Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
अमेरिका में बंदूक को लेकर बहस शुरू हो गयी है,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

अमेरिका में बंदूक को लेकर बहस शुरू हो गयी है,क्यों?

अमेरिका में बंदूक को लेकर बहस शुरू हो गयी है,क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिका के टेक्सास राज्य के एक छोटे शहर उवाल्डे में स्कूल में हुई गोलीबारी से एक बार फिर पूरे देश में बंदूकों को लेकर नये सिरे से बहस शुरू हो गयी है. न तो ये बहस नयी है और न ही अमेरिका के स्कूलों में किसी सिरफिरे का गोली चलाकर बच्चों को मौत के घाट उतारना ही. उवाल्डे के स्कूल का वाकया भी ऐसा ही है, जहां एक अकेले बंदूकधारी ने 19 बच्चों को मार दिया है. भले ही यह मामला एक अंतरराष्ट्रीय खबर बना है, लेकिन ध्यान देनेवाली बात यह है कि इस साल अब तक स्कूलों में गोलीबारी की 27 घटनाएं हो चुकी हैं.

स्कूलों में होने वाली गोलीबारी की घटनाओं पर नजर रखनेवाले संगठन एजुकेशन वीक के अनुसार, 2018 से लेकर अब तक ऐसी 119 घटनाएं हुई हैं. ये वे घटनाएं हैं, जिनमें कोई न कोई घायल हुआ या किसी की मौत हुई है. इन आंकड़ों में वैसी घटनाएं शामिल नहीं हैं, जहां गोलियां चली, पर कोई घायल नहीं हुआ है.

स्कूलों के अलावा अलग-अलग जगहों पर ऐसी घटनाओं का आंकड़ा जुटानेवाली गन वायलेंस आर्काइव नामक एक स्वतंत्र संस्था के अनुसार, अमेरिका में इस साल गोलीबारी की दो सौ से अधिक घटनाएं हुई हैं और इस रिकार्ड में वही घटनाएं दर्ज हैं, जिसमें चार या चार से अधिक लोग मारे गये हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में लोगों के पास बंदूक होना और उसका बेजा इस्तेमाल करना कितना घातक रूप ले चुका है.

ऐसे में यह सवाल बार बार उठता है कि अगर यह समस्या इतनी खतरनाक है, तो इस पर अमेरिकी सरकारें क्यों कुछ नहीं करती हैं. बंदूकों पर रोक लगाने का विरोध करनेवालों का तर्क है कि बंदूक रखना हर अमेरिकी का नैसर्गिक अधिकार है और सरकारों द्वारा नियम बनाये जाने से यह समस्या नहीं सुलझेगी.

ये तर्क निहायत ही गलत है क्योंकि दुनिया के कई देशों में ऐसी घटनाओं के बाद सरकारों ने जब नियम बनाकर बंदूक रखने और लाइसेंस लेने की प्रक्रिया को निगरानी के दायरे में रखा, तो इन घटनाओं में बहुत कमी आयी. स्कॉटलैंड में 1996 में ऐसी एक घटना हुई थी, जिसमें पंद्रह बच्चे और एक शिक्षक की मौत हो गयी थी. इस घटना के बाद ब्रिटेन ने बंदूकों को लेकर नियम कड़े कर दिये और तब से आज तक ब्रिटेन में इस तरह की कोई और घटना नहीं हुई है.

ब्रितानी सरकार ने इस घटना के बाद आम लोगों के हैंडगन रखने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसी तरह नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में स्कूलों में गोलीबारी की घटनाओं के बाद बंदूक से जुड़े कानूनों को कड़ा किया गया और गोलीबारी की घटनाओं पर रोक लगाना संभव हो पाया.

लेकिन अमेरिका में सैकड़ों ऐसी घटनाओं और छोटे-छोटे बच्चों के मारे जाने के बावजूद आज भी बंदूकों को लेकर नियम बेहद ढीले हैं तथा पिछले कई सालों में इन कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. आम तौर पर कोई भी अमेरिकी नागरिक बंदूकों की दुकान में जाकर किसी भी तरह के हथियार आसानी से खरीद सकता है. इन हथियारों में असॉल्ट राइफल तक शामिल होते हैं, जिनके लिए लाइसेंस लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती है.

