कनाडा के स्कूल का ‘काला और शर्मनाक’ सच, फ़न मिले 751 बच्चों के शव.

कनाडा के स्कूल का ‘काला और शर्मनाक’ सच, फ़न मिले 751 बच्चों के शव.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राहत इंदौरी का शेर है- सारी फितरत तो नकाबों में छिपा रखी थी, सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी थी। आज की कहानी पर ये शेर बड़ा मौजूं है। आज हमको आपको एक देश के काले और शर्मनाक इतिहास के बारे में बताएंगे। जब कनाडा ने आदिवासियों को कथित तौर पर ‘सभ्य’ बनाने की मुहिम चलाई। आप कह रहे होंगे सिविलाइज्ड करना तो बहुत अच्छी बात है, कितना अच्छा देश है अपने नागरिकों के बारे में कितना सोचता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि उन्हें परिवेश में रहने के काबिल कैसे बनाया गया? आज की कहानी ऐसे ही दफ्न इतिहास की है जिसके निशां वर्तमान दौर में धीरे-धीरे धरती का सीना चीरते हुए दुनिया के सामने आ रहे हैं।

कनाडा, उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में बसा क्षेत्रफल के लिहाजे से दुनिया दूसरा सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश। भारत से 12 हजार किलोमीटर दूर लेकिन भारत के लोगों के दिलों के काफी करीब। अमेरिका से सटा हुआ लेकिन मिजाज अमेरिका से बिल्कुल भिन्न। दुनिया के 10 सबसे विकसित देशों में एक शांत और विनम्र। 16 वी शताब्दी के शुरू में ब्रिटिश और फ्रेंच इस जगह पर अपना अधिकार जमा रहे थे, जिसके चलते 1537 में सर्वप्रथम फ्रेंच ने कॉलोनी ऑफ़ कनाडा की स्थापना की।  फ़्रांस ने बड़ी संख्या में कॉलोनियां बसाई। उसके पीछे-पीछे यूनाइटेड किंगडम भी आया। इसके साथ शुरू हुई, कनाडा पर कब्ज़े की  जंग जो अंतत: 1763 में फ़्रांस की हार के साथ समाप्त हुई। बहुत से संघर्षो के परिणामस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ने इसपर अपना अधिकार जमा ही लिया।

 आदिवासियों को कथित तौर पर सभ्य बनाना मुख्य मकसद

जब कनाडा पर ब्रिटेन का एकछत्र राज कायम हो गया, तब उसने अपनी बाकी प्राथमिकताओं पर गौर फ़रमाना शुरू किया। इसमें से एक था, आदिवासियों को कथित तौर पर ‘सभ्य’ बनाना। इसके लिए उसका सबसे बड़ा हथियार बनी, शिक्षा। इसी कड़ी में 17वीं सदी में मिशन स्कूल सिस्टम की शुरुआत की गई। इसे ईसाई मिशनरी यानी धर्म प्रचारक चलाते थे। इन स्कूलों का मुख्य उद्देश्य वहां के स्थानीय निवासियों का पश्चीमीकरण करना था और उन्हें यूरोपीय संस्कृति में ढालना था। साल 1876 में सरकार ने ‘द इंडियन ऐक्ट’ पर मुहर लगा दी।

कनाडा के प्रधान मंत्री जॉन मैकडोनाल्ड ने देश की स्वदेशी आबादी के लिए पूरे देश में आवासीय विद्यालय बनाने के आदेश दिए। इन स्कूलों को चलाने की जिम्मेदारी रोमन कैथोलिक चर्च को दी गई।कैथोलिक चर्च, जिसे रोमन कैथोलिक चर्च के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया का सबसे बड़ा ईसाई गिरजाघर है, दावे के अनुसार इसके सौ करोड़ से अधिक सदस्य हैं। पोप धर्माध्यक्षों के समुदाय के प्रधान हैं। यह यीशु मसीह के सुसमाचार फैलाने, संस्कार करवाने तथा दयालुता के प्रयोग के रूप में खुद को परिभाषित करता है।

स्टोलन लाइव्स के अनुसार, शिक्षकों ने बाद में बच्चों को आय उत्पन्न करने, जानवरों को पालने, कपड़े बनाने और सब्जियां उगाने के लिए इस्तेमाल किया। चर्चों द्वारा संचालित स्कूलों ने स्वदेशी भाषाओं और सांस्कृतिक प्रथाओं के उपयोग पर जबरन प्रतिबंध लगा दिया। कई बच्चों को उनके परिवारों से जबरन अलग कर स्कूलों में रखे गया और जो माता-पिता मना करते, उन्हें कड़ी सज़ा दी जाती थी। 1996 में आवासीय विद्यालय प्रणाली को भंग कर दिया गया।

कनाडा के प्रधानमंत्री ने मांगी माफी

2008 में कनाडाई सरकार ने आवासीय स्कूलों में स्वदेशी बच्चों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक शोषण के लिए एक औपचारिक माफीनामा जारी किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफ़न हार्पर ने संसद में कहा कि उन स्कूलों में बच्चों के साथ जो कुछ भी हुआ वो हमारे देश के इतिहास का दुखद अध्याय है। हम ये मानते हैं उनकी संस्कृति को मिटाने की कोशिश ने अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। सरकार ने 12 हज़ार करोड़ के मुआवज़े का ऐलान किया। साथ ही, ट्रूथ एंड रि-कॉन्सोलिएशन कमीशन की स्थापना भी की।

