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नेताजी का वो ऐतिहासिक भाषण, जिसमें गांधी जी के सम्मान में कही थीं. - श्रीनारद मीडिया

नेताजी का वो ऐतिहासिक भाषण, जिसमें गांधी जी के सम्मान में कही थीं.

नेताजी का वो ऐतिहासिक भाषण, जिसमें गांधी जी के सम्मान में कही थीं.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक संबंधों को लेकर बहुत सारी अटकलें हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से नेताजी उनका सदैव सम्मान करते रहे। पढ़िए छह जुलाई, 1944 का वह ऐतिहासिक भाषण, जब नेताजी ने रंगून रेडियो स्टेशन से गांधी जी को राष्ट्रपिता संबोधित करते हुए उनसे आजाद हिंद फौज के लिए आशीर्वाद मांगा था…।

महात्मा जी,

अब आपका स्वास्थ्य पहले से कुछ बेहतर है और आप फिर से सार्वजनिक काम करने लगे हैं, इसीलिए मैं आपको भारत में रह रहे राष्ट्रभक्त भारतीयों की योजनाओं और गतिविधियों का ब्यौरा देना चाहता हूं। मैं भारत से बाहर रह रहे आपके देशवासियों के आपको लेकर विचार आप तक पहुंचाना चाहता हूं और इस बारे में मैं जो कुछ कह रहा हूं वह सत्य और केवल सत्य है। भारत और भारत के बाहर अनेक भारतीय हैं, जो यह मानते हैं कि संघर्ष के ऐतिहासिक तरीके से ही भारत की स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।

ये लोग ईमानदारी से यह अनुभव करते हैं कि ब्रिटिश सरकार नैतिक दबावों अथवा अहिंसक प्रतिरोध के समक्ष घुटने कभी नहीं टेकेगी। भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों की दृष्टि में आप हमारे देश की अंतर्मन जागृति के जनक हैं और वे आपको इस पद के उपयुक्त सम्मान भी देते हैं। 1941 में भारत छोड़ने के बाद मैंने ब्रिटिश प्रभाव से मुक्त जिन देशों का दौरा किया है,

उन सभी देशों में आपको सर्वोच्च सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है- पिछली शताब्दी में किसी अन्य भारतीय राजनेता को ऐसा सम्मान कभी नहीं मिला। वस्तुत: आपकी और आपकी उपलब्धियों की सराहना उन देशों की तुलना में, जो स्वयं को स्वतंत्र और जनतंत्र का मित्र कहते हैं, उन देशों में हजार गुना ज्यादा है, जो ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध हैं।

अगस्त, 1942 में जब आपने भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित करवाया तो भारत से बाहर बसे राष्ट्रभक्त भारतीयों और भारतीय स्वाधीनता के विदेशी मित्रों की निगाह में आपका सम्मान कहीं अधिक बढ़ गया है।

आज ब्रिटेन विश्वयुद्ध जीतने के लिए भारत का आधिकारिक शोषण करना चाहता है। इस महायुद्ध के दौरान ब्रिटेन ने अपने क्षेत्र का एक हिस्सा दुश्मनों को खो दिया है और दूसरे पर उसके दोस्तों ने कब्जा कर लिया है। यदि मित्र राष्ट्र कभी जीत भी गए तो भविष्य में ब्रिटेन नहीं, अमेरिका शीर्ष पर होगा और इसका मतलब यह होगा कि ब्रिटेन अमेरिका का आश्रित देश बन जाएगा। ऐसी स्थिति में ब्रिटेन में अपने वर्तमान नुकसान की भरपाई के लिए पूरी तैयारी हो रही है। यह जानकारी मुझे गोपनीय और विश्वस्त सूत्रों से मिली है और मैं यह अपना कर्तव्य समझता हूं कि आपको इसके बारे में सूचित करूं।

देश में या विदेश में, ऐसा कोई भी भारतीय नहीं होगा जिसे प्रसन्नता नहीं होगी- यदि आपके बताए रास्तों से, बिना खून बहाए, भारत को स्वतंत्रता मिल जाए, लेकिन स्थितियों को देखते हुए मेरी यह निश्चित धारणा बन गई है कि यदि हम स्वतंत्रता चाहते हैं तो हमें खून की नदियां पार करनी होंगी। यदि स्थिति हमें भारत के भीतर ही सशस्त्र संघर्ष संगठित करने की सुविधाएं देती तो यह हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग होता,

