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अमेरिका के समक्ष मित्र देशों का भरोसा जीतने की होगी चुनौती. - श्रीनारद मीडिया

अमेरिका के समक्ष मित्र देशों का भरोसा जीतने की होगी चुनौती.

अमेरिका के समक्ष मित्र देशों का भरोसा जीतने की होगी चुनौती.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी और सऊदी अरब से अपनी पैट्रियट मिसाइल सिस्टम को हटाने के बाद नए अंतरराष्‍ट्रीय परिदृष्‍य में क्वाड देशों की बैठक को काफी अहम माना जा रहा है। यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब अफगानिस्‍तान को लेकर अमेरिका की दुनिया में किरकिरी हुई है। सऊदी से पैट्रियट मिसाइल सिस्टम को हटाने के कई मायने निकाले जा रहे हैं।

यहां एक खास बात यह है कि अफगानिस्‍तान में इस अमेरिकी रणनीति से भाारत के समक्ष एक बड़ी चुनौती उत्‍पन्‍न हुई है। चीन को अफगानिस्‍तान में विस्‍तार करने का मौका मिला है। अफगानिस्‍तान में तालिबान, पाकिस्‍तान और चीन के साठगांठ से भारत के समक्ष एक नई चिंता उत्‍पन्‍न हुई है ? सवाल यह है कि क्‍या क्वाड देशों की बैठक में इन बिंदुओं पर चर्चा होगी ? क्‍या अमेरिका अपने सहयोगियों को उनकी सुरक्षा का भरोसा दिला पाएगा ? अमेरिका के महाशक्ति होने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आइए जानते हैं इस पर प्रो. हर्ष पंत की राय।

अफगानिस्‍तान प्रकरण का क्वाड देशों की बैठक पर क्‍या होगा असर ?

जाहिर तौर पर अफगानिस्‍तान और सऊदी अरब प्रकरण का असर क्वाड देशों की बैठक पर पड़ेगा। अमेरिकी सैनिकों की हटने के बाद अफगानिस्‍तान में चीन की सक्रियता ने अमेरिका के समक्ष एक नई चुनौती पैदा की है। खासकर तब जब क्वाड का गठन चीन की रणनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए किया गया हो। इस संगठन मे शामिल आस्‍ट्रेलिया, जापान और भारत के समक्ष अब एक नया संकट खड़ा हुआ है। हमें लगता है कि सबसे बड़ा संकट तो भरोसे का है। अब मामला चाहे प्रशांत क्षेत्र के विकास और स्थिरता का हो या दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रभुत्‍व का, ये चुनौतियां अब बड़ी हुई हैं। अमेरिका के समक्ष ताइवान को लेकर भी नया संकट उत्‍पन्‍न हुआ है।

क्वाड देशों की बैठक में अमेरिका के समक्ष क्‍या होगी बड़ी चुनौती ?

क्वाड देशों की बैठक ऐसे समय हो रही है जब भारत अफगानिस्‍तान में अपने हितों को लेकर बड़ा संघर्ष कर रहा है। चीन और पाकिस्‍तान मिलकर अफगानिस्‍तान में भारत के खिलाफ रणनीति बना सकते हैं। ऐसे में अफगानिस्‍तान में भारतीय हितों की सुरक्षा करना भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी। उधर, बाइडन प्रशासन पूर्व में कह चुका है कि पूरी दुनिया में भारत उसका सर्वश्रेष्‍ठ मित्र है।

ऐसे में उसे अपनी कथनी और करनी में फर्क करना होगा। अमेरिका को भारत का यह भरोसा जीतना होगा। अफगानिस्‍तान में उसे भारतीय हितों के लिए खड़ा होना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्वाड देशों की उपयोगिता और प्रासंगिता पर भी सवाल खड़े होंगे। उन्‍होंने कहा आस्‍ट्र‍ेलिया, जापान और ताइवान को भी यह विश्‍वास दिलाना होगा कि वह रणनीतिक रूप से इन देशों के साथ खड़ा है। वह मुसिबत के समय उनका साथ निभाएगा।

अफगानिस्‍तान से अमेरिका सैन्‍य वापसी को आप किस रूप में देखते हैं ?

