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नया संसद भवन बनने के कई मतलब हैं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पड़ोसी अगर घर आता है तो उसका कोई ख़ास मक़सद (गरज) ज़रूर होता है। नया संसद भवन बनने के भी कई मतलब हैं। नए संसद भवन में लोकसभा यानी निचले सदन में 888 कुर्सियाँ हैं। अभी देशभर में लोकसभा की 543 सीटें हैं और इतनी सीटों का निर्धारण 1976 में 1971 की जनगणना के अनुसार किया गया था, तब देश की जनसंख्या मात्र 54 करोड़ थी।

तब हर दस लाख लोगों पर एक लोकसभा सीट का फ़ॉर्मूला अपनाया गया था। अब जनसंख्या तब से बढ़कर ढाई गुना से भी ज़्यादा हो चुकी है। परिसीमन तो 2026 में तय है ही। लोकसभा सीटों का परिसीमन होता है तो दक्षिण के राज्यों की सीटें कम और हिंदी भाषी आठ राज्यों की सीटें ज़्यादा बढ़ेंगी।

जनसंख्या के अनुमान और हर दस लाख लोगों पर एक लोकसभा सीट का फ़ॉर्मूला अपनाया गया तो देशभर में लगभग 1200 लोकसभा सीटें हो जाएँगी। यह भी तब जब 2011 की जनगणना के आधार पर ही परिसीमन कर दिया जाए तो। इस मान से दक्षिण के पाँच राज्यों में 42% सीटें बढ़ेंगी, जबकि हिन्दीभाषी आठ राज्यों में 84% के लगभग।

यानी दक्षिण से एकदम दोगुना। उदाहरण सामने है- पिछले चुनाव में हिन्दीभाषी आठ राज्यों की साठ प्रतिशत सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को विजय मिली थी। कहा जा सकता है कि परिसीमन अगर होता है तो यह भाजपा के लिए अश्वमेध यज्ञ की तरह होगा। उसके विजयी घोड़े को फिर कोई रोक नहीं पाएगा क्योंकि जिन दक्षिणी राज्यों के कारण भाजपा गच्चा खाती रही है, उनका महत्व लगभग नगण्य हो जाएगा।

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, बिहार, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली में लोकसभा सीटें लगभग दोगुनी हो जाएँगी। यह भी तय है कि हिंदी भाषी राज्यों में सीटें बढ़ने का फ़ायदा सर्वाधिक भाजपा को ही होने वाला है। अब बजरंग बली वाला फ़ॉर्मूला कर्नाटक के पिछले चुनाव में भले ही नहीं चला हो, लेकिन यही मुद्दा हिन्दी भाषी राज्यों के चुनावों में बन जाता तो चुनाव परिणामों की कायापलट हो जाती।

उल्लेखनीय है कि 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाकर हज़ार करने की बात कह चुके हैं। सोमवार को नए संसद भवन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि आने वाले समय में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ेंगी ही। राज्यसभा के सभापति भी नए परिसीमन का ज़िक्र कर चुके हैं। लम्बे समय से यह परिसीमन क्यों रुका हुआ है, इसका भी कारण है। दरअसल, 1960-70 के दशक में सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण पर ज़ोर लगा रखा था।

इस नियंत्रण में हिंदी भाषी राज्यों की अपेक्षा दक्षिण बहुत आगे रहा। तब दक्षिण की चिंता यह थी कि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो शेष भारत की तुलना में उनके हिस्से की सीटें काफ़ी कम रह जाएँगी। दक्षिण की इस चिंता को दूर करने के लिए तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 1976 में इमरजेंसी के दौरान संविधान संशोधन के ज़रिए परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दी थी।

तब सरकार का मानना था कि 2026 तक सभी राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दर लगभग समान हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, रेश्यो वही बना रहा। दक्षिण की बजाय शेष भारत की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ती रही। यही वजह है कि नए संसद भवन का उद्घाटन और आने वाला परिसीमन दक्षिण को तो डरा ही रहा है, भाजपा छोड़ बाक़ी राजनीतिक दलों के लिए भी गले की फाँस बन गया लगता है।

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