ऐसे में अमेरिकी आबादी के एक हिस्से के पास कई हथियार हैं. आकड़ों के अनुसार, लगभग 33 करोड़ की अमेरिकी जनसंख्या की तुलना में अमेरिकी लोगों के पास हथियारों की संख्या 40 करोड़ से अधिक है यानी हर अमेरिकी के पास औसतन एक से अधिक हथियार हैं. जानकार मानते हैं कि किशोरवय लड़कों और आम तौर पर लोगों के पास हथियार होना स्कूलों या मॉलों में होनेवाली गोलीबारी का एक बड़ा कारण है.

स्कूली हिंसा के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि हमलावर मानसिक रूप से परेशान है, अकेलेपन या अवसाद का शिकार है. ऐसे लोगों के पास घर में आसानी से हथियार उपलब्ध होना कहीं से भी ठीक नहीं है. दिसंबर के महीने में इसी तरह की एक घटना में एक किशोर ने अपने ही स्कूल के बच्चों पर गोलियां चलायी थी. इस मामले में पहली बार हमलावर के माता-पिता पर भी केस चलाया गया, लेकिन इसके बावजूद बंदूकों को लेकर किसी तरह के नये नियम नहीं बनाये गये.

टेक्सास की घटना के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बार फिर कहा है कि इस मामले में नियमों को बदलने की जरूरत है, लेकिन वे भी जानते हैं कि इस मामले में सीनेट उनका साथ नहीं देगी. जानकार सुझाते हैं कि बंदूकों की खरीद पर रोक न भी लगायी जाए, तो जो बंदूक खरीद रहा हो, उसकी पृष्ठभूमि की जानकारी रखना और मिलिट्री ग्रेड के हथियारों की खरीद पर रोक लगाने से भी हिंसा पर काबू पाया जा सकता है.

लेकिन अमेरिकी सीनेट इस मामले में भी साथ नहीं देती है. इसके पीछे गन लॉबी का प्रभाव तो है ही, साथ ही बंदूकों को रखने का मुद्दा एक बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलें, तो हम अमेरिकी संविधान के ‘सेकेंड अमेंडमेंट’ तक पहुंचते हैं, जो कहता है कि स्वतंत्र राज्य की सुरक्षा के लिए सेना की जरूरत है, तो आम आदमी के हथियार रखने की आजादी पर कोई अंकुश नहीं होगा.’

हालांकि इसकी अलग-अलग परिभाषाएं हो सकती हैं, पर आम तौर पर इसे बंदूक रखने की आजादी से जोड़कर देखा जाता है. रिपब्लिकन पार्टी खास तौर पर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के अमेरिकियों के वोटों के कारण इस कानून में बदलाव नहीं चाहती है और बंदूक रखने का समर्थन करती है. इसमें डेमोक्रेट्स भी पीछे नहीं हैं और यही कारण है कि बाइडेन चाहे जितना ही क्यों न चाह लें, सीनेट में उन्हें शायद ही पूरी तरह समर्थन मिले.

अमेरिका भले ही एक प्रगतिशील मुल्क हो, लेकिन बंदूक और हिंसा के मामले में यह एक अत्यंत पिछड़े नियमों वाला देश है, जहां लोग अकारण ही बंदूक रखने को अपनी आजादी से जोड़कर देखते हैं. जानकारों के अनुसार अमेरिका का इतिहास हिंसक रहा है.

पहले ब्रिटेन से आजादी की लड़ाई और फिर गृहयुद्ध के कारण गोरे अमेरिकियों में काले लोगों के प्रति हिंसा का भाव मौजूद ही रहा. इतना ही नहीं, पचास और साठ के दशक में सिविल राइट्स आंदोलन के दौरान भी गोरे अमेरिकियों ने बंदूक को अपनी अस्मिता और रक्षा से जोड़कर देखा. यही कारण है कि आज भी बंदूकों के मामले में यह देश नये नियम नहीं बनाता है, भले ही हर साल बर्बर बंदूक प्रेम के कारण बच्चे और अन्य लोग गोलीबारी का शिकार होते रहते हैं.

Leave a Reply

error: Content is protected !!