लेकिन महात्मा जी, आप अन्य किसी की अपेक्षा भारत की स्थितियों को शायद बेहतर समझते हैं। जहां तक मेरा संबंध है, भारत में 20 साल तक सार्वजनिक जीवन में रहने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि भारत के बाहर बसे भारतीयों और कुछ विदेशी शक्तियों की मदद के बिना भारत में संघर्ष करना असंभव है।

इस युद्ध से पहले विदेशी शक्तियों की मदद लेना बहुत मुश्किल था और न ही विदेशों में बसे भारतीयों से पर्याप्त मदद ली जा सकती थी, लेकिन युद्ध ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधियों से राजनैतिक और सैन्य सहायता प्राप्त करने की संभावना को बढ़ा दिया है, लेकिन उनसे किसी प्रकार की मदद की अपेक्षा करने से पहले मेरे लिए यह जानना जरूरी था कि भारत की स्वतंत्रता की मांग के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या है?

यही जानने के लिए मैंने भारत छोड़ना जरूरी समझा था, लेकिन यह निर्णय लेने से पहले मेरे लिए यह तय करना भी जरूरी था कि विदेशी मदद लेना सही होगा भी या नहीं। महात्मा जी, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि महीनों के विचार मंथन के बाद मैंने इस मुश्किल रास्ते पर चलना स्वीकार किया था।

यदि मुझे इस बात की जरा भी उम्मीद होती कि बाहर से कार्रवाई के बिना हम स्वतंत्रता पा सकते हैं तो मैं इस तरह भारत नहीं छोड़ता। अनेक कठिनाइयों के बावजूद अब तक मेरी सारी योजनाएं सफल हुई हैं। देश से बाहर मेरा पहला काम अपने देशवासियों को संगठित करना था और मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि वे सब भारत को स्वतंत्र कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

इसके बाद मैंने उन सरकारों से संपर्क किया, जो हमारे दुश्मनों के साथ युद्ध कर रही हैं और मैंने पाया कि सारे ब्रिटिश प्रचार के विपरीत, धुरी राष्ट्र भारत की स्वाधीनता के समर्थक हैं और वे हमारी मदद करने के लिए तैयार हैं।

मैं जानता हूं कि हमारा शत्रु मेरे खिलाफ प्रचार कर रहा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि मुझे अच्छी तरह जानने वाले मेरे देशवासी इस कुप्रचार के झांसे में नहीं आएंगे। राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए मैं जिंदगीभर लड़ता रहा हूं और इसे किसी विदेशी ताकत को सौंपने वाला मैं अंतिम व्यक्ति होऊंगा। दूसरे, मेरे देशवासियों ने मुझे वह सबसे बड़ा सम्मान दिया है, जो किसी भारतीय को मिल सकता है। इसके बाद किसी विदेशी ताकत से कुछ पाने के लिए मुझे रह भी क्या जाता है?

महात्मा जी, अब मैं अपनी अस्थायी सरकार के बारे में कुछ कहना चाहता हूं। जापान, जर्मनी और सात अन्य मित्र देश शक्तियों ने आजाद हिंद की अस्थायी सरकार को मान्यता दे दी है और इससे सारी दुनिया में भारतीयों का सम्मान बढ़ा है। इस अस्थायी सरकार का एक ही लक्ष्य है- सशस्त्र संघर्ष करके अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्त कराना। एक बार दुश्मनों के भारत छोड़ने और व्यवस्था स्थापित होने के बाद अस्थायी सरकार का काम पूरा हो जाएगा। तब भारत के लोग स्वयं तय करेंगे कि उन्हें कैसी सरकार चाहिए और कौन उस सरकार को चलाएगा!

यदि हमारे देशवासी अपने ही प्रयासों से अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो जाते हैं अथवा यदि ब्रिटिश सरकार हमारे भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो हमसे अधिक प्रसन्नता किसी और को नहीं होगी, लेकिन हम यह मानकर चल रहे है कि इन दोनों में से कोई भी संभव नहीं है और सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य है। भारत की स्वतंत्रता का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका है।

आजार्द ंहद फौज के सैनिक भारत की भूमि पर बहादुरी से लड़ रहे हैं और इस तरह की कठिनाई के बावजूद धीरे-धीरे किंतु दृढ़ता के साथ। जब तक आखिरी ब्रिटिश भारत से बाहर फेंक नहीं दिया जाता और जब तक नई दिल्ली के वायसराय हाउस पर हमारा तिरंगा शान से नहीं लहराता, यह लड़ाई जारी रहेगी।

हमारे राष्ट्रपिता! भारत की आजादी की इस पवित्र लड़ाई में हम आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना कर रहे हैं।

जय हिंद!

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