक विशेष साइबर सुरक्षा प्रभाग स्थापित करना चाहिये।
- इस प्रभाग को महत्त्वपूर्ण अवसंरचना, वित्तीय संस्थानों और संचार प्रणालियों को लक्षित करने वाले साइबर हमलों का पता लगाने तथा उन्हें रोकने के लिये NIA व अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से समुत्थानशक्ति सुनिश्चित करने से डिजिटल आतंकवाद के खिलाफ बेहतर बचाव संभव होगा और महत्त्वपूर्ण डेटा अवसंरचना की सुरक्षा के लिये राष्ट्रव्यापी प्रयास से कमज़ोरियाँ कम होंगी।
- जन जागरूकता और खुफिया जानकारी से प्रेरित नागरिक भागीदारी: जागरूकता अभियानों और सामुदायिक सतर्कता कार्यक्रमों के माध्यम से संभावित क्षेत्रों में आतंकवाद विरोधी प्रयासों में जन भागीदारी को प्रोत्साहित करना बल गुणक के रूप में कार्य कर सकता है।
- नागरिकों को संदिग्ध गतिविधियों की पहचान करने और प्रतिशोध के डर के बिना उनकी रिपोर्ट करने के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये। यह नियमित कार्यशालाओं, मीडिया अभियानों और एक सतर्क समाज बनाने के उद्देश्य से आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से किया जा सकता है।
- इस संबंध में, ग्राम रक्षा गार्ड (जम्मू और कश्मीर में 1990 के दशक के मध्य में शुरू किया गया) को पुनर्जीवित एवं सुदृढ़ करना ज़मीनी स्तर पर सुरक्षा प्रयासों को और मज़बूत कर सकता है।
- आतंकवाद से निपटने के लिये आर्थिक और कूटनीतिक लाभ का उपयोग: भारत को अपनी व्यापक आतंकवाद विरोधी रणनीति के हिस्से के रूप में आर्थिक और कूटनीतिक लाभ के उपयोग का विस्तार करना चाहिये, ऐसे देशों को लक्षित करना चाहिये जो आतंकवादी समूहों को पनाह देते हैं या प्रायोजित करते हैं।
- इसका एक हालिया उदाहरण भारत द्वारा अप्रैल 2025 में पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित करना है, जिसे पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को लगातार समर्थन दिये जाने के प्रत्यक्ष जवाब के रूप में देखा गया था।
- हालाँकि, यह आवश्यक है कि भारत पाकिस्तानी राज्य तंत्र, विशेष रूप से उसके सैन्य-खुफिया प्रतिष्ठान की नीतियों और कार्रवाइयों के प्रति लक्षित एवं आनुपातिक प्रतिक्रिया के रूप में ऐसे उपायों को स्पष्ट करे।
- यह सुनिश्चित करता है कि सरकार और पाकिस्तान के लोगों के बीच अंतर बना रहे, जिससे भारत की सैद्धांतिक शासन कला एवं जिम्मेदार कूटनीति के प्रति प्रतिबद्धता को बल मिले।
पहलगाम हमले से उजागर हुआ आतंकवाद का जारी रहना भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरों की उभरती और बहुआयामी प्रकृति को रेखांकित करता है। भारत को खुफिया सहयोग, तकनीकी सतर्कता और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ाना जारी रखना चाहिये। जैसा कि आतंकवादी उद्देश्यों के लिये नई और उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग का मुकाबला करने पर दिल्ली घोषणा में पुष्टि की गई है, आतंकवादी नेटवर्क को खत्म करने तथा शांति बनाए रखने के लिये शून्य-सहिष्णुता दृष्टिकोण एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अनिवार्य है।
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