9/11 की 20वीं बरसी: क्या मेहनत पर फिर गया पानी?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जैसे अच्छा आतंकवाद या बुरा आतंकवाद नहीं होता वैसे ही अच्छे तालिबान या बुरे तालिबान की बात कहना या सोचना गलत है। अफगानिस्तान में जो नई सरकार बनी है वह आतंकवादियों की, आतंकवादियों के द्वारा और आतंकवादियों के लिए सरकार है। देखा जाये तो अफगानिस्तान में आज जो हालात हैं उसके लिए सीधे-सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन जिम्मेदार हैं। आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी अभियानों को जो पलीता बाइडन ने लगाया है उसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
अमेरिका के पहले के राष्ट्रपतियों ने भले दुनिया से आतंकवाद खत्म करने, खासकर अमेरिका की ओर बुरी नजर उठाने वालों को पूरी तरह से बर्बाद करने का ऑपरेशन सफलतापूर्वक चलाया हो लेकिन बाइडन ने सत्ता में आते ही सबकी मेहनत पर पानी फेर दिया। यह बाइडन के गलत फैसलों का ही परिणाम है कि आज अफगानिस्तान की नई सरकार के प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री तक वो लोग बने हैं जोकि संयुक्त राष्ट्र की ओर से आतंकवादी घोषित किये जा चुके हैं।
अमेरिका पर आतंकी हमलों का खतरा बढ़
बाइडन की गलत नीतियों का विरोध अफगानिस्तान सहित दुनिया के अन्य देशों में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी हो रहा है। अमेरिकी सांसदों समेत आम जनता प्रदर्शन कर रही है और बाइडन से पद छोड़ने की माँग कर रही है क्योंकि उनके गलत फैसलों के चलते अमेरिका पर और दुनिया भर में फैले अमेरिकी नागरिकों पर आतंकवादी हमलों का खतरा बढ़ गया है। इन प्रदर्शनकारियों को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भले नासमझ बता रहे हों लेकिन आइये इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हुए यह जानने का प्रयास करते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपने पूर्ववर्तियों के मुकाबले राष्ट्रपति बाइडन कहाँ ठहरते हैं।
बुश ने आतंकवादियों के मन में खौफ बिठा दिया था
सबसे पहले बात करते हैं आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई की शुरुआत की। देखा जाये तो 9/11 के आतंकवादी हमले से पहले अमेरिका को आतंकवाद के दर्द का अहसास नहीं था बल्कि अमेरिका खुद महाशक्ति बने रहने के लिए दूसरे देशों के खिलाफ आतंकवादी संगठनों की अप्रत्यक्ष रूप से मदद करता था। कौन नहीं जानता कि तालिबान भी अमेरिकी शह पर बना संगठन है। अमेरिका ने अपने हथियार बेचने के लिए दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में शक्ति के असंतुलन को बढ़ावा दिया। 11 सितम्बर 2001 को हुए आतंकवादी हमले ने अमेरिका का बुरी तरह दहलाया ही नहीं था बल्कि आतंकवादियों ने घर में घुसकर अमेरिका पर हमला करके उसकी शक्ति को भी चुनौती दी थी।
उस हमले में तीन हजार लोगों की मौत हो गयी थी। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इस हमले का तगड़ा जवाब देने का निश्चय किया था। जिसके बाद 9/11 के हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादी संगठन अल कायदा की ईंट से ईंट बजाने और उसके सरगना ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के लिए अमेरिकी फौजें निकल पड़ीं थीं। उस समय ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में रहता था। उस समय भी अफगानिस्तान में तालिबान का ही राज था और तालिबान सरकार ने ओसामा को अमेरिका को सौंपने से साफ इंकार कर दिया था।
ऐसे में अमेरिकी फौजों ने अपने नाटो सहयोगियों को साथ लेकर अफगानिस्तान में हवाई हमले शुरू कर दिये और देखते ही देखते तालिबान शासन को समाप्त कर दिया। लेकिन ओसामा अमेरिका के हाथ नहीं आया क्योंकि पाकिस्तानी फौज उसे अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाल कर एबटाबाद में पनाह दे चुकी थी। इस तरह बुश अपने कार्यकाल में ओसामा को तो नहीं ढूँढ़ पाये लेकिन उन्होंने दुनियाभर में आतंकवादियों के मन में खौफ बिठा दिया था। जहां भी अल कायदा की उपस्थिति होती थी बुश उसे नेस्तनाबूद करने में जुट जाते थे।
सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंका था
बुश को खबर लगी कि इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति और तानाशाह सद्दाम हुसैन के पास बड़े पैमाने पर तबाही फैलाने वाले हथियार हैं और उनका उपयोग अमेरिका के खिलाफ हो सकता है। बुश को यह भी पता चला कि 9/11 के हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों से भी सद्दाम मिले हुए थे। बस फिर क्या था, अमेरिकी फौजें इराक में दाखिल हो गयीं और भीषण लड़ाई के बाद सद्दाम के शासन को उखाड़ फेंका और तरह-तरह के भेष बदल कर चकमा देने में माहिर तथा अपने आप को अजर अमर समझने वाले सद्दाम हुसैन को ढूँढ़ निकाला। सद्दाम हुसैन पर तमाम आरोपों के तहत मुकदमा चलाया गया और फिर आखिरकार फांसी पर चढ़ा दिया गया।
