बैसाखी का त्यौहार मेष संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है।
खुशियों का प्रतीक है बैसाखी त्यौहार
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बैसाखी और सतुआन के नाम से मशहूर यह त्यौहार मेष संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है। यह त्यौहार मौसम में बदलाव और फसलों की पैदावर की खुशी को दर्शाता है, तो आइए हम आपको बैसाखी या सतुआन के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।
मेष संक्रांति का महत्व
मेष संक्रांति का सम्बन्ध मौसम में बदलाव, खेती और प्रकृति से होता है इसलिए संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। इस दिन सूर्य की उपासना की जाती है क्योंकि यह संसार उनके कारण ही चल रहा है। साथ ही मौसम के बदलाव से धरती अन्न पैदा कर रही है जिससे जीवन में खुशहाली आती है। इसलिए ऋतु-परिवर्तन तथा फसलों की भरमार होने पर यह त्यौहार मनाया जाता है।
पूरे देश में मनायी जाती हैं बैसाखी
भारत के अलग-अलग राज्यों में बैसाखी को मनाने का तरीका भी अलग है। असम में इस त्योहार को ‘बोहाग बिहू’, केरल में ‘विशु’ और बंगाल में ‘पोइला बैसाख’ के नाम से भी मनाया जाता है। लेकिन बैसाखी का ये त्योहार पंजाबी व्यंजनों के बिना अधूरा है। पंजाब वैसे भी अपने खान-पान के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे में बैसाखी पर पंजाबी खाने का जिक्र न हो, ये हो ही नहीं सकता है।
बैसाखी के दिन खाया जाता है ये भोजन……….
पिंडी छोले
बैसाखी के त्योहार पर खासतौर पर पिंडी के छोले बनाए जाने की परंपरा है। इसे खूब सारे मसालों के साथ तैयार किया जाता है। पिंडी छोले के साथ मक्खन वाली रोटी या फिर चावल खाए जाते हैं। इस बार बैसाखी पर आप भी ये रेसिपी आजमाएं।
कढ़ी-चावल
बैसाखी पर पीले व्यंजन भी बनाए जाते हैं। कढ़ी चावल तो वैसे भी सबकी फेवरेट होती है। बात करें पंजाबी कढ़ी की तो इसका फ्लेवर अलग होता है। पंजाब में पकौड़े वाली कढ़ी खाने का प्रचलन ज्यादा है। कढ़ी को खट्टा करने के लिए दही या इमली का इस्तेमाल किया जाता है। कढ़ी को भी आप बैसाखी पर बना सकते हैं।
बैसाखी के दिन होती है मेष संक्रांति की पूजा
संक्रांति का दिन बहुत खास होता है और इसे पूर्णिमा तथा एकादशी की भांति ही शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन विशेष प्रार्थना कर अपने आराध्य को प्रसन्न कर विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं। मेष संक्रांति बहुत शुभ तिथि होती है इस दिन उपवास भी रखा जाता है। उपवास से एक दिन पहले केवल एक ही समय भोजन करें। संक्रांति के दिन व्रत रखने के लिए उपवास का संकल्प लें। प्रातः काल जल्दी उठकर तिल वाले पानी से स्नान कर सूर्य की उपासना करें। उसके बाद अपने आराध्या की पूजा कर नए अनाज और फल इत्यादि का दान करें। संक्रांति के दिन बिना तेल का भोजन करना चाहिए। साथ ही अपने गली-मुहल्ले के जानवरों और पशु-पक्षियों को भी खाना दें।
खुशियों का प्रतीक है बैसाखी त्यौहार
मेष संक्रांति पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नाम से जाना जाता है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के कुछ इलाके में मेष संक्रांति बैसाखी के नाम से मनाया जाता है। बैसाख महीने में पड़ने के कारण इस त्यौहार को बैसाखी कहा जाता है। बैसाखी मुख्य रूप से खुशियां का प्रतीक होता है। लहलहाती फसलों की कटाई के बाद किसान त्यौहार मनाते हैं। इस दिन लोग ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते और गाते हैं। बैसाखी के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और वहां भजन होता है। घर में विविध प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और लोग मिलजुल कर खाते हैं। दोस्तों और रिश्तेदार को दावत पर बुलाया जाता है और ईश्वर को अच्छी फसल के लिए धन्यवाद भी दिया जाता है।
केरल में भी मनायी जाती है मेष संक्रांति
केरल में इसे विशु के नाम से जाना जाता है। केरल में विशु के दिन नए कपड़े पहने जाते हैं। लोग प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए आतिशबाजी करते हैं और विशु कानी सजाते हैं। साथ ही तमिलनाडु में इसे पुथंडू के नाम से मनाया जाता है।
उत्तराखंड में मनाया जाता है बिखोरी उत्सव
मेष संक्रांति को उत्तराखंड में बिखोरी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां पवित्र नदियों में डुबकी लेने की परंपरा है। साथ ही कुछ लोकप्रिय प्रथाएं भी प्रचलित हैं। इस लोकप्रिय प्रथा में प्रतीकात्मक राक्षसों को पत्थरों से मारने की परंपरा है।
असम में मनाया जाता है बिहू
मेष संक्रांति को असम में बिहू के नाम से मनाया जाता है। असम में बिहू को बोहाग बिहू या रंगली बिहू भी कहा जाता है।
बंगाल में मनाने का अंदाज है अनोखा
मेष संक्रांति को बंगाल में पोइला बैसाखी के नाम से मनाया जाता है। बंगाली लोग पोइला बैसाख को नए साल के शुरूआत के रूप में मनाते हैं। इसे ‘पाहेला बेषाख’ भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है सतुआन
उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में मेष संक्रांति के दिन सतुआन मनाया जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर देवी-देविताओं की पूजा करते हैं। साथ ही सत्तू खाते हैं। सत्तू को लोग आम की चटनी, नमक और मिर्च के साथ खाते हैं। ऐसा माना जाता है कि सत्तू के सेवन से गर्मी की तपिश से बचा सकता है।
ऐसे मनाया जाता है बैसाखी पर्व
भक्त इस दिन जल्दी उठते हैं और रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं। वे गुरुद्वारों में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। भक्तों के बीच “कड़ा प्रसाद” नामक एक विशेष मिठाई वितरित की जाती है। एक ‘लंगर’ का आयोजन किया जाता है, जहां अमीर या गरीब सभी वर्गों के लोगों को भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से तैयार भोजन मुफ्त में दिया जाता है। चमकीले रंग के कपड़े पहने युवा पुरुष और महिलाएं ‘भांगड़ा’ और ‘गिद्दा’ जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं। सिख समुदाय विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करता है जैसे मक्की दी रोटी, सरसों का साग, पनीर टिक्का, आलू की सब्जी, पूरी, सब्जी पकोड़े और बहुत कुछ इस अवसर के उत्सव में शामिल करने के लिए तैयार करते हैं।
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