ध्वस्तीकरण के धुरंधरों को जनता का समर्थन मिला.

ध्वस्तीकरण के धुरंधरों को जनता का समर्थन मिला.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

शठे शाठ्यम समाचरेत। आमतौर पर कहावतें और सुक्तियां सिर्फ आईना दिखाने के लिए होती हैं। बहुत कम ही लोग इस पर अमल करते हैं। प्रभावी रूप से पहली बार दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करने संबंधी संस्कृत की इस सूक्ति पर देश भर में तेजी से अमल किया जाना शुरू हुआ है। उत्तर प्रदेश में इस कदम के प्रभावी इस्तेमाल के बाद पूरे देश में यह मुहिम जोर पकड़ चुकी है।

बांबे बुलडोजर के नाम से मशहूर थे जीआर खैरनार : 1985 में बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) में वार्ड अधिकारी के रूप में जिम्मेदारी संभालते हुए जीआर खैरनार ने अतिक्रमण के खिलाफ सघन अभियान चलाया था। उन्होंने सरकारी जमीन और सड़क को मुक्त कराने के लिए बेहद सख्त रवैया अपनाया। अपनी आत्मकथा ‘राही अकेला’ में उन्होंने लिखा है, ‘एक-आध को छोड़कर पूरी महानगर पालिका भ्रष्टाचार, दादागिरी और लापरवाही के दलदल में आकंठ डूबी थी। अवैध निर्माण पर नजर रखने वाले इंजीनियरों की पांचों अंगुलियां घी में थीं। मैंने किसी की परवाह नहीं की। तय कर लिया कि कानून के हिसाब से जो सही होगा वही करूंगा।’ किसी सिफारिश को कभी नहीं सुना। बाद में वह बीएमसी के डिप्टी कमिश्नर भी बने।

jagran

46 साल पहले तुर्कमान गेट पर चला था बुलडोजर : बात आपातकाल के समय की है। संजय गांधी के निर्देश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के तत्कालीन चेयरमैन जगमोहन के नेतृत्व में अप्रैल, 1976 में तुर्कमान गेट पर अतिक्रमण हटाने की बड़ी कार्रवाई की गई थी। स्थानीय लोगों के विरोध के कारण कई बार डीडीए अधिकारियों को तुर्कमान गेट से बैरंग वापस लौटना पड़ा था। उसके बाद उन्होंने अलग-अलग चरणों में इस अभियान को चलाने का फैसला किया।

13 अप्रैल, 1976 की सुबह आसफ अली रोड की तरफ से एक पुराना बुलडोजर तुर्कमान गेट की ओर पहुंचा। उसके पीछे मजदूरों से भरा एक ट्रक और जीप में डीडीए अधिकारी थे। ट्रांजिट कैंप के पास आकर बुलडोजर ठहरा तो लोगों ने नारेबाजी शुरू कर दी। डीडीए अधिकारियों ने कहा कि ट्रांजिट कैंप के लोगों को रंजीत नगर ले जाना है। यह कहकर कैंप की दीवारें तोड़ दी गईं। उसके दो दिन बाद फुटपाथ तोड़ने की बात कहकर कार्रवाई शुरू हुई।

आहिस्ता-आहिस्ता अवैध तरीके से बने घर भी टूटने लगे। बुलडोजर की संख्या भी एक से बढ़कर तीन हो गई थी। कार्रवाई रोकने के लिए स्थानीय लोग तत्कालीन पार्षद अर्जन दास के पास पहुंचे। उन्हें संजय गांधी का नजदीकी बताया जाता था। वह उन्हें लेकर उस समय के सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल के पास पहुंचे। मंत्री ने जगमोहन को फोन करके कार्रवाई रोकने को कहा, लेकिन जब लोग वापस पहुंचे तो तुर्कमान गेट का नक्शा बदला हुआ था। उसके बाद अतिक्रमणकारियों में जगमोहन के नाम का डर पैदा हुआ था।

jagran

काशी में बाबा हरदेव ने अवैध कब्जे पर चलाया था डंडा : हरदेव सिंह, वो अधिकारी हैं जिन्हें बेहद घनी बसी काशी में गुम हो चुकीं नालियों को खोज निकालने और गलियों में तब्दील हो चुकीं सड़कों को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए आज भी जाना जाता है। हरदेव सिंह 1997 से 1999 तक बनारस के मुख्य नगर अधिकारी (नगर आयुक्त) व विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष थे। अवैध कब्जे के खिलाफ अभियानों के लिए काशी ने उन्हें बाबा हरदेव सिंह नाम दिया। बनारस में गलियों से सड़कों तक नालियों पर अवैध कब्जा था। उन्होंने नालियों की मुक्ति के लिए अभियान छेड़ा तो जबरदस्त विरोध शुरू हुआ।

व्यापारी धरने पर बैठे और जनप्रतिनिधि भी उनके समर्थन में आगे आए। खूब दबाव बनाया गया, लेकिन बाबा हरदेव पीछे नहीं हटे। गली बन चुके लंका-नरिया मार्ग के चौड़ीकरण का भी खूब विरोध हुआ। एक मंदिर के पुजारी तो अनशन पर बैठ गए। विरोध के बाद भी बाबा ने काम पूरा किया और आज यह टू- लेन रोड है। रथयात्रा मार्ग के चौड़ीकरण के लिए भी उन्होंने अभियान चलाया था। शिवपुर से लंका तक जगह-जगह कब्जा जमाने वालों पर भी उनका डंडा चला। सेवानिवृत्त बाबा हरदेव सिंह कहते हैं, ‘विरोध तो बहुत हुआ, लेकिन यह फरमान जारी होते ही कि इस दिन फलां क्षेत्र में अवैध कब्जा हटाया जाएगा, लोग खुद आगे आते। बुलडोजर भी खूब दौड़े। कुछ लोगों ने मेरा नाम ही बुलडोजर बाबा रख दिया था।’

बुलडोजर मंत्री की उपाधि से जाने गए : मध्य प्रदेश में 32 साल पहले बाबूलाल गौर ने बुलडोजर से अतिक्रमण ढहाने का ऐसा अभियान चलाया था कि उन्हें नगरीय विकास मंत्री के बजाय बुलडोजर मंत्री कहा जाने लगा था। उनका निर्णय भी इतना कठोर होता था कि बुलडोजर चल पड़ा तो अतिक्रमण ध्वस्त हो जाने तक वे किसी की सुनते नहीं थे। बाबूलाल गौर के बुलडोजर ने अतिक्रमण विरोधी और विकास के पहले कदम के रूप में पहचान बनाई थी।

उन्होंने शहरों के विकास के लिए जो खाका खींचा था, उसे मूर्त रूप देने में मौके पर जो अवैध कब्जे सामने आए, उसे नियमों के तहत जमींदोज कर विकास की राह आसान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विरोध को भांपते हुए बाबूलाल गौर की तैयारी भी ऐसी होती कि कार्रवाई रोकने के लिए सरकार, पार्टी या किसी परोक्ष दबाव से वह हमेशा परे ही रहे। वे लगातार नौ बार विधायक रहे। 2004-05 में करीब सवा साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। भोपाल सहित प्रदेश के कई शहरों में आज भी विकास के कई ऐसे काम है, जो बुलडोजर मंत्री के कड़े निर्णयों के चलते ही संभव हो सके।

Leave a Reply

error: Content is protected !!