स्वतंत्रता का संघर्ष ग्रंथ महिलाओं की वीरता के प्रसंगों के बिना अधूरा.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
15 अगस्त हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है और इस बार का यह दिन तो और ही विशेष है, क्योंकि भारत अपनी आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रवेश कर रहा है। स्वतंत्रता दिवस का यह दिन उन बलिदानियों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपने खून से देश के भविष्य को सींचा है। स्वतंत्रता के संघर्ष की गाथा उन महिलाओं के जिक्र और उनके बलिदानों के बिना अधूरी है जिन्होंने अपना सर्वस्व आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया।
आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने घर से बाहर निकलकर प्रदर्शन किया, धरनों की अगुवाई की, ब्रिटिश पुलिस से दो-दो हाथ किए, उनकी अत्याचारी आंखों में आंख डालकर देखा, पर डिगी नहीं, झुकी नहीं। भारतीय स्वतंत्रता का संघर्ष ग्रंथ महिलाओं की वीरता के प्रसंगों के बिना अधूरा है। इस बार स्वतंत्रता दिवस पर हमें उन असंख्य, अनाम महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करना होगा जिन्होंने देश के लिए त्याग, तपस्या और बलिदान की पराकाष्ठा को पार किया। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।
इन शब्दों की ताकत मैं हर बार महसूस करती हूं। जब मैं अजेय, निर्भर, साहसी, झांसी की रानी, रानी लक्ष्मीबाई के बारे में पढ़ती हूं और उनसे जुड़े स्मारक देखती हूं। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अश्व पर सवार एक शेरनी की तरह रानी लक्ष्मीबाई ने विरोधियों के छक्के छुड़ा दिए थे। वीरता और ममता का एक साथ प्रतिमान बन रानी ने अपने बेटे को कमर से बांध रखा था। भयाक्रांत करने वाली रानी को अंग्रेज सेना के कमांडर ह्यूज रोज ने सुंदर, बुद्धिमान और आकर्षक बताने के साथ ही सबसे खतरनाक भी बताया था।
यह मेरा सौभाग्य है कि मेरा बचपन झांसी और बिठूर, कानपुर के निकट बीता। मुझे उन जगहों को देखकर बार-बार यह कल्पना करने का अवसर मिला कि रानी लक्ष्मीबाई ने कैसे खुद के द्वारा प्रशिक्षित सेना का शौर्य के साथ नेतृत्व किया होगा। अतीत में नेतृत्व की सबसे बेहतरीन मिसाल रहीं रानी लक्ष्मीबाई वर्तमान में भी हर महिला के लिए उदाहरण हैं, जो किसी भी भूमिका में देश की सेवा कर रही है।
विंग कमांडर जया तारे
बचपन में मैंने अपने दादा-दादी से कई कहानियां सुनी और पढ़ी हैं। इन कहानियों ने मुझे वह बनने के लिए प्रेरित किया, जो मैं आज हूं। आज मैं भारतीय वायुसेना में शामिल होकर उस मिट्टी की सेवा कर रही हूं जिससे मैं बनी हूं और जिससे मैं जुड़ी हूं। आपको बता दूं कि इस मिट्टी की सेवा करने, अपने देश की सेवा करने से ज्यादा संतोष कुछ और करने में नहीं है। यही वजह है कि सोने की लंका में खड़े होकर भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी जैसा वाक्य कहा था। इन निर्भय और अदम्य साहसी महिला स्वतंत्रता सेनानियों की ये कहानियां मुझे मेरी जड़ों से जोड़ती हैं। मुझे हर दिन सीख देती हैं। अपने करिश्माई और प्रभावी अडिग नेतृत्व के जरिए इन महिलाओं ने समाज की हर उस बाधा को पार किया, जो उन्हें अपने सपनों का पीछा करने, उनको पाने से रोकती थीं।
