Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
पुस्तक 'फेर ना भेटाई ऊ पचरूखिया' 1960-70 के दशक का दस्तावेज है - श्रीनारद मीडिया

पुस्तक ‘फेर ना भेटाई ऊ पचरूखिया’ 1960-70 के दशक का दस्तावेज है

पुस्तक ‘फेर ना भेटाई ऊ पचरूखिया’ 1960-70 के दशक का दस्तावेज है

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

सीवान के 50वीं वर्षगांठ पर लेखक डॉ रंजन विकास की अनुपम भेंट

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान एक से बढ़कर एक विद्वानों से भरा पड़ा है। इन्हीं में से एक है डाॅ रंजन विकास,जिन्होंने अपने आत्म संस्मरण ‘जिनगी परत दर परत’ के अंतर्गत पुस्तक ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरूखिया’ की रचना किया है। डॉ रंजन विकास सेवानिवृत्त मूल्यांकन पदाधिकारी हैं, इन दिनों आपका प्रवास पटना में है। आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं लेकिन यह पुस्तक अपने आप में अनोखा है।

हिंदी की एक प्रतिष्ठित बोली भोजपुरी में लिखी गई यह पुस्तक अपने आप में बेजोड़ है। इसकी भूमिका ख्याति प्राप्त साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है जिसमें उन्होंने इस पुस्तक को ‘लोक संस्कृति के जियतार झांकी’ बताया है। डॉ रंजन विकास ने इस पुस्तक को अपनी मां स्वर्गीय सुशीला देवी को समर्पित किया है। मैंने इस पुस्तक को एक बैठक में ही समाप्त किया है कुल 224 पृष्ठों में संकलित यह पुस्तक अपनी सत्य को कहने का दस्तावेज है। बिना लाग लपेट के अपनी बात को अपनी बोली-बानी में ‘सत्य’ के साथ प्रस्तुत कर देना रंजन विकास की सबसे बड़ी उपलब्धि है। पुस्तक त्रुटि रहित है, लिखावट कसावट के साथ है। पुस्तक में सोलह अध्याय हैं जो सोलह सिंगार की तरह बचपन से लेकर अब तक की जिंदगी को समावेशित करती है।

डॉ रंजन विकास को साहित्य विरासत में मिली है,आपके पिता स्वर्गीय शारदानंद प्रसाद प्रधानाचार्य के साथ-साथ भोजपुरी रचना संसार के ख्याति प्राप्त रचनाकार रहे हैं। नालंदा विश्वविद्यालय द्वारा भोजपुरी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में आपकी आत्म संस्मरण ‘सुरता के पथार’ को मैंने पढा है। आपके बड़े मामा जी पाण्डेय कपिल थे, जिनकी कृतियों से भोजपुरी का अक्षय भंडार भरा पड़ा है। आपके मौसेरे भाई तंग इनायत पूरी देश के ख्याति प्राप्त शायर है।

आपने अपनी पुस्तक में पचरूखी चीनी मिल व उसके आसपास के गांव का वर्णन किया है, जिसमें 60 व 70 के दशक का रोमांच दिखाई पड़ता है। आपने अपने कई मित्रों के साथ बिताये यादगार दिलचस्प कथाओं का भी जिक्र किया है।


आज जो इंटरनेट पर भोजपुरी साहित्य प्रेमियों के एक वेबसाइट है साहित्ययांगना, इसके आप प्रणेता है संचालक है।
इस पुस्तक में आपने 1963 में साहित्य संस्था ‘साहित्यायन’ की स्थापना के बारे में लिखा है। जिसकी अध्यक्ष बनारसी बाबू, प्रधान सचिव डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव,सचिव शारदानंद प्रसाद सहित कई विद्वान रहे। इसके माध्यम से कई कवि-गोष्ठियों का आयोजन होता रहा।

इस पुस्तक में पढ़ने के दौरान ही पता चला 1973 में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई थी। इसके संस्थापक सदस्यों में पाण्डेय कपिल, भैरव नाथ पाण्डेय,डॉक्टर शंभू शरण सिन्हा, नागेंद्र प्रसाद सिंह, अविनाश चंद्र विद्यार्थी, प्रो. ब्रजकिशोर, कृष्णानंद कृष्ण, करुणानिधान केशव जैसे कई विद्वान थे। इसकी 26वीं अधिवेशन चंपारण के नगर मोतिहारी में फरवरी-2022 में मनाया गया, जिसमें मुझे भाग देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

पचरुखी का जिक्र हो और चीनी मिल की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। लेखक डॉ रंजन विकास ने अपने छठे अध्याय में पचरूखी के चीनी मिल का वर्णन किया है जिसमें वह बताते हैं कि बिहार के तीसरे सबसे पुराने चीनी मिल की स्थापना 1921 में ‘बिहार शुगर वर्क्स’ पचरुखी के नाम से हुई थी। चीनी मील फल फूल रहा था,सीजन में जाम से पचरूखी बाजार पट जाया करता था। दूर-दूर से किसान बैलगाड़ी से गन्ना लेकर आते थे, जिससे यह स्थान एक मेला में तब्दील हो जाया करता था।

बहरहाल 1975 में यह चीनी मील बंद हो गया, इससे किसान और मील के कर्मचारी व पदाधिकारी की हालत पस्त हो गई, लोग बताते हैं कि मील के कर्मचारी व पदाधिकारी दाने-दाने तक के लिए मोहताज हो गए। पचरुखी बाजार का रौनक एकदम से उजड़ गया।
वहीं सबसे बढ़कर यह पुस्तक सीवान की प्रशासनिक स्थापना के 50 वीं वर्षगांठ पर भोजपुरी बोली-बानी के लोगों को समर्पित है। यह पुस्तक निश्चित तौर पर साहित्य प्रेमियों के लिए एक अनमोल भेंट है।

मैं राजेश पाण्डेय श्रीनारद मीडिया के संपादक होने के नाते आप सभी से आग्रह करता हूं की इस पुस्तक को आप मंगाए और पढें। यह पुस्तक संग्रहणीय है| सर्व भाषा ट्रस्ट ने इसे प्रकाशित किया है,इसकी कीमत ₹250 है। साथ ही ईश्वर से कामना करता हूं कि डाॅ रंजन विकास जी अपनी लेखनी को आगे बढ़ाते रहें और समय दर समय हम सभी को आपकी पुस्तकें पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे।

Leave a Reply

error: Content is protected !!