इंजीनियरिंग की शिक्षा मातृभाषा में देने का फैसला ऐतिहासिक है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सशक्त भारत-निर्माण एवं प्रभावी शिक्षा के लिए मातृभाषा में शिक्षा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा को अपने समाज एवं राष्ट्र के अनुरूप संचालित करने और अपनी भाषाओं में शिक्षण करने से ज्ञान के नए क्षितिज खुलेंगे, नवाचार के नए-नए आयाम उभरेंगे। मातृभाषा में चिंतन एवं शिक्षण से सृजनात्मक एवं स्व-पहचान की दिशाएं उद्घाटित होगी। वास्तव में स्व-भाषाएं विचारों, विचारधाराओं, कल्पनाओं और अपने व्यापक सामाजिक-राष्ट्रीय दर्शन की स्पष्टता का माध्यम बनती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित करते हुए मातृभाषा को प्रतिष्ठापित करने का अनूठा उपक्रम किया जा रहा है। इसको लेकर देश में मातृभाषा एवं क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने एवं इन्हीं भाषाओं में उच्च शिक्षा दिये जाने की स्थितियां निर्मित होने लगी है। ऐसा ही निर्णय अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने अपने से संबद्ध इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिये 2021-22 के शैक्षणिक सत्र के लिये लिया है, जिसके अन्तर्गत क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति दी जा रही है।
परिषद ने अपनी नवीनतम अनुमोदन प्रक्रिया में इस तरह के प्रावधान किये हैं, यह कदम मोदी सरकार की मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास का हिस्सा है और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत इसकी शुभ शुरुआत होने जा रही है। नवंबर 2020 में, शिक्षा मंत्रालय ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसमें कॉलेजों को मातृभाषा में इंजीनियरिंग की शिक्षा देने की अनुमति दी गई थी।
एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे के अनुसार क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की शिक्षा दिये जाने की पेशकश करने के इच्छुक कॉलेज परिषद के साथ आवेदन कर सकते हैं और यदि वे आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तो उन्हें पाठ्यक्रम शुरू करने की मंजूरी दी जाएगी। परिषद ने अभी के लिए बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल और तेलुगु सहित आठ क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्य-सामग्री के अनुवाद पर काम शुरू कर दिया है। सहस्रबुद्धे के अनुसार, देशभर में 130 से अधिक शिक्षक, विभिन्न भाषाओं में विशेषज्ञता के साथ इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम को अंग्रेजी से आठ क्षेत्रीय भाषाओं- बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल और तेलुगु में अनुवाद करने पर काम कर रहे हैं।
परिषद ने अपने संबद्ध कॉलेजों में 83 हजार छात्रों पर एक सर्वेक्षण किया था ताकि किसी की मातृभाषा में निर्देश चुनने की उनकी इच्छा की जांच की जा सके। उनमें से लगभग 44 प्रतिशत छात्रों ने मातृभाषा में शिक्षा लेने के लिये अपनी रुचि दिखाई थी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में क्षेत्रीय भाषा के विकल्प की पेशकश पर भी तथासमय निर्णय लिया जाएगा।
समिति के सूत्रों के अनुसार, आईआईटी में लगभग 15-20 प्रतिशत छात्रों ने भी अपनी मातृभाषा में इंजीनियरिंग करने की इच्छा दिखाई है। परिषद ने केवल पारंपरिक इंजीनियरिंग विषयों- मैकेनिकल, सिविल, कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक के लिए विकल्प खुला रखा है। इसने इन विषयों के लिए अध्ययन सामग्री पर भी काम करना शुरू कर दिया है। एमओई ने लोकसभा में क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री की उपलब्धता के संबंध में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह भी कहा कि उसने विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्य-सामग्री का अनुवाद करना शुरू कर दिया है।
स्वभाषा एवं मातृभाषा में शिक्षा अधिक प्रभावी एवं उपयोगी है, क्योंकि विद्यार्थी मातृभाषा में शिक्षा को आसानी से ग्रहण करता है, इसमें विद्यार्थी की ग्रहण क्षमता ज्यादा होती है। क्योंकि अपनी भाषा के साथ जो मजबूत मनोबल एवं आत्मीयता जुड़ी होती है, उसी से विद्यार्थी का समग्र व्यक्तित्व विकास होता है, उसकी तार्किक दृष्टि भी विकसित होती है।
शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि मातृभाषा में विद्यार्थी का शिक्षण उसके मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक और नैतिक विकास को भी प्रभावित करता है। मातृभाषा में शिक्षण सरल और सहज बन जाता है। परिणाम विद्यार्थी शनैः-शनैः रुचिकर क्षेत्रों में दक्षता हासिल कर अपने क्षेत्र में महारत हासिल कर लेते हैं। विद्यार्थी में यह दक्षता ही नए विचारों को पनपाने में और उसकी अंतर्दृष्टि को विकसित करने में काम आती है।