सोच से शुरू होती है आजादी: यह समझना भी बहुत जरूरी है कि, आजादी सबसे पहले हमारी सोच से शुरू होती है। इसका अंत भी हमारे दिमाग में ही होता है, बाकी सब तो प्रक्रिया है, इसी को हम मानसिकता और अंग्रेजी में मांइडसेट कहते हैं। मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि मानसिक स्वतंत्रता का संबंध हमारे काम, हमारे करियर से नहीं है, बल्कि वास्तविकता इससे ठीक उलट है।
हम हमेशा अपने लिए ऐसा काम ढूंढ़ते हैं, ऐसा करियर, ऐसे लोग चुनते हैं, जो हमारे आजाद होने की भावना का पोषण कर सकें। हमें ऐसा माहौल दे सकें जिससे हमारा विकास हो। सेना ने मुझे ऐसा ही अवसर दिया, सेना में सेवा करके मुझे एहसास हुआ कि देश के लिए मेरा प्यार एक दिन की दास्तां नहीं है। ये फसाना हर उस पल का है जब कोई भी इंसान देश के लिए खड़ा हुआ, उसने देश की प्रगति का हिस्सा बनने की कोशिश की। यही लोग हमारे असली हीरो हैं। इन्हीं की वजह से हम आज हर दिन आजादी का जश्न मना पाते हैं।
सेना ने मुझे वो माहौल दिया जहां मैं हर दिन खुद को मजबूत और सक्षम महिलाओं से घिरा पाती हूं। मैं उन्हें रोज ड्यूटी और घर के कामों के बीच खूबसूरती से भूमिका निभाते देखती हूं। उनके बच्चे उनसे समर्पण और देशप्रेम का वास्तविक अर्थ समझते हैं, उसे रोज देखते और सीखते हैं। अपने देश और अपने परिवारों की सेवा करने के गर्व के साथ इन सक्षम महिलाओं के चेहरे दमकते हैं।
हमारे देश की सेना में पुरुषों और महिलाओं दोनों के एक ही मानक होते हैं। सभी को एक ही स्तर की ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है साथ ही सबके लिए शारीरिक फिटनेस के मानक भी एक ही होते हैं। हम सभी से अपेक्षा की जाती है कि हमें बंदूक और मशीनें आदि चलाना आना चाहिए। मशीन को इससे फर्क नहीं पड़ता कि चलाने वाला मर्द है या औरत। मुझे अपने साथी पुरुषों के साथ काम करने पर बेहद गर्व है, जिन्होंने पिछले 15 साल से इस यात्रा के माध्यम से मेरी आजादी का जश्न मनाया।
पीछे मुड़कर भी देखें: कल जब हम अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं तो आइए एक बार पीछे मुड़कर भी देखें और उन भारतीय महिलाओं की सफलता का उत्सव मनाएं जिन्होंने कड़ी मेहनत से वह किया है जिसे किसी न किसी क्षेत्र में एक समय में हासिल कर पाना अकल्पनीय माना जाता था। ये महिलाएं एक ही मिट्टी की बनी हैं, लेकिन इन्होंने हर क्षेत्र के लिए खुद को ऐसा गढ़ा है जिससे न केवल उन्हेंं बराबरी का हक हासिल हुआ, बल्कि उन्हें सम्मान भी मिला है। वे सभी भारत के अलग-अलग हिस्सों से, विविध भाषा, सामाजिक-शैक्षिक और र्आिथक पृष्ठभूमि से आती हैं। फिर भी उनमें एक समानता है। यह समानता है उनकी अपने देश की सेवा करने की भावना।
रानी लक्ष्मीबाई भारत के राष्ट्रवाद का पर्याय बनकर अमर हो चुकी हैं। कई शहरों में घोड़े पर सवार उनकी प्रतिमाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और यह सोचने को बाध्य करती हैं कि एक महिला के कितने व्यक्तित्व हो सकते हैं, जब समय की मांग होती है तो एक रानी एक सैनिक भी हो सकती है। इसी तरह झांसी की एक और महान महिला रानी झलकारी बाई ये साबित करती हैं कि जब वक्त हो तो एक सैनिक, रानी भी बन जाती है। अपनी रानी को बचाने के लिए जान दे सकती है। ये महान योद्धा थीं रानी झलकारी बाई।