ओसामा और गद्दाफी का ओबामा ने अंत करवाया
बुश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को जहां छोड़ कर गये थे उसे तेजी से आगे बढ़ाते हुए अगले राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वह कर दिखाया जिसकी आतंकवादियों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। पाकिस्तान में एबटाबाद के सुरक्षित ठिकाने पर परिवार के साथ मौजूद अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी सरगना ओसामा बिन लादेन को उसके घर में घुसकर अमेरिकी फौजों ने ठोक डाला। खास बात यह रही कि अमेरिका के तब खास साझेदार रहे पाकिस्तान को इस बात की भनक बाद में लगी थी कि लादेन को अमेरिका ने मार गिराया है।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी, वहां की सेना, पुलिस और सरकार सब हक्के-बकके रह गये थे क्योंकि पूरी दुनिया के सामने यह बात आ गयी थी कि अगर इस धरती पर आतंकवादियों के लिए कोई सुरक्षित पनाह है तो वह पाकिस्तान ही है। बराक ओबामा ने अपनी पुस्तक ‘ए प्रोमिज्ड लैंड’ (A Promised Land) में कहा भी है कि यह कोई राज की बात नहीं है कि पाकिस्तान सेना, खासतौर से उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के तालिबान और अल कायदा से संबंध थे। बराक ओबामा की सरकार ने सिर्फ ओबामा को नहीं मारा बल्कि लीबिया से कर्नल गद्दाफी की सत्ता को हटाकर भी आतंकवाद की कमर तोड़ी थी।
42 साल तक लीबिया पर राज करने वाला तानाशाह कर्नल गद्दाफी जिस तरह मारा गया वह घटना दुनियाभर में मिसाल बनी। अंत समय में गद्दाफी जिस तरह अपने जीवन की भीख मांग रहा था और गोली नहीं मारने की गुजारिश कर रहा था, उसने खासकर अरब की निरंकुश सरकारों को एक सख्त संदेश दिया था कि लोकतंत्र को ज्यादा समय तक इंतजार नहीं कराया जा सकता। इसके अलावा भी ओबामा ने दुनिया से आतंकवाद के खात्मे के लिए काफी प्रयास किये और अमेरिका के सख्त रुख को बरकरार रखा।
डोनाल्ड ट्रंप आतंकवादियों को कभी माफ नहीं करते थे
बराक ओबामा के बाद राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप ने भी आतंकवाद के खिलाफ किसी तरह का समझौता नहीं किया। ट्रंप ने वैसे तो आतंकवाद के खिलाफ कई अभियान चलाये लेकिन उन्होंने सबसे बड़ा काम यह किया कि पाकिस्तान को मिलने वाली अरबों डॉलर की अमेरिकी मदद को पूरी तरह बंद कर दिया जिससे पाकिस्तान पाई-पाई को तरस गया। इसके अलावा ट्रंप ने जिस तरह आतंकवादी संगठन आईएसआईएस की कमर तोड़ी, उसके लिए पूरी दुनिया उनकी शुक्रगुजार रहेगी।
आईएसआईएस के मुखिया अबू बकर अल बगदादी को मार गिराने का ऐलान खुद ट्रंप ने किया था और दुनिया को बताया था कि वह अब सुरक्षित महसूस कर सकती है क्योंकि बगदादी कुत्ते की मौत मारा गया है, कायर की तरह मारा गया है। पूरी दुनिया में सैंकड़ों लोगों की जान लेने वाला बगदादी अपने अंतिम समय में सुरंग में छिपा हुआ था जहां अमेरिकी फौजों ने उसे ठोंक डाला था। ट्रंप ने बताया था कि अंतिम समय में बगदादी एक तरफ से बंद सुरंग में भाग रहा था। अमेरिकी फौजों से घिरा बगदादी अंतिम समय में रोता और चिल्लाता रहा। जिसने दूसरों के मन में डर पैदा किया, वह अंतिम समय में खुद खौफ के साये में रहा। तो इस तरह ट्रंप ने भी आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख को बरकरार रखा था।
बाइडन ने सारी मेहनत पर पानी फेरा
अब बाइडन को देखिये। उन्होंने ऐलान किया था कि अमेरिकी फौजें 31 अगस्त तक अफगानिस्तान छोड़ देंगी लेकिन तालिबान के डर से 24 घंटे पहले ही उन्होंने अमेरिकी फौजों को वहां से हटा लिया। यही नहीं अमेरिका ने पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान को जो भी अत्याधुनिक रक्षा उपकरण दिये वह भी अब तालिबान के हाथ लग चुके हैं। हालात यह हैं कि अपने लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के चीफ को खुद अफगानिस्तान आकर तालिबान से बात करनी पड़ी थी। अमेरिकी सेना से जुड़े रहे लोगों के आक्रोश का सामना करने को मजबूर बाइडन के जो वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं वह अमेरिकी सरकार की नाकामयाबी का ऐलान कर रहे हैं।
बहरहाल, 9/11 के आतंकवादी हमले को आज 20 साल पूरे हो चुके हैं। इन 20 वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका ने भले कई कामयाबियां हासिल की हों लेकिन बाइडन के फैसलों के चलते आज अमेरिका उसी तरह कमजोर दिख रहा है जैसा 9/11 के हमलों के दौरान नजर आ रहा था। इसके साथ ही अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों की रवानगी के समय उपजे हालात के दौरान मारे गये अफगानी नागरिकों और देश छोड़ने पर मजबूर हुए अफगानियों के हालात को देखिये सब समझ आ जायेगा कि बाइडन ने कितना बड़ा मानवीय संकट खड़ा कर दिया है।
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