किताब आ स्कूल ड्रेस के दाम से तरबतर होखत गार्जियन!
स्कूलन में नया सत्र शुरू होखे के बा, गार्जियन लोग के जेब हो रहल बा खाली, रोअता मन
हाय रे, हमरा देश के लूट खसोट वाला शिक्षा व्यवस्था!
✍️गणेश दत्त पाठक, व्यंग्यकार और लेखक:
श्रीनारद मीडिया
सिवान के महादेवा रोड में किताब के एगो दुकान। दिन रहे बुधवार।दोपहरिया 1 बजे के समय रहे। एगो आदमी लईकन के किताब मंगलस दुकान वाला से। किताब वाला दुकान में किताब देखावे लागल। लेकिन जब किताब के दाम जोड़ाए लागल, तब ऊ आदमी के चेहरा पसीना से तरबतर होखे लागल। जैसे जैसे कैलकुलेटर में अंक जुडत जात रहे। कभी ऊ आदमी एगो पॉकेट जोहत रहवे कभी दुसरका। कभी मोबाइल वॉलेट के बैलेंस देखत रहवे, कभी फेर हाथ के रुपया गिनत लागत रहवे। फिर दुकानवाला से गुहार लगावे लगवे की तनी कुछ छोड़ दी। लेकिन दुकानवाला त अपने ठहरल व्यापारी। ऊ हो आपन व्यथा ज्यादा चालाकी से जतावे लगवे। दुकानवाला सबसे पहिले त देश सबसे बड़का समस्या महंगाई के रोना रोए लगवे। खुल के त ना लेकिन येतना जरूर बोल देहवे कि का कहीं हमरो कई जगे प्रसादी बाटे के बा। बेचारा ऊ आदमी जेब के झार झार के केहू गा किताबन के दाम चुकवुए। लेके किताब चले लगवे, त हम ऊ आदमी के परेशान देख के बोल पड़वी कि का कईल जाव चचा, आज के पढ़ाई बड़ा महंगा हो गईल बा। तनी सा मन के बात से ऊ आदमी के पीड़ा छलक आयल रहवे। फेर त ऊ आदमी अपना मन के भड़ास निकाल के रख देहवे….
का कहीं ए बाबू! आज के दिन में सब केहू पढ़ला के महत्व जतावता। सुनेनी कि सरकार रोज नया नया शिक्षा के नीति लियावतिया। लेकिन हम गरीब सब अपना लईकन के कहां पढ़ाई सन? सरकारी स्कूलवा के हालते खराब बा त। प्राइवेट स्कूल में खाली लुटाई होता। कबो ड्रेस के नाम पर तो कबो किताब के नाम पर तो कबो टूर के नाम पर। फीस त हर महीना भरहीं के बा। साल पर एगो वार्षिक फीस अलगा से देबही के बा। कहीं से ई फीस में कौनो राहत नईखे मिलेके? अब गार्जियन गहना गिरवी रखस चाहे खेत!
सरकारी स्कूल में मास्टर साहब लोग के नींद आ मोबाइल से फुरसत नईखे। त सरकारों वो मास्टर साहब लोग के पीछे पड़ले बिया। कबो चुनाव त कबो जनगणना में लगा दिहल जाला। मौका के फायदा उठाए में त सरकारी स्कूल के मास्टर साहब लोग के बाते अलग बा। एक दिन के कामवा के चार दिन में करेनी लोग। लइकन के पढ़ाई चल जाला कोना में? एक दुगो मास्टर साहब लोग ही लईकन के प्रति ध्यान देवे वाला होला। ना त बाकी कैगो मास्टर साहब लोग के बस महिनवा के इंतजार रहेला।
अब बाचल प्राइवेट स्कूल। प्राइवेट स्कूलवा त हर गली मोहल्ला में बाटे। लेकिन कुछ स्कूलिया नाम बना लेले बाड़न सन। वोकनी के फीस इतना बाटे कि घर दुआर सब बेचे के पड़ी। वोकरा बाद समय समय पर चोंचला कि कबो हई कार्यक्रम त कबो हई कार्यक्रम। अब खरीदत रहीं नया नया ड्रेस, अवरी सब नया समान। कार्यक्रम से बढ़ेला स्कूल के शोभा आ जेब कटाला गार्जियन के।
बड़का प्राइवेट स्कूल के तनी प्रिंसिपल साहब लोग के भाव देखी। वो लोग के सामने जिला के कलेक्टर साहेब लोग के भाव फेल हो जाला। इतना भाव बनावेले सन की आम आदमी के हालते खराब हो जाई। लागेला जैसे देश के सब इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस, पीसीएस सब नामी गिरामी स्कूल से निकलेला। जबकि देश के गांव के सरकारी स्कूल के लईकन भी त देश में बड़का साहेब बन तारन। तनी ऊ नामी स्कूल के प्रिंसिपल साहब लोग के लईकन के शिकायत लेके चल जाई। अईसन अईसन तर्क दिह सन की गार्जियन के हार्ट अटैक आ जाई। एक बार नाम कमाके खूब वैके दाम वसूले ल सन।
अब बाचल तनी छोट मोट प्राइवेट स्कूल। वैजुगो कम नाटक नईखे। कुछ त ढेर फायदा कमावे खातिर स्कूलवे के दुकान बना लेले बाड़न सन। चार पांच गुना दाम पर किताब आ ड्रेस बेचत तार सन। एगो ड्रेस के कहे तीन तीन गो ड्रेस चलावत तारन सन। लगेला पढ़ाई से ज्यादा जरूरी ड्रेसवे बाटे। ड्रेस पर कमीशन आ किताबन पर कमीशन। सरकार के का मालूम नईखे सब। लेकिन सरकार के लोग के सेवा खूब हो रहल बा त काहे केहू इसपर ध्यान दी!
हम गरीबन के पिसाये के लिखल बा त। का करी सन। देखी ना ऐ बाबू! रुपया लियायिल रहनिया की तनी राशन लेवे के रहला अवरी दवाई। लेकिन सब पैसा लईकन के ड्रेस आ किताबे में लाग गईल। ओकरा बाद ऊ आदमी के आवाज बंद हो गईल आ खाली आंसू छलकल ही दिखाई देहवे…
हाय री, हमरा देश के लूटखसोट वाला शिक्षा व्यवस्था!
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