Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
देश कोरोना के लिए बेहतर तैयार है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया
Breaking

देश कोरोना के लिए बेहतर तैयार है,कैसे?

देश कोरोना के लिए बेहतर तैयार है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर आ गयी थी कि 2022 की शुरुआत में ही हमें वायरस के ओमिक्रोन वैरिएंट से दो चार होना पड़ रहा है, जिसने दुनियाभर में दहशत फैला दी है. उम्मीद की जा रही है कि ओमिक्रोन डेल्टा वेरिएंट की तरह घातक नहीं होगा.

देश कोरोना के लिए बेहतर तैयार है. हमारे शस्त्रागार में अब कई टीके और प्रभावी दवाएं हैं. पिछली लहर के कठोर सबक भी हमें याद हैं. अब बूस्टर डोज की भी अनुमति मिल गयी है. ओमिक्रोन से बचाव के लिए भी हमारे पास वही तरीके हैं, जो अन्य वेरिएंट के लिए हैं यानी वैक्सीन, मास्क, दूरी बनाये रखना. साथ ही, वैक्सीन लेने से वायरस के नये म्यूटेशन के मौके भी सीमित हो जायेंगे. हमें अब भी बचाव के प्रति अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है.

भारतीय मनीषियों ने कहा है कि बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले. सार यह है कि पिछले साल से सबक लेकर भविष्य की ओर देखें. वैज्ञानिकों का मानना है कि हमें कुछ वर्ष तक कोरोना के साथ ही जीना होगा और इसी में से रास्ता निकालना होगा. विधानसभा चुनावों के मौसम में हम उम्मीद करते हैं कि सभी दल सावधानी बरतेंगे. ये चुनाव कोरोना के विस्तार के वाहक नहीं बनने चाहिए. यह जानना जरूरी है कि अर्थव्यवस्था ओमिक्रोन रूपी तलवार की धार पर चल रही है. कमजोर खपत और मुद्रास्फीति ने आर्थिक संतुलन को गड़बड़ा दिया है. इसलिए वायरस को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है.

इस वर्ष 15 अगस्त को देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे. यह बहुत महत्वपूर्ण अवसर है, जब हम इतिहास का सिंहावलोकन करें और भविष्य का चिंतन करें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से आजादी का अमृत महोत्सव की शुरुआत करते हुए कहा था कि आजादी का अमृत महोत्सव यानी आजादी की ऊर्जा का अमृत, स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणाओं का अमृत, नये विचारों का अमृत, नये संकल्पों का अमृत और आत्मनिर्भरता का अमृत.

महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी. अंग्रेजी शासनकाल में भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था. महात्मा गांधी ने देश के दर्द को महसूस किया और इसे जन-जन का आंदोलन बनाया. हाल के दिनों में महात्मा गांधी को अपमानित करने का प्रचलन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. यह गांधी के विचारों की ताकत ही है कि उनके विचार आज भी जिंदा है. देश व दुनिया में बड़ी संख्या में लोग आज भी उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं.

उनकी बातें सरल और सहज लगती हैं, पर उनका अनुसरण करना बेहद कठिन है. महात्मा गांधी का मानना था कि नैतिकता, प्रेम, अहिंसा और सत्य को छोड़कर भौतिक समृद्धि और व्यक्तिगत सुख को महत्व देने वाली आधुनिक सभ्यता विनाशकारी है. गीता ने गांधीजी को सर्वाधिक प्रभावित किया था. गीता के दो शब्दों को उन्होंने आत्मसात कर लिया था. इसमें एक था अपरिग्रह, जिसका अर्थ है मनुष्य को अपने आध्यात्मिक जीवन को बाधित करनेवाली भौतिक वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए. दूसरा शब्द है समभाव. इसका अर्थ है दुख-सुख, जीत-हार, सब में एक समान भाव रखना.

हाल में केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया. इन्हें रद्द करने की मांग को लेकर किसान लगभग पिछले एक साल से विरोध कर रहे थे. आंदोलन के लाभ-हानि को छोड़ दें, तो एक अच्छी बात यह हुई है कि इसने किसानों और उनकी समस्याओं को विमर्श में ला दिया है. हमें खेती-किसानी के बारे में नये सिरे से सोचना होगा. खासकर छोटे किसानों के समक्ष संकट है क्योंकि खेती लाभकारी काम नहीं रह गयी है.

उनका उत्पाद तो मंडियों तक भी नहीं पहुंच पाता है, बीच में ही बिचौलिये उन्हें औने-पौने दामों में खरीद लेते हैं. यही वजह है कि आज किसान कर्ज में डूबा हुआ है. केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में खासी वृद्धि की है, पर खेती में लागत खासी बढ़ गयी है. कुछ अन्य व्यावहारिक समस्याएं भी हैं, जैसे- सरकारें देर से फसल की खरीद शुरू करती हैं, तब तक किसान आढ़तियों को फसल बेच चुके होते हैं. भूमि के मालिकाना हक को लेकर भी विवाद पुराना है.

जमीन का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है, जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती, तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं. बड़े किसान प्रभावशाली हैं, वे सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ भी लेते हैं और राजनीतिक विमर्श को भी प्रभावित करते हैं. किसानों को भी अपने तौर-तरीकों को बदलना होगा और नई तकनीक व विधाओं को अपनाना होगा. उन्हें नगदी फसलों की ओर भी ध्यान देने के साथ मछली, मुर्गी और पशुपालन से भी अपने को जोड़ना होगा, तभी यह फायदे का सौदा बन पायेगी.

स्वास्थ्य पर कोरोना का जो भी असर हो, एक असर तो हमारे सामने है कि इसने तकनीक पर हमारी निर्भरता को बढ़ा दिया है और हमारे आचार-व्यवहार को बदल दिया है. हमें आत्मकेंद्रित बना दिया है. इमर्सिव वर्चुअल रियलिटी स्पेस यानी मेटावर्स की अवधारणा ने इसमें एक नया आयाम जोड़ दिया है. आप एक विशेष हेडसेट लगाकर सामान्य रूप से जुड़े सहयोगियों के साथ बैठकों में भाग ले सकते हैं. दोस्तों के साथ पुरी या गोवा के समुद्र तट पर चहलकदमी कर सकते हैं.

यह तकनीक विदेशों में जोर पकड़ रही है. वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे वास्तविकता और आभासी दुनिया के बीच की दूरी मिट जायेगी. लेकिन पिछले साल का सबक यह है कि तकनीक का नियंत्रित इस्तेमाल करें. तकनीक दोतरफा तलवार है. मोबाइल हम सबको जकड़ता जा रहा है. मुझे कोरोना काल से पहले लंदन में आयोजित बीबीसी के लीडरशिप समिट में हिस्सा लेने का मौका मिला था. उसमें एक प्रस्तुति में बताया गया कि ब्रिटेन में हर व्यक्ति प्रतिदिन औसतन 2617 बार अपने मोबाइल फोन को छूता है.

कोरोना काल के बाद तो तकनीक पर निर्भरता और बढ़ी है. आधुनिक तकनीक के कैसे तारत्मय बिठाना है, नये साल में हमें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा.

Leave a Reply

error: Content is protected !!