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सारे IPS का भाग्य एक जैसा नहीं,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

सारे IPS का भाग्य एक जैसा नहीं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 2006 बैच के बिहार काडर के अफसर और पूर्णिया रेंज के आईजी शिवदीप वामनराव लांडे के नौकरी छोड़ने के बाद से चर्चा है कि वो प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से 2 अक्टूबर को निकल रही पार्टी में शामिल हो सकते हैं। अटकल यह भी है कि लांडे पटना शहर की किसी विधानसभा सीट से विधानसभा चुनाव 2025 लड़ सकते हैं।

पटना में सिटी एसपी रह चुके लांडे लोकप्रिय अफसर रहे हैं जिनका नंबर लड़कियां इमरजेंसी के लिए सेव रखती थीं। लांडे का अगला कदम साफ नहीं है और जन सुराज से लेकर चुनाव की बातें अटकल हैं लेकिन इन चर्चाओं से उन पुलिस अफसरों की याद ताजा हो गई जिनमें कुछ का राजनीति में काम बन गया और कुछ नाकाम साबित हुए। लांडे से पहले दरभंगा की एसएससपी और 2019 बैच की आईपीएस काम्या मिश्रा ने भी इस्तीफा दिया था जो ओडिशा की रहने वाली हैं।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 2006 बैच के बिहार काडर के अफसर और पूर्णिया रेंज के आईजी शिवदीप वामनराव लांडे के नौकरी छोड़ने के बाद से चर्चा है कि वो प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से 2 अक्टूबर को निकल रही पार्टी में शामिल हो सकते हैं। अटकल यह भी है कि लांडे पटना शहर की किसी विधानसभा सीट से विधानसभा चुनाव 2025 लड़ सकते हैं।

पटना में सिटी एसपी रह चुके लांडे लोकप्रिय अफसर रहे हैं जिनका नंबर लड़कियां इमरजेंसी के लिए सेव रखती थीं। लांडे का अगला कदम साफ नहीं है और जन सुराज से लेकर चुनाव की बातें अटकल हैं लेकिन इन चर्चाओं से उन पुलिस अफसरों की याद ताजा हो गई जिनमें कुछ का राजनीति में काम बन गया और कुछ नाकाम साबित हुए। लांडे से पहले दरभंगा की एसएससपी और 2019 बैच की आईपीएस काम्या मिश्रा ने भी इस्तीफा दिया था जो ओडिशा की रहने वाली हैं।

इस लोकसभा चुनाव में असम काडर के 2011 बैच के आईपीएस अफसर आनंद मिश्रा नौकरी से इस्तीफा देकर बक्सर से निर्दलीय चुनाव लड़े थे 47 हजार वोट ही जुटा सके और हार गए। आनंद चौथे नंबर पर रहे। अब वो प्रशांत किशोर के जन सुराज के साथ जुड़ चुके हैं। बिहार में डीजी पद से रिटायर हुए 1987 बैच के सुनील कुमार जेडीयू से जुड़े और 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत के साथ मंत्री भी बन गए। लेकिन पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे जेडीयू और बीजेपी के बीच में फंसकर बक्सर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ तक नहीं पाए।

2009 में भी गुप्तेश्वर पांडेय ने बक्सर लोकसभा सीट से लड़ने के लिए वीआरएस लिया था लेकिन बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो बाद में सरकार ने नौकरी में वापसी की अर्जी मंजूर कर ली। आगे डीजीपी बनकर रिटायर हुए तो फिर विधानसभा में भी चांस नहीं मिलने के बाद अब भगवा धारण कर प्रवचन करते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तमिलनाडु काडर के दो रिटायर्ड आईपीएस बिहार आए पर नाकाम रहे। बीके रवि ने कांग्रेस जबकि करुणा सागर ने आरजेडी का दामन थामा था। दोनों को टिकट नहीं मिला। बाद में करुणा राजद छोड़कर कांग्रेस में चले गए।

नीतीश सरकार में मंत्री सुनील कुमार से पहले बिहार में जो पूर्व आईपीएस राजनीति में सफल रहे उनमें दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रहे निखिल कुमार और आईजी रहे ललित विजय सिंह शामिल हैं। निखिल कुमार औरंगाबाद से 2004 में कांग्रेस के सांसद बने। उसके बाद जब भी लड़े, हार गए। निखिल बिहार के पूर्व सीएम सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बेटे हैं और परिवार कई लोग लोकसभा और राज्यसभा गए हैं। ललित विजय सिंह जनता दल के टिकट पर 1989 में बेगूसराय से जीते और केंद्र में राज्यमंत्री भी बने। पूर्व डीजीपी डीएन सहाय कभी चुनाव नहीं लड़े लेकिन राज्यपाल रहे। बिहार के मौजूदा डीजीपी आलोक राज उनके दामाद हैं।

बिहार में रिटायर्ड डीजीपी भी खूब चुनाव लड़े हैं लेकिन कोई जीत नहीं पाया है। आरजेडी के नेता शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसने के लिए चर्चा में रहे डीजीपी डीपी ओझा बेगूसराय से लड़े लेकिन हार गए। पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा कांग्रेस के टिकट पर 2014 में नालंदा से लोकसभा का चुनाव लड़े और हार गए। पूर्व पुलिस महानिदेशक आरआर प्रसाद तो पंचायत का चुनाव लड़े और वो भी हार गए।

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