पेड़ों को ज्यादा खतरा सरकारी तंत्र से है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जब भी पेड़ों को बचाने की बात आती है, राजस्थान की अमृता देवी का जिक्र जरूर आता है। खेजड़ली ग्राम के लोगों ने खेजड़ी के पेड़ बचाने के लिए जो बलिदान दिया था, आज भी वो पूरी दुनिया के आगे मिसाल है। राजस्थान के टोंक इलाके में लाम्बा गांव के विष्णु लाम्बा भी कम उम्र में इसी राह पर चलते आ रहे हैं। उन्हें ट्री मैन कह कर पुकारा जाता है। अर्थ डे पर ट्री मैन विष्णु लाम्बा पर्यावरण के लिए जी जान से जुटा ये युवा, विश्व पृथ्वी दिवस पर क्या संदेश देना चाहता है।
कब से प्रकृति के लिए आप आकर्षित हुए
मैं राजस्थान के लांबा गांव से हूं। 7 साल की उम्र में पहला पेड़ लगाया। मां के साथ इस पुण्य अवसर का मौका मिला, बस वो दिन है और आज का दिन है, पेड़ लगाने और पेड़ बचाने की मुहिम में जुटे हैं। इस लिहाज से पर्यावरण के प्रति आकृष्ट करने में पहला गुरु मेरी मां को माना जा सकता है। जीवन के 34 साल में से 27 साल पेड़ों के बीच में ही बीते हैं।
इन 27 साल में कितने पौधे लगाए या संरक्षित कर पाए ?
पिछले 27 सालों में बिना किसी सरकारी अनुदान के श्री कल्पतरु संस्थान ने विभिन्न आयोजनों, अवसरों पर लोगों के साथ मिलकर 13 लाख पौधे कोर्ट में लड़कर बचाए, 11 लाख पौधे वितरित कर लगवाने और करीब 13 लाख पौधे तैयार कर लगाने और उनका संरक्षण करने का एक छोटा सा प्रयास हम कर पाए हैं। सरकारी स्तर पर इन आंकड़ों को कई बार परखा गया है और उसी के बाद अमृता देवी सरीखे सम्मान हमें मिले।
पेड़ों को किससे ज्यादा खतरा ?
पेड़ों को न जंगली जानवरों से खतरा है, न आम ग्रामीण लोगों से, पेड़ों को अगर किसी से खतरा है तो वो है सरकारी तंत्र। वो माफिया जो जंगल काटने में जुटे हैं उन्हें सरकारी तंत्र का संरक्षण प्राप्त है। हम पेड़ बचाने की मुहिम चलाते हैं तो हम पर माफिया हमले करते हैं। खुद मैं इस का शिकार हुआ हूं। लेकिन डरेंगे नहीं, हटेंगे नहीं। लगे रहेंगे। लेकिन सरकार में बैठे अफसर देश के लिए सोचें तो पेड़ों की अंधाधुंध कटाई रुक सकती है।
पानी को लेकर कुछ दशकों पहले भारत में कहा जाता था कि ‘डग-डग डबरी, पग-पग नीर!’लेकिन अंधाधुंध दोहन, पानी के सिंगल यूज इस्तेमाल, जल संरक्षण और जल संवर्धन पर ध्यान न देना और ग्राउंड वाटर का अनियोजित तरीके से दोहन ने पानी की मांग बढ़ा दी है। इस मुद्दे पर जागरण न्यू मीडिया के सीनियर एडिटर अनुराग मिश्र ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले नीति आयोग की भू-जल संरक्षण समिति में जल एवं भूमि सलाहकार अविनाश मिश्र ने बताया.