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में महिला शाखा दुर्गादल की सेनापति झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं। अपनी इसी खूबी के कारण वह शत्रु को गुमराह करने के लिए रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वह रानी के वेश में युद्ध करते हुए अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं, लेकिन उनके इस अदम्य साहस के कारण रानी लक्ष्मीबाई को किले से निकलने का अवसर मिल गया। अपनी मृत्यु से पहले योद्धा झलकारी बाई ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झांसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के कई बार हौसले पस्त किए थे। वास्तविक जीवन की इन कहानियों के साथ अपने बच्चों की परवरिश करें और अपने गौरवशाली अतीत के बारे में बताएं। उनमें जोखिम लेने का साहस भरें, उन्हेंं प्रशिक्षित करें और उन्हें अपने देश के समृद्ध मूल्यों के बारे में सिखाएं।
न्यू इंडिया का सपना: न्यू इंडिया 130 करोड़ भारतीयों का सपना है, जो हमारी आंखों के सामने साकार हो रहा है। हम उन सौभाग्यशाली लोगों में से एक होंगे, जिन्हेंं अपने देश के उत्थान का साक्षी बनने का अवसर मिलेगा। न्यू इंडिया इनोवेशन यानी नवाचार, कड़ी मेहनत और रचनात्मकता से प्रेरित है, जिसकी विशेषता शांति और एकता है।
जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मनाएंगे, देश के लिए संकल्प लेंगे तो ये भी देखें कि हमारे छोटे-छोटे कदमों से समाज में क्या बदलाव आते हैं। आइए हम अपने इन कदमों से ही समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का संकल्प लें। आइए हम संकल्प लें कि हमारे परिवार में कोई भी लड़की अशिक्षित नहीं रहेगी और हम महिलाओं की प्रगति के साधक बनेंगे, बाधक नहीं।
मैं ऐसा भविष्य भी देख रही हूं, जब साहसी लड़कियां कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर सैन्य बलों में शामिल होंगी। हमारी सेना को और अधिक सशक्त करेंगी। दुनिया में हमारी क्या जगह होगी, होनी चाहिए इसके निर्धारण में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। मैं आप सभी से निवेदन करती हूं कि आप अपने दिमाग को बंधी-बंधाई सोच से बाहर निकालें, रूढ़ियों को तोड़ जिम्मेदार और साहसी नागरिक बनने की तरफ कदम बढाएं ताकि अन्य लोगों का नेतृत्व कर सकें साथ ही आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर सकें। आइए राष्ट्र निर्माण की इस प्रक्रिया की शुरुआत अपने घर से करें। अपने परिवार और राष्ट्र दोनों की रक्षा करने के लिए हम सबसे मजबूत चेहरा बनकर आगे आएं।
बनें जिम्मेदार नागरिक: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कल से आजादी का अमृत महोत्सव शुरू हो रहा है। आजादी का मतलब केवल यह नहीं है कि हम कुछ भी करने के लिए आजाद हैं। इसके लिए हमें कुछ जिम्मेदारियां भी निभानी होंगी। घर हो या बाहर पानी की बचत अवश्य करें। अनावश्यक रूप से बिजली के उपकरण चालू न रखें। चाहे वो घर हो या आपका कार्यस्थल।
घर की साफ-सफाई रखने के साथ ही यह हम सबका उत्तरदायित्व है कि घर के बाहर भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। चाहे वो अपना पड़ोस हो, अपना मुहल्ला हो, अपना शहर हो या फिर अपना कार्यस्थल। घर से बाहर होने पर भी कहीं भी कूड़ा न फैलाएं। घर से बाहर स्नैक्स आदि खाने पर दोना, कागज आदि डस्टबिन में या पास में मौजूद किसी कूड़ेदान में डालें। ईमेल आदि को प्रिंट करने के लिए कागज का इस्तेमाल तभी करें, जब बहुत जरूरी हो। कारण, कागज बनाने में पेड़ों को ही कुर्बान होना पड़ता है। इसी तरह यूज एंड थ्रो चीजों का इस्तेमाल भी संभलकर करें।
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