आपकी साधना का असर दिख रहा था, बस आप नहीं दिख रहे थे गुरुजी…..
पंजवार में मैरीकॉम स्पोर्ट्स अकादमी में खेल स्पर्धाओं में ग्रामीण बालिकाओं के शानदार प्रदर्शन पर बज रहीं थी तालियां
गुरुजी स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी के साधना के प्रतीक प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज का उपवन का कण कण अप्रतिम उत्साह का कर रहा था संचार
✍️गणेश दत्त पाठक, अयोध्यापुरी, सिवान’ मो. 7261832114
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
सीवान जिला मुख्यालय से सुदूर स्थित रघुनाथपुर का पंजवार गांव। निष्काम कर्मयोगी गुरुदेव घनश्याम शुक्ला जी की साधना स्थली। केजी से पीजी तक की पढ़ाई का ग्रामीण स्थल। भोजपुरी की शाश्वत साधना का स्थल। मंगलवार का दिन। दोपहर का समय। प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज का उपवननुमा प्रांगण। जगह-जगह लगे झंडे। आसमान में खिली धूप। ग्रामीण बालिकाओं की प्रतिभा उल्लास और उमंग के सतरंगी रंग में रंगी नजर आ रही थी।
खेल स्पर्धाओं में भागीदारी के उत्साह की बानगी से पूरा वातावरण ऊर्जस्वित, तरंगित हो रहा था। कण कण में एक शाश्वत कर्मयोगी की निष्काम साधना के पुष्प खिलते दिख रहे थे। लग रहा था अभी गुरुजी का मुस्कुराता चेहरा सामने आएगा और अपनी नैसर्गिक अंदाज में कह उठेगा- बाबू आ गइल…..। लेकिन कहां यह संभव था? आंखें चारों तरफ घूम रही थी। पर यथार्थ बोध आंखों को बार बार छलका जा रहा था। गुरुदेव कहां थे वहां? वहां तो सिर्फ उनकी साधना का शाश्वत प्रसाद था। वहां तो सिर्फ उनकी प्रेरणा का प्रबल चमत्कार था। वहां तो सिर्फ उनके त्याग के पुण्य का गंभीर समंदर था। वहां तो सिर्फ उनके संपूर्ण समर्पण का शाश्वत सौगात था….
गुरुदेव के आत्मीय शिष्य संजय सिंह अपने गुरु के सपनों को साकार करने में अनवरत जुटे हैं। गुरुदेव का जिक्र उनको बार बार विचलित कर जाता है। कुछ पल के लिए भावनाएं सब कुछ ठहरा जाती है। फिर गुरुदेव के सपनों की फिक्र संजीदा भी कर जाती हैं। गुरुदेव के पुत्र लालबाबू शुक्ला भी पिता के सपनों को संजोने में तन मन से जुटे हैं। अन्य पंजवार के ग्रामीणजन और गुरुजी की बगिया के शिक्षकगण भी प्रभा प्रकाश के उपवन में अपने प्रयासों के पुष्प खिला रहे हैं। हे परमपिता परमेश्वर! इन्हें अपने अविरल ऊर्जा से अभिसिंचित करते रहें ताकि गुरु जी की साधना क्षेत्र को ज्ञान के प्रकाश से सदा आलोकित करती रहे।
कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे रघुनाथपुर के बीडीओ श्री अशोक कुमार पंजवार के कर्मयोगी की साधना गाथा सुनकर अचंभित, अभिभूत, आश्चर्यचकित रहे। प्रतिभाओं के उत्साहवर्धन के साथ हरसंभव संवेदनशील सहयोग का उनका संकल्प गुरुजी की साधना को सविनय नमन रहा।
वहां गुजरा हर पल सकारात्मकता की बयार बहा रहा था। वहां गुजरा हर पल संकल्प की संवेदना को झंकृत कर रहा था। वहां गुजरा हर पल गुरुदेव को याद कर रहा था..पर मन की सिसक किसको दिखाता ? वह तो बस अंदर ही अंदर गुरुजी की याद में रोए जा रहा था….
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गुरुजी स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक नजर:
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