अफगानिस्‍तान प्रकरण के चलते अंतरराष्‍ट्रीय परिदृश्‍य में तेजी से बदलाव हुआ है। इस बदलाव के लिए काफी हद तक बाइडन प्रशासन की रणनीति जिम्‍मेदार है। उन्‍होंने कहा कि यह सत्‍य है कि अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्‍तान से जाना था। यह फैसला पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के कार्यकाल में ही तय हो गया है।

ट्रंप के कार्यकाल तक सब ठीक चल रहा था, अमेरिका अफगानिस्‍तान से सम्‍मानजनक ढंग से निकलने का रास्‍ता भी निकाल रहा था। हालांकि, अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव के बाद निवनिर्वाचित राष्‍ट्रपति भी अपने पूर्ववर्ती के फैसले से सहमत थे, लेकिन अमेरिका ने जिस हड़बड़ी में सेना की वापसी का फैसला लिया। वह अटपटा था।

क्‍या अमेरिका के इस फैसले से उसकी साख को धक्‍का लगा है ?

बाइडन प्रशासन के इस फैसले से अमेरिका की कहीं न कहीं किरकिरी हुई है। अमेरिकी साख को भी धक्‍का लगा है। अमेरिकी सेना की अफगानिस्‍तान की वापसी के बाद तालिबान ने जिस तरह से जश्‍न मनाया उससे एक संदेश गया कि यह उसकी जीत है और अमेरिका की पराजय। अफगानिस्‍तान से निकलने के पूर्व उसने अपने म‍ित्र देशों के हितों की परवाह नहीं किया।

अफगानिस्‍तान से निकलने के पूर्व उसने वहां की लोकतांत्रिक सरकार की परवाह नहीं की। भारत के हितों की चिंता नहीं की। उन्‍होंने कहा यह संदेश भी गया कि अमेरिका अपने हितों के आगे मित्र देशों की अनदेखी करता है। ऐसे में अमेरिका विरोधी देशों को यह कहने का मौका मिला है कि वह अपने सहयोगी राष्‍ट्रों का साथ नहीं निभाता है।

क्‍या अमेरिकी ह‍ित अब लोकतांत्रिक मूल्‍यों से बड़े हो गए हैं ?

अमेरिका तालिबान के साथ एक लोकतांत्रिक मूल्‍यों के लिए जंग लड़ रहा था। उसने दुनिया को यह द‍िखाने का प्रयास किया कि अफगानिस्‍तान में उसकी पूरी लड़ाई लोकतांत्रिक मूल्‍यों को लेकर है। क्वाड एक लोकतांत्रिक देशों का संगठन है। इसकी स्‍थापना चीन के लोकतांत्रिक विरोधी मूल्‍यों को लेकर हुई। और अब अमेरिका तालिबान के साथ काम करने का इच्‍छुक लग रहा है। इससे भी उसकी विश्‍वनियता पर संकट खड़ा हुआ है। यह बड़ा संकट है। इससे यह बता साबित होती है कि अमेरिका अपने हितों की खातिर कुछ भी छोड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो क्वाड का क्‍या होगा।

क्‍या है क्वाड

क्वाड भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान देशों का एक समूह है। इसका उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों के हितों की रक्षा करना और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है। क्वाड अंतरराष्‍ट्रीय कानूनों पर आधारित ‘स्वतंत्र, मुक्त एवं समृद्ध’ भारत-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र और क्षेत्रों में मौजूद चुनौतियों से निपटने के प्रति प्रतिबद्ध है।

चतुर्भुज सुरक्षा संवाद अर्थात् क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच है। क्वाड की अवधारणा औपचारिक रूप से सबसे पहले वर्ष 2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे द्वारा प्रस्तुत की गई थी, हालांकि, चीन के दबाव में आस्ट्रेलिया के पीछे हटने के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका।

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