कृष्ण भगवान की लीला अपरम्पार है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पाकिस्तान के हैं फरीद एयाज! मशहूर कव्वाल हैं। जब झूम कर गाते हैं कन्हैया का भजन तो महफ़िल लूट लेते हैं। उस देश, उस शहर में, जो कन्हैया को भूल चुका है। “ओ कन्हैया, याद है कुछ भी हमारी…” लगता है जैसे गा नहीं रहे, बल्कि पुकार रहे हैं कन्हैया को… बताते चलें, यह गीत लिखा था नवाब सादिक जंग बहादुर ने, जो बहावलपुर के अंतिम नवाब थे। बहावलपुर आजादी के समय पाकिस्तान में शामिल हुआ था।
अच्छा आपने नुसरत फतेह अली खान की वह कव्वाली सुनी है? “धूम मची है सारे जग में तिहारी, बल बल जाऊं तोरे किशन मुरारी… फिर से बजाओ बाँसुरिया बाबा मैं तेरी पूजा करूंगी…” जिसको छा जाना कहते हैं, नुसरत उसी तरह छा गए हैं। वैसे नुसरत तो मीरा के भजनों को भी क्या कमाल गाते हैं। सांसों की माला में सुमरुं मैं पी का नाम… अद्भुत।
छोड़िये पाकिस्तान को! हसरत मोहानी लिखते हैं, “हसरत की भी कुबूल हो मथुरा में हाजिरी, सुनते हैं आशिकों पे तुम्हारा करम है आज!” वे यहीं नहीं रुकते। आगे कहते हैं- पैगाम-ए-हयात-ए-जावेदां था, हर नगमा-ए-कृष्ण बांसुरी का! बताते हैं कि मोहानी साहब हर जन्माष्टमी को मथुरा जरूर जाते थे। याद दिला दें, कि हसरत मोहानी उन लोगों में से थे जिन्होंने कश्मीर में 370 लगाये जाने का मुखर विरोध किया था।
आइये, रसखान पर चलते हैं। वे तो जैसे घोषित कर के बैठ गए थे, “लाड़लो छैल वही तो अहीर को पीर हमारे हिये की हरैगो।” हालांकि जो बात वे अपने लिए कहते हैं, वही समस्त संसार के लिए सत्य है। हृदय की पीर तो बस वह अहीर का बालक ही हरेगा….और तो और, गुरु गोविंद सिंह जी कहते हैं- भगवान प्रसन्न भयो पिख कै, कवि ‘स्याम’ मनो मृग देख मृगी॥ जैसे मृग को देख कर मृगी प्रसन्न होती हैं, वैसे ही श्याम को देख कर मैं… श्याम को देख कर सबकी यही गति होनी है जी।
जानते हैं, उस मुरलीवाले का जादू ही ऐसा है कि व्यक्ति में थोड़ी सी भी सभ्यता के गुण आ जाएं तो वह मोहा जाता है कन्हैया पर। उसके सम्मोहन से कोई सभ्य व्यक्ति बच ही नहीं सकता। सभ्यता जब जब सात्विक आनन्द ढूंढेगी, उत्सव खोजेगी, प्रेम जोहेगी, तो उसे केवल और केवल कृष्ण की शरण में ही जाना होगा। आनन्द वहीं है। बैजू बावरा के बहाने शकील बदायुनी यूँ ही तो नहीं कहते- मन तड़पत हरि दर्शन को आज…संसार जैसे जैसे सभ्य होता जाएगा, वैसे वैसे कृष्ण भक्तों की संख्या बढ़ती जाएगी। वे सबके हिय में विराजने लगेंगे।
आभार- सर्वेश तिवारी श्रीमुख, गोपालगंज
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