ग्राउंडवाटर बेहतर होगा तो तमाम मुश्किल हल होगी
जहां तक ग्राउंडवाटर की बात है तो रिचार्ज होने वाले ग्राउंडवाटर की उपलब्धता 437 बिलियन क्यूबिक मीटर है। इसका एक्सट्रैक्शन बीते एक साल में 61 फीसद हुआ है। यह एक फीसद बेहतर हुआ। पिछले कुछ सालों में यह 62 फीसद था। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे पानी का वेस्टेज रुका है, पानी की खपत कम हुई है। जहां तक ग्राउंडवाटर के योगदान की बात है तो पूरे सिस्टम में 85 फीसद ड्रिकिंग वाटर प्रति सप्लाई ग्रामीण क्षेत्रों में निर्भर है। 50 फीसद शहरी इलाकों में निर्भर है। मौजूदा बोरबेल में ऐसे मापक लगाए जाएं जो यह बताए कि प्री-रेन और पोस्ट रेन कितना पानी रहा। 130 फीसद दिल्ली में ग्राउंड वाटर का दोहन, 140 फीसद हरियाणा और पंजाब में हो रहा है। जिन राज्य में अधिक ग्राउंडवाटर निकालते हैं उन राज्यों में ग्राउंड वाटर के बैठने का खतरा हो जाता है।
पानी का दोबारा इस्तेमाल बढ़ाएं
मैकेंजी ने एक रिपोर्ट 2009 में निकाली थी। अगर ऐसे ही पानी की खपत होती है तो यह 700 बीसीएम से बढ़कर 2030 तक 1400 बीसीएम हो जाएगा। इसे लेकर सभी ने अपने पक्ष रखे थे। हम लोग सिंगल वाटर यूज करते हैं। अगर हम दैनिक जीवन में देखें तो वेस्ट वाटर नाले में जाता है तो नदी के पानी को प्रदूषित करता है। सिंगल यूज वाटर की आदत 1400 बीसीएम तक ले जाएगी। अगर हम पानी को रियूज, रिसाइकिल नहीं करेंगे तो खपत बढ़ेगी।
जल प्रदूषण की जांच के लिए लैब की कमी नहीं
जल प्रदूषण के लिए हमें ये ध्यान रखना होगा कि नलों में जो पानी आ रहा है वो सेफ है। अब करीब 2200 लैब हैं जहां हम चेक करा सकते हैं कि पानी में किस तरह के तत्व हैं। यहां पानी का टीडीएस, पीएच लेवल चेक हो सकता है। साथ ही पानी में क्लोरीन, आर्सेनिक, फ्लोराइड का स्तर कितना है। पाइप वाटर सप्लाई का लेवल 18 फीसद से बढ़कर 50 फीसद हो गया है। यह ग्रामीण क्षेत्रों का स्तर है।
शहरी इलाकों में 76 से 88 फीसद तक सेफ वाटर सप्लाई हो रहा है। सरकार ने अमृत स्कीम चलाई है जिस पर काम हो रहा है। सिंगल वाटर यूज न करें। इसका दोबारा इस्तेमाल भी करें। एग्रीकल्चर में इफिशिएंसी 90 फीसद भारत में है। अपने शहरों का देखें 40 से 45 फीसद पानी का घाटा हो रहा है। वाटर संरक्षण होना चाहिए। तालाब, बावड़ी आदि को रिचॉर्ज होना चाहिए। इससे ग्राउंड वाटर भी बेहतर होगा।
नदियों के पुर्नजीवन और पुर्नरुद्धार को लेकर चल रहा है काम
नेशनल मिशन ऑन क्लीन गंगा एक ऐसा मिशन है किस तरह नदी को क्लीन कर सकते हैं। नदी के पुनरुद्धार के लिए कई लोगों और एनजीओ ने काम किया है। केरल में काम किया है, अलवर, महाराष्ट्र में काम किया है। ग्राउंड वाटर का दोहन ज्यादा होने एक बड़ी मुश्किल है। चेक डेम बनाना, कैचमेंट एरिया में वाटर शेड डेवलप करना जैसे उपाय किए जा रहे हैं। नेशनल रिवर कंजर्वेशन प्लान, मनरेगा में इसके लिए धन उपलब्ध कराया जा रहा है।
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