थैलेसीमिया दिवस- सदर अस्पताल परिसर स्थित रक्त केंद्र में रक्तदान शिविर का हुआ आयोजन:
शादी के समय जन्म कुंडली का मिलान के जैसा ही अनिवार्य रूप से थैलेसीमिया की जांच होनी चाहिए : सिविल सर्जन
थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित शिशुओं के उम्र के अनुपात में वजन एवं लंबाई में आती हैं कमी: डॉ किरण ओझा
रक्त केंद्र में एक हज़ार रखने की क्षमता, लेकिन रहती हैं हमेशा कमी: प्रयोगशाला प्रैवैधिक
श्रीनारद मीडिया, छपरा, (बिहार):
थैलेसीमिया से ग्रसित व्यक्ति के शरीर में रक्ताल्पता या एनीमिया की शिकायत हमेशा रहती है। क्योंकि शरीर का पीलापन, थकावट एवं कमजोरी का एहसास होना इसके मुख्य लक्षण होते हैं। हालांकि समय रहते इसका उपचार नहीं किया गया तो बीटा थैलेसीमिया के मरीज के शरीर में खून के थक्के जमा होने लगता हैं। उक्त बातें रक्त केंद्र की नोडल अधिकारी सह महिला रोग विशेषज्ञ डॉ किरण ओझा ने थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर सदर अस्पताल परिसर स्थित रक्त केंद्र में आयोजित रक्तदान शिविर के दौरान रक्तदान करने आए युवाओं से कही। हालांकि उन्होंने जिलेवासियों से अपील करते हुए कहा कि रक्तदान करने से किसी प्रकार की कोई समस्या नही होती है। बल्कि पुरुष वर्ग को तीन महीने जबकि महिलाओं को प्रत्येक चार महीने के अंतराल पर अनिवार्य रूप से रक्तदान करना चाहिए। ताकि शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वास्थ्य रहने में सक्षम रह सके।
इस अवसर पर रक्त केंद्र की नोडल अधिकारी सह महिला रोग विशेषज्ञ डॉ किरण ओझा, सिफार के क्षेत्रीय कार्यक्रम समन्वयक धर्मेंद्र रस्तोगी, प्रयोगशाला प्रैवैधिक धर्मवीर कुमार, एलटी मनोज कुमार, संजय कुमार, गुड्डू कुमार साह, परामर्शी पूनम कुमारी और अभय कुमार दास, डाटा ऑपरेटर अविनाश कुमार सहित कई कर्मी उपस्थित थे।
शादी के समय जन्म कुंडली का मिलान के जैसा ही अनिवार्य रूप से थैलेसीमिया की जांच होनी चाहिए: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि शादी विवाह के पहले जिस तरह से लड़का लड़की का जन्मकुंडली एवं गुणों का मिलान किया जाता है, ठीक उसी तरह से थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य रूप से करानी चाहिए। ताकि भविष्य में किसी थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित नवजात का जन्म नहीं हो। हालांकि जिनके घरों में थैलेसीमिया बीमारी वाला व्यक्ति पहले से हो तो उनका सबसे पहले जांच कराने की आवश्यकता होती है। लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्तियों को विशेषज्ञ चिकित्सकों से उचित चिकित्सीय परामर्श के बाद उसका उपचार अनिवार्य रूप से करना चाहिए। क्योंकि मरीज के शरीर में रक्ताल्पता के स्तर के अनुसार इलाज किया जाता है। एनीमिया की स्थिति गंभीर होने पर उन्हें खून चढ़ाने की सलाह दी जाती है। ज्यादा गंभीर नहीं होने की स्थिति में मरीज को दवा खाने के लिए सलाह दी जाती एवं अत्यधिक गंभीर स्थिति वाले मरीज को मज्जा प्रतिरोपण (बोन मैरो ट्रांसप्लांट) की सलाह दी जाती है।
थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित शिशुओं के उम्र के अनुपात में वजन एवं लंबाई में आती हैं कमी: डॉ किरण ओझा
रक्त केंद्र की नोडल अधिकारी सह महिला रोग विशेषज्ञ डॉ किरण ओझा ने कहा कि नवजात शिशु जो थैलेसीमिया से ग्रसित होता है उसमें जन्म के उपरांत कुछ महीनों के अंदर ही एनीमिया के लक्षण दिखाई देने लगता है। हालांकि उम्र के अनुपात में शिशु के वजन में वृद्धि नहीं होती है। इसके साथ ही उसकी लंबाई भी कम होती है। उस बच्चे का उपचार जल्द नहीं कराए जाने की स्थिति में नवजात शिशु में कुपोषण की शिकायत प्रबल हो जाती है। लेकिन कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जिन्हें कुछ समय के अंतराल पर खून चढ़ाने की जरूरत होती है। ऐसा लंबे समय तक चलने से मरीज के लिवर, ह्रदय एवं हार्मोन में जटिलताएं होने लगती हैं। क्योंकि थैलेसीमिया मूलतः आनुवांशिक होता है। पति और पत्नी को शिशु के बारे में सोचने के समय पूरा रक्त जांच करानी चाहिए। जिससे आने वाले समय में किसी भी प्रकार की जटिलताओ से आने वाली पीढ़ियों को बचाया जा सके। अगर एनीमिया के लक्षण दिखाई दे तो जल्द चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए।
रक्त केंद्र में एक हज़ार रखने की क्षमता, लेकिन रहती हैं हमेशा कमी: धर्मवीर कुमार
रक्त केंद्र के प्रयोगशाला प्रैवैधिक धर्मवीर कुमार ने बताया कि अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक 2547, अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक 2793, अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक 3215 रक्तदाताओं ने रक्तदान किया है। हालांकि रक्त केंद्र में एक हज़ार रक्त रखने की क्षमता है। गैर सरकारी संस्था, बैंक, सामाजिक कार्यकर्ता या व्यक्तिगत रूप से भी आप सभी रक्तदान कर सकते है। हालांकि निजी रूप से रक्तदान करने के लिए किसी का जन्मदिन, पुण्यतिथि या शादी की वर्षगांठ पर रक्तदान किया जा सकता है। क्योंकि जितना भी रक्त केंद्र में रक्तदान किया जाता है। उतना दूसरे को दे दिया जाता है। जिस कारण हमेशा रक्त केंद्र में रक्त की कमी रहती है। थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर रक्त केंद्र में शाम चार बजे तक 25 रक्तदाताओं जिसमें पैरा मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
थैलेसीमिया से ग्रसित शिशु या व्यक्तियों में इस तरह के प्रारंभिक चरण में नजर आता है लक्षण:
-शरीर एवं आंखों का पीलापन
-पीलिया से ग्रसित होना
-स्वभाव में चिडचिडापन
-भूख न लगना
-थकावट एवं कमजोरी का महसूस होना।
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