माटी के महत्व को सुप्रतिष्ठित करती मटकोड़ की सनातनी परंपरा

माटी के महत्व को सुप्रतिष्ठित करती मटकोड़ की सनातनी परंपरा

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

कहँया के पियर माटी कहाँ के कुदार है।
काँया के पाँच सोहागिन माटी कोड़े जास हे।
सीवान के पिअर माटी सिसवन के कुदार हे।
लक्ष्मीपुर के पाँच सोहागिन माटी कोड़े जास हे।

सनातन परंपरा में मुख्य रुप से सोलह संस्कारों का निर्वहन किया जाता है। इन संस्कारों से जुड़ी विविध परंपराएं हैं। हर परंपरा का विशिष्ठ वैज्ञानिक महत्व होता है। समय के साथ समाज के हर आयाम में परिवर्तन हो रहा है। परंतु विशिष्ठ सनातनी परंपराओं के प्रति श्रद्धाभाव यथावत ही रहा है। इसी में एक विशिष्ठ परंपरा मटकोड़ की है, जो विशेष तौर पर शादी विवाह और उपनयन संस्कार के समय देखने को मिलता है। सीवान सहित बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि जगहों पर इस लोकाचार की परंपरा को देखा जाता रहा हैं। प्रोफेसर (डॉक्टर) आदित्य अनुपम के सुपुत्र बटुक आकर्ष आरोही मिश्रा के उपनयन संस्कार के प्रसंग में आयोजित मटकोड़ की सनातनी परंपरा का साक्षी बनने का सौभाग्य मिला।

मिट्टी से याचना का परंपरागत रस्म है मटकोड

मटकोड़ शब्द अपने मूल रूप में क्या था? इस का आज कोई उत्तर उपलब्ध नहीं है किंतु विद्वानों के अनुसार यह मिट्टी से याचना का रस्म है। भारतीय परंपरा में मिट्टी को मां माना गया है क्योंकि वह धन, धान्य दोनों की आपूर्ति करती है। वह वृक्षों द्वारा फल फूल और स्वास्थ्य जीवन के लिए औषधियां प्रदान करती है। अपने छाती से फसल उगाकर सभी का पेट भरती है तथा गर्भ से रत्‍‌न प्रदान करती है।

स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार की कामना

मटकोड़, गृहस्थ जीवन में प्रवेश या विद्यार्थी जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें, जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है। जहां तक इस मटकोड़ परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि या उपनयन संस्कार के दो तीन दिन पूर्व बटुक के घर की महिलाएं सम्पादित करती हैं।

बुआ और बहन को विशेष सम्मान

महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू अथवा बटुक के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है। इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है।

खोदी गई मिट्टी पर कलश की स्थापना

तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है, जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं।

हिन्दू विवाह पद्धति में यह अति महत्वपूर्ण परंपरा है। आज के दौर में जब प्रकृति कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग जैसे तथ्य कहर बरपा रहे हैं। ऐसे में माटी के महत्व की प्रतिष्ठा को सुनिश्चित करती यह सनातनी परंपरा विशेष महत्व की हो जाती है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!