कमीशन ने बताया सांस्कृतिक नरसंहार

2008 और 2015 के बीच, ट्रूथ एंड रि-कॉन्सोलिएशन कमीशन (टीआरसी) ने स्कूलों के इतिहास का दस्तावेजीकरण करने के लिए 6,000 से अधिक गवाहों से बात की। जिसके बाद अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में टीआसी ने इस प्रणाली को “सांस्कृतिक नरसंहार” के एक रूप के रूप में वर्णित किय। जिसे स्वदेशी बच्चों को उनके परिवारों से अलग करने के लिए ही तैयार किया गया था ताकि उनके सांस्कृतिक संबंधों को अलग किया जा सके और उन्हें यूरोपीय मूल्यों के साथ ढाला जा सके।

4,100 बच्चों की हुई मौत

इन अमानवीय कृतयों का शिकार 150,000 बच्चे बने थे। रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही 4,100 बच्चों की मौत हो गई थी। अब इन बच्चों के अवशेष जमीन के नीचे मिले हैं, जिससे पता चलता है कि इन्हें मारने के बाद दफना दिया गया था, इसके साथ ही मृतक बच्चों में इनकी संख्या भी शामिल नहीं है। यानी अभी तक किसी को इनके बारे में पता ही नहीं था।

आज इस कहानी का जिक्र क्यों?

कनाडा के एक रेजिडेंशियल स्कूल में 751 से अधिक कब्रों के मिलने से सनसनी फैली हुई है। इससे पहले पिछले महीने एक अन्य स्कूल से 215 शव मिलने की खबर आयी थी। ये शव ‘मैरिएवल इंडियन रेजीडेंशियल स्कूल’ से मिले, जो 1899 से 1997 तक चालू था जहां सस्केचेवान की राजधानी रेजिना से 135 किलोमीटर दूर काउसेस फर्स्ट नेशन स्थित है। काउसेस कनाडा का एक मूल निवासी समुदाय है। काउसेस के प्रमुख कैडमस डेलोर्म ने बताया कि जमीन के अंदर की वस्तुओं का पता लगाने वाले रडार से मालूम चला है कि इलाके में कम से कम 600 शव दफन किए गए। रडार के संचालकों ने बताया कि इसके नतीजों में 10 प्रतिशत का अंतर हो सकता है।

पिछले महीने कनाडा के दशकों पुराने स्कूल परिसर में 215 बच्चों के शव दफन पाए गए थे। इनमें तीन वर्ष तक के बच्चों के शवों के अवशेष भी शामिल थे। ये बच्चे ब्रिटिश कोलंबिया में 1978 में बंद हुए ‘कम्लूप्स इंडियन रेजिडेंशियल’ स्कूल के छात्र थे। इन शवों का पता चलने के बाद पोप फ्रांसिस ने दुख जताया था और धार्मिक तथा राजनीतिक प्राधिकारियों से इस ‘‘दुखद घटना’’ का पता लगाने पर जोर दिया था।

जानबूझकर हटाए हए हेडस्टोन

कब्रों पर कोई नाम नहीं है, इसलिए ये समझना मुश्किल है कि यहां क्या हुआ होगा. बता दें कि एक हफ्ते पहले भी कुछ ऐसी अनाम कब्रों का पता चला था। सीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, काउसेस फर्स्ट नेशन के प्रमुख कैडमस डेलोर्मे ने आशंका जाहिर की है कि इन कब्रों के हेडस्टोन या मार्कर को जानबूझकर हटा दिया गया होगा, ताकि किसी को सच्चाई पता नहीं चल सके।

स्कूल में पढ़ने वाले 80 साल के बुजुर्ग ने बताई सच्चाई

80 साल के फ्लोरेंस स्पारवियर ने कहा कि उन्होंने मैरिएवल इंडियन रेजीडेंशियल स्कूल में पढ़ाई की थी। उन्होंने बताया कि नन का रवैया हमारे प्रति बहुत स्वार्थी था। हमें यह सीखना पड़ा कि रोमन कैथोलिक कैसे हुआ जाता है। स्कूल में नन हमारे लोगों की बहुत आलोचना करती थीं और इसका दर्द पीढ़ियों बाद भी दिखता है।

 जो कुछ भी हुआ उसके लिए कनाडा शर्मिंदा: ट्रुडो

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने कहा कि कनाडा के लोग लंबे समय तक चली सरकार की उस नीति से “भयभीत और शर्मिंदा” हैं जिसके तहत मूलनिवासियों के बच्चों को उन बोर्डिंग स्कूलों में भेजा गया था जहां सैकड़ों अनाम कब्रें पाई गई हैं। ट्रुडो ने कहा, “वह एक दर्दनाक सरकारी नीति थी जो कई दशकों तक कनाडा की सच्चाई थी और आज कनाडा के लोग इससे भयभीत और शर्मिंदा हैं कि हमारे देश में ऐसा होता था।

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