सारण निवासी ठाकुर के मुरली ‘लाटू महाराज’ नाम की पुस्तक लिखकर प्रो. (डॉ.) उषा रानी लाटू को अमर कर दिया
पुस्तक पढ़ते समय लाटू महाराज पर मेरे बोध की कुछ पंक्तियां
✍️ राजेश पाण्डेय
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कहते हैं की माताएं केवल पुत्र को ही नहीं जनती, वरन् वह समाज को भी एक नया रूप आकर देती है। इसलिए नारी सृजन है, प्रकृति हैं दृष्टांत है।
आदरणीय प्रो. (डॉ.) उषा रानी ठाकुर के मुरली ‘लाटू महाराज’ नाम की पुस्तक लिखकर लाटू को अमर कर दिया। पुस्तक में आपने जो सारण की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक प्रसंग को रखा है, वह अद्भुत है, सागर में गागर है।
किसी व्यक्ति के विकास में, उसके व्यक्तित्व में उस भौगोलिक और ऐतिहासिक स्थल का विशेष योगदान होता है, इसे चरितार्थ करते हुए महाराज के विकास में सारण की दिव्य और अलौकिकता का आपने जो वर्णन प्रस्तुत किया है वह अकाट्य है, इसी की निर्मिती थे लाटू महाराज।लाटू महाराज के अंतश: में अराध्य के प्रति जो भाव व श्रद्धा थी, वह उन्हें ईश्वरत्व का बोध कराती है।
सारण के लाल लाटू को नमन।
ठाकुर के सोलह शिष्यों में एक शिष्य होने का अहंकार ठाकुर की मुरली लाटू को जाता है, जो काल समय से परे है,दिव्या है, सर्व मंगल है, कालजयी है। काल के गाल में कवलित हो गए एक दलित बालक की कथा को आपने जीवन्तता प्रदान कर उसे अमर कर दिया। आपने अपनी लिखने से यह सिद्ध किया कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान होता है, बीज में ही वृक्ष की कृति छिपी रहती है, जो समय आने पर प्रकट होती है।
सृजन की क्षमता उसे कलम से नहीं वरन् उस कलमकार में है जिन्होंने रकटू राम को ठाकुर के मुरली लाटू महाराज बना दिया है, परंतु इसकी प्रेरणा उस वसुंधरा से पाती हैं जिसे हम एक भूमि का टुकड़ा ‘सारण’ कहते है। परन्तु यह मेरा एक जीवंत अतीत है जिसके गर्भ से अवतरित हुई कई मोतियां समाज में अपनी आभा प्रकट कर रही है, उनमें से ममतामयी के रूप में आप भी एक है।
बहरहाल लाटू महाराज के बारे में पूर्णतः जानकारी के लिए बड़हरिया महमूदपुर सीवान की बेटी प्रो. (डॉ.) उषा वर्मा की पुस्तक ‘ठाकुर के मुरली लाटू महाराज’ को आपको पढ़नी पड़ेगी। डॉ. वर्मा इन दिनों जयप्रकाश विश्वविद्यालय सारण के हिंदी विभाग से सेवानिवृत होकर पंकज सिनेमा के निकट दहियावां छपरा नगर में निवास करती हैं।
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