साधना का प्रत्युत्तर है कठोर साधना।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बड़ा हीं प्रचंड आक्रमण था रावण का। प्रहस्त, मेघनाद, कुम्भकर्ण, अतिकाय, देवांतक आदि सबने एक साथ हमले किए। अनीति हीं आसुरी शक्तियों का प्रबल पक्ष है। धोखा हीं सबसे घातक हथियार। नर-वानरों की अग्रिम रक्षा पंक्ति ध्वस्त हो गई। हनुमान, अंगद, नल, नील, गवाक्ष, केसरी, जामवंत पराजित एवं हताश पड़े थे। लक्ष्मण लहुलुहान मूर्छित अवस्था में थे..और श्रीराम निस्तेज। अासुरी शक्तियों का एक हीं लक्ष्य है- सर्वे भवंतु सुखिन: की भावना को नष्ट करना। राम इस भावना के सर्वमान्य प्रतिनिधि हैं। …
अब तो आदिशक्ति भगवती की अराधना हीं एकमात्र साधन है- आसुरी शक्तियों पर विजय पाने का। साधना का प्रत्युत्तर कठोर साधना।
श्रीराम … को….हताश, निराश देख जामवंत ने सलाह दी। ….और साधना भी 108 इन्दीवर के साथ। राम भगवती-साधना में लीन हो गए। लेकिन कुल 107 हीं नीलकमल मिल पाए। राम स्वयं राजीव नयन थे। तत्काल तरकश से तीर निकाल …अपनी एक आंख देवी के चरणों में अर्पित करने को उद्यत हो उठे। हठात् …महिषासुरमर्दिनी प्रकट हुईं। श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया।
हमारे धर्मग्रंथ ….एक डिस्क्रिप्शन हैं-किसी घटना या संदर्भ का वर्णन मात्र। अब …यह आपके उपर है कि …उस घटना से सीख लें या उसे खारिज कर दें। श्रीराम और कृष्ण …हमारे ऐसे देवता हैं जिनसे कई प्रश्न किए जाते रहें हैं। अर्जुन ने कृष्ण से …….पूरी गीता कहलवा दी प्रश्न करते-करते। श्रीराम जब पेड़ की ओट से बालि पर वाण चलाते हैं….तो तनिक भी अच्छा नहीं लगता। बालि गिरकर तड़पने लगता है…और श्रीराम को देखते हीं क्रोध एवं हिकारत से बोल उठता है….”धर्म हेतु अवतरेऊं गोसाईं…..।”
…लेकिन वहीं बालि ….श्रीराम की नीति भरी बातें सुनकर अपनी गलती को स्वीकार करते हुए….बड़े गर्व से प्राण त्यागता है-
” जेहिं जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ …….।”
….राम अपने सम्मुख किसी को छोटा होने हीं नहीं देते। राम तो शत्रु से भी शिक्षा लेते हैं।
निषादराज को गर्व से अपना मित्र बताने वाले…..माता शबरी के जूठे बेर प्रेमपूर्वक खाने वाले…केवट का तर्क सुन कर चुपचाप उसकी बात मानने वाले, गिद्ध जैसे आमिष भोगी …को पिता तुल्य मानकर उसका अंतिम संस्कार करने वाले….श्रीराम! …और एक धोबी के …निहायत हीं बेतुके बात पर ….अपनी गर्भवती पत्नी महारानी ….सीता का त्याग करने वाले राम….क्या किसी शम्बुक की हत्या कर सकते हैं?
….और वो भी बड़ी निर्दयता से …तलवार के एक हीं झटके से गले पर प्रहार कर ….वह भी तब जब शम्बुक उल्टे होकर तपस्या रत थे।
यह कथा अपने आप में अविश्वसनीय मालूम पड़ती है……। अगर ….ऐसा हुआ भी है ….तो यह सर्वथा निन्दनीय है। हमारे धर्मग्रंथ डिस्क्रिप्टिव हैं, प्रिस्क्रिप्टिव नहीं।
उनमें लिखी हुई बातों को मानना, न मानना आपके उपर है। उन बातों पर प्रश्न किया जा सकता है, बदला जा सकता है। यहीं ….तो लोकतंत्र है। यहीं तो वैचारिक स्वतंत्रता है। …भारतीय धार्मिक संस्कृति किसी किताब में लिखी हुई बातों को जबरदस्ती मानने को बाध्य नहीं करती, बल्कि बंधनमुक्त करती है- स्वतंत्र विचार के लिए, स्वतंत्र चिंतन के लिए।
बसर्ते ….मन में कलुषित भावना न हो। राम जैसे ….विराट व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालने की मंशा न हो।
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