आरोग्य के महत्व को सुप्रतिष्ठित करता है धनतेरस का त्योहार!
जय आरोग्य! जय भगवान धन्वंतरि!
✍️गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बचपन से ही हम धनतेरस के त्योहार मनाते और देखते आ रहे हैं। बचपन में हमारे लिए कुछ नए बर्तन और कुछ स्वादिष्ट मिठाइयों तक ही धनतेरस का त्योहार सीमित रहता था। कुछ बड़े हुए तो आरोग्य के देवता, आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि के बारे में कुछ थोड़ी बहुत जानकारी हुई। कुछ और बड़े हुए तो राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के बारे में पता चला। सच में मुझे बड़ा अफसोस होता है यह सोचकर कि धनतेरस का त्योहार इतने सालों से मनाते आ रहे हैं लेकिन उस त्योहार के संदेश से भी अंजान था मैं।
हमारे सनातनी परंपरा में हर त्योहार के कुछ संदेश होते हैं। हम त्योहार पूरे श्रद्धाभाव और उत्साह से मनाते हैं हम लेकिन उन त्योहारों के संदेश को समझने का प्रयास नहीं करते हैं। जब हम त्योहार के संदेश को समझेंगे तो त्योहार की सार्थकता का अहसास हमारे लिए एक सुखद अनुभूति लेकर आएगी और त्योहार के उमंग में भी चार चांद लग जायेंगे।
“धर्मअर्थकाममोक्षनाम आरोग्यम मूल उत्तमम ”
शास्त्रों में कहे इस संदेश का मतलब यही है कि धन की प्राप्ति के लिए आरोग्य का होना आवश्यक है इसलिए दीपावली पर मां लक्ष्मी के पूजन के पहले धनतेरस पर आरोग्य के दाता, भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले भगवान धन्वंतरि के पूजन का विधान रखा गया है।
दीपावली को मां महालक्ष्मी का पूजन होता है। उसके तकरीबन दो दिन पूर्व भगवान धन्वंतरि, जो आयुर्वेद के जनक और आरोग्य के प्रदाता माने जाते हैं, का पूजन कुछ संदेश देता है। वह संदेश यह है कि धन के पहले आरोग्य पर ध्यान जरूरी है। शायद इसी महत्व को समझते हुए भारत सरकार द्वारा धन्वंतरि जयंती के दिन को ही राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस घोषित किया गया। आरोग्य एक आवश्यक तथ्य है जिंदगी के खुशनुमा अहसास के लिए। इसलिए आरोग्य के महत्व को बताने के लिए ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
हमारे देश की स्वास्थ्य परंपरा में आयुर्वेद का विशिष्ट महत्व रहा है। हाल में कोरोना महामारी के दौर में जब मानव के अस्तित्व पर गहरा संकट आया तो आयुर्वेद के बुनियादी तथ्यों ने हमें सहारा दिया, संभाला। विगत एक दशक का ही उदाहरण लें तो कई महामारियों ने हमारे अस्तित्व को चुनौती दिया। डेंगू आदि बीमारियां तो नियमित तौर पर हमें सताती रहती है। ऐसे में आरोग्य के प्रति संचेतना हमारे लिए विशेष महत्वपूर्ण हो जाता है।
दयानंद आयुर्वेदिक और मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर सुधांशु शेखर त्रिपाठी बताते हैं कि आरोग्य रक्षण में आयुर्वेद ने सदैव अपनी उपादेयता को साबित किया है। आयुर्वेद का प्रथम मूल उद्देश्य ही होता है कि स्वस्थ व्यक्ति को कैसे और भी ज्यादा स्वस्थ बनाया जाए, कैसे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाया जाए। इसलिए आयुर्वेद में आहार को ही सबसे प्रमुख औषधि माना जाता रहा है।
डॉक्टर सुधांशु शेखर त्रिपाठी ने बताया कि तुलसी, गिलोय, हल्दी, दालचीनी, काली मिर्च, लौंग आदि को आहार में शामिल कर लेने की सलाह देकर आयुर्वेद चिकित्सक आरोग्य के संवर्धन के प्रति ही प्रयासरत दिखते हैं। आयुर्वेद में रोग होने के बाद चिकित्सा तो दूसरे पायदान पर ही आता है। इसी आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि का पूजन भी संदेश यही देता है कि हम अपने आरोग्य संवर्धन के प्रति सजग और सचेत हो। क्योंकि रोगग्रस्त शरीर के लिए धन और समृद्धि की कोई महता नहीं होती है।
निश्चित तौर पर आज हम श्रद्धा और आस्था भाव से धनतेरस का त्योहार मना रहे हैं। लेकिन भगवान धन्वंतरि के पूजन के साथ यह भी संकल्प करें कि आरोग्य संवर्धन हमारी प्राथमिकता में होगा। तो यहीं हमारे धनतेरस के पूजन की महिमा का सादर वंदन होगा।
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