बिहार में बढ़ चुकी है लोकसभा चुनाव की सरगर्मी-उपेंद्र कुशवाहा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा एक निमित मात्र हैं। असली लड़ाई जाति पर आधारित वोट बैंक को बचाने और बढ़ाने की है। प्रदेश में कुशवाहा जाति की संख्या सात से आठ प्रतिशत मानी जाती है। यह वोट की राजनीति के लिए यादव और मुस्लिम के बाद तीसरा सबसे बड़ा सामाजिक आधार है। कोई भी दल इनकी अनदेखी नहीं कर सकता है।

बन रही है शक्ति संतुलन की स्थिति

भाजपा से संबंध तोड़कर नीतीश कुमार के तेजस्वी यादव के साथ हाथ मिला लेने के बाद से बिहार की राजनीति में तराजू का एक पलड़ा भारी होता दिखने लगा था। ऐसे में भाजपा के साथ चिराग पासवान की दोस्ती के फिर से परवान चढ़ने और अब जदयू-राजद की संयुक्त शक्ति से उपेंद्र कुशवाहा के पीछा छुड़ा लेने के बाद दोनों गठबंधनों में शक्ति संतुलन की स्थिति बनती नजर आ रही है।

लोकसभा चुनाव की सरगर्मी बिहार में कुछ ज्यादा बढ़ चुकी है। तीन दिन बाद पूर्णिया में महागठबंधन के सभी सातों घटक दलों की संयुक्त रैली है। इसी दिन भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी पटना और वाल्मीकिनगर में कार्यक्रम को संबोधित करने वाले हैं।

सज चुका है आरपार का मोर्चा

स्पष्ट है, दोनों गठबंधनों का आरपार का मोर्चा सज चुका है। ऐसे में वोटों के जोड़ने-तोड़ने का खेल चरम पर चढ़ चुका है। कुशवाहा के नए कदम से राजनीति की व्याख्या कुछ ज्यादा ही तार्किक तरीके से होने लगी है। इसे भाजपा के वोट बैंक में वृद्धि से जोड़कर देखा जाने लगा है।

जदयू से संबंध तोड़कर अलग पार्टी बनाने की घोषणा के अगले ही दिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कुशवाहा से मुलाकात कर ऐसी संभावना को हवा दी है। लालू प्रसाद की विरासत संभाल रहे तेजस्वी के पास भाजपा की परिमार्जित शक्ति एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभावकारी व्यक्तित्व से मुकाबले के लिए अभी भी माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण का संबल है।

नीतीश कुमार के पास है बड़ा आधार

पौने दो दशक से बिहार की सत्ता की बागडोर थामने वाले नीतीश कुमार के पास भी महिला सशक्तिकरण के रूप में जीविका दीदियों का बड़ा आधार है। उन्होंने अपनी राजनीति के प्रारंभ में कोईरी-कुर्मी के रूप में लव-कुश समीकरण के रूप में सामाजिक आधार तैयार कर बिहार की सत्ता प्राप्त की थी। नीतीश के इस आधार को कुशवाहा ने फिर से तोड़ने का प्रयास किया है। राष्ट्रीय लोक जनता दल के नाम से एक नई पार्टी बनाने के बाद जदयू नुकसान का आकलन किया जा रहा है।

ऐसा इसलिए भी कि नीतीश के लव-कुश समीकरण से कुशवाहा को अलग करके नहीं देखा जा सकता है। कोईरी वोटरों पर उनकी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में तय है कि नए संदर्भ में नीतीश के सामने कोईरी वोटरों को अपना बनाए रखने की बड़ी चुनौती होगी। इससे निपटने के लिए नीतीश ने व्यवस्था भी पहले से ही कर रखी है। इसी बिरादरी के उमेश कुशवाहा को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दे रखी है।

तेजस्वी पहले से ही कर रहे प्रबंधन

महागठबंधन की सरकार बनने के साथ ही तेजस्वी यादव को उपेंद्र कुशवाहा के अगले कदम का अहसास हो चुका था। इसीलिए उन्होंने पहले से ही अपनी सरकार में आलोक मेहता का ओहदा ऊंचा कर रखा है। कोईरी समुदाय से आने वाले आलोक मेहता का स्थान राजद कोटे के मंत्रियों में तेजस्वी के बाद दूसरे नंबर पर है। उपेंद्र कुशवाहा के जदयू से अलग होने के पूर्व से ही आलोक मेहता राजद के कार्यक्रमों में अपनी बिरादरी को पसंद आने वाले बयान जारी करते आ रहे हैं।

जदयू संसदीय बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष के नाते उपेंद्र कुशवाहा ने रविवार को पार्टी को बचाने के नाम पर जब मंथन शुरू किया तो उनके बैनर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर लगी थी।

तीर का निशान भी था, लेकिन नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल के गठन की घोषणा के लिए आयोजित संवाददाता सम्मेलन के बैनर पर मुख्यमंत्री की तस्वीर नहीं थी।

कई नेताओं की गाड़ी से उतरा जदयू का झंंडा

बैनर पर उपेंद्र कुशवाहा के अलावा जननायक कर्पूरी ठाकुर, स्वामी सहजानंद सरस्वती, शहीद जगदेव प्रसाद आदि की तस्वीर लगा दी गई थी। रविवार की बैठक में जदयू का चुनाव चिन्ह तीर भी बैनर का हिस्सा था। आज के बैनर से वह गायब था।

संवाददाता सम्मेलन में पहुंचे उपेंद्र समर्थक नेताओं की गाड़ियों पर नीतीश कुमार की तस्वीर के साथ जदयू का वह झंडा लगा था। हाल के निकलने के साथ ही कई नेताओं की गाड़ियों से जदयू का झंडा उतर गया।

नई पार्टी के गठन की घोषणा के बाद उत्साही कार्यकर्ताओं ने राज्य का मुख्यमंत्री कैसा हो, उपेंद्र कुशवाहा जैसा हो का नारा बुलंद किया। कुछ गाड़ियां ऐसी भी थीं, जो उपेंद्र कुशवाहा के कार्यक्रम के बाद जदयूू कार्यालय में नजर आई।

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने भी अपने संवाददाता सम्मेलन में इशारा किया कि उन्हें गतिविधियों की जानकारी उपेंद्र कुशवाहा के लोग ही दे रहे थे।

सिंह ने दावा किया कि जदयू का कोई नेता-कार्यकर्ता उपेंद्र के साथ नहीं गया है। जल्द ही उन लोगों को वे संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित करेंगे, जिन्हें उपेंद्र अपना बता रहे हैं।

ये नेता ललन सिंह के साथ मंच पर दिखे

उपेंद्र के एक सहयोगी धीरज कुशवाहा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ मंच पर थे। उनके एक अन्य करीबी अभिषेक झा भी मंच पर उपस्थित थे। कुशवाहा समाज से आने वाले नंदकिशोर कुशवाहा और विधान परिषद सदस्य संजय कुमार सिंह ऊर्फ गांधीजी भी जदयू कार्यालय के मंच पर थे।

अभिषेक झा से संवाददाताओं ने सवाल किया- आप कब तक जदयू में रहेंगे तो उनका जवाब था- जबतक सूरज चांद रहेगा। उपेंद्र कुशवाहा के सम्मेलन में जदयू के एकमात्र विधान परिषद सदस्य रामेश्वर महतो उपस्थित थे। कुछ पूर्व विधान परिषद सदस्य भी थे।

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