वर्तमान समय में स्व-भाषा एवं मातृभाषा का महत्व एवं व्यक्तित्व-निर्माण की जिम्मेदारी अधिक प्रासंगिक हुई है। क्योंकि सर्वतोमुखी योग्यता की अभिवृद्धि के बिना युग के साथ चलना और अपने आपको टिकाए रखना अत्यंत कठिन होता है। नई शिक्षा नीति ने इस बात को गंभीरता से स्वीकारा है, निश्चित ही यह भारत को एक ज्ञानमय समाज में रूपांतरित करने वाली सफल योजना साबित होगी। हमारे पास आज दुनिया तक पहुंचने का शानदार सु-अवसर है जो अब से पहले शायद कभी नहीं था।
हमारे पास आज ऐसा नेतृत्व है, जो इन तमाम बदलावों को साकार करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है। हमें सिर्फ सकारात्मक प्रयासों के साथ सही दिशा में बढ़ने एवं मातृभाषा में शिक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। हमारा देश दुनिया का सबसे युवा देश है। अपनी इस युवा जनशक्ति का सदुपयोग कर हम महाशक्ति बनने की दिशा में सार्थक हस्तक्षेप कर सकते हैं। अपने युवाओं को नये कौशलों और नये ज्ञान से लैस कर दुनिया में परचम लहरा सकते हैं। जिसमें स्वभाषा, स्व-संस्कृति एवं स्व-पहचान की सार्थक भूमिका है।
भारत सुपर पावर बनने के अपने सपने को साकार कर सकता है। इस महान उद्देश्य को पाने की दिशा में विज्ञान, तकनीक और अकादमिक क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान करने के अभियान को तीव्रता प्रदान करने के साथ मातृभाषा में शिक्षण को प्राथमिकता देनी होगी। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आधार बनने वाली इस नयी शिक्षा नीति से इस दिशा में बड़ी उम्मीद है।
नयी शिक्षा नीति के साथ जुड़े नए आयाम, नए मुकाम हासिल कराने में मातृभाषा में शिक्षण की महती भूमिका होगी। नई शिक्षा नीति जिस तरह से मातृ भाषा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ नए भारत के निर्माण का आधार प्रस्तुत करती है, इससे नव-सृजन और नवाचारों के जरिए समाज एवं राष्ट्र में नए प्रतिमान उभरेंगें। मातृभाषा जब शिक्षा का माध्यम बनेगी तो मौलिकता समाज में रचनात्मकता का अभियान छेड़ेगी। भाषा और गणित को नई नीति में प्राथमिकता मिलना बच्चों में लेखन के कौशल और नवाचार का संचार करेगा। सृजनात्मक गतिविधियों का वातावरण पैदा करेगा।
शिक्षण के परम्परागत तौर-तरीकों को नई टैक्नोलॉजी के जरिए नवोन्मेष के साथ कहानी, नाटक, समूह चर्चाएं, लेखन और स्मार्ट डिसप्ले बोर्ड, अध्ययन, अध्यापन और संवाद की नई संस्कृति का विकास नई शिक्षा नीति को वाकई नया तो बनाता है, स्व-संस्कृति से जोड़ता भी है। तकनीकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की पहल कोरोना संकट के कारण नई नीति को इस दृष्टि से और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में ले जायेगी। इसके लिए कंप्यूटर, लैपटॉप व फोन आदि के साथ मातृभाषा के जरिए शिक्षण को रोचक बनाने में टैक्नोलॉजी शिक्षा के भावी परिदृश्य को बहुत हद तक बदल भी देगी।
मातृभाषा सम्पूर्ण देश में सांस्कृतिक और भावात्मक एकता स्थापित करने का प्रमुख साधन है। भारत का परिपक्व लोकतंत्र, प्राचीन सभ्यता, समृद्ध संस्कृति तथा अनूठा संविधान विश्व भर में एक उच्च स्थान रखता है, उसी तरह भारत की गरिमा एवं गौरव की प्रतीक मातृ भाषाओं को हर कीमत पर विकसित करना हमारी प्राथमिकता होनी ही चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में हिन्दी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को स्कूलों, कॉलेजों, तकनीकी शिक्षा में प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए, इस दिशा में वर्तमान सरकार के प्रयास उल्लेखनीय एवं सराहनीय है, लेकिन उनमें तीव्र गति दिये जाने की अपेक्षा है।
क्योंकि इस दृष्टि से महात्मा गांधी की अन्तर्वेदना को समझना होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाषा संबंधी आवश्यक परिवर्तन अर्थात् हिन्दी को लागू करने में एक दिन का विलम्ब भी सांस्कृतिक हानि है। मेरा तर्क है कि जिस प्रकार हमने अंग्रेज लुटेरों के राजनैतिक शासन को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया, उसी प्रकार सांस्कृतिक लुटेरे रूपी अंग्रेजी को भी तत्काल निर्वासित करें। लगभग सात दशक के आजाद भारत में भी हमने हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषाओं को उनका गरिमापूर्ण स्थान न दिला सके, यह विडम्बनापूर्ण एवं हमारी राष्ट्रीयता पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह है।
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