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वित्त आयोग वित्तीय संसाधनों के वितरण के तरीके के संबंध में अनुशंसा करते है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

वित्त आयोग वित्तीय संसाधनों के वितरण के तरीके के संबंध में अनुशंसा करते है,कैसे?

वित्त आयोग वित्तीय संसाधनों के वितरण के तरीके के संबंध में अनुशंसा करते है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वित्त आयोग  भारत के राजकोषीय संघवाद और विकास प्रक्षेपवक्र को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे पाँच वर्ष की अवधि के लिये संघ और राज्यों के साथ-साथ राज्य-राज्य के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण के तरीक़े के संबंध में अनुशंसाएँ करते हैं। FCs सार्वजनिक वित्त, शासन और विकास से संबंधित विभिन्न मुद्दों—जैसे राजकोषीय समेकन, ऋण प्रबंधन, स्थानीय निकाय, आपदा राहत, स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय वितरण, सांख्यिकीय प्रणाली आदि पर मार्गदर्शन एवं सलाह भी प्रदान करते हैं।

FCs ने केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्वायत्तता, समानता एवं दक्षता को बढ़ाने के साथ ही देश में सहकारी एवं प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। हालाँकि उन्हें अपने कार्य-दायित्व की पूर्ति में (विशेष रूप से एक गतिशील एवं जटिल राजनीतिक अर्थव्यवस्था वातावरण के संदर्भ में) विभिन्न चुनौतियों एवं सीमाओं का भी सामना करना पड़ता है।

और विकास प्रक्षेपवक्र को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे पाँच वर्ष की अवधि के लिये संघ और राज्यों के साथ-साथ राज्य-राज्य के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण के तरीक़े के संबंध में अनुशंसाएँ करते हैं। FCs सार्वजनिक वित्त, शासन और विकास से संबंधित विभिन्न मुद्दों—जैसे राजकोषीय समेकन, ऋण प्रबंधन, स्थानीय निकाय, आपदा राहत, स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय वितरण, सांख्यिकीय प्रणाली आदि पर मार्गदर्शन एवं सलाह भी प्रदान करते हैं। FCs ने केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्वायत्तता, समानता एवं दक्षता को बढ़ाने के साथ ही देश में सहकारी एवं प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। हालाँकि उन्हें अपने कार्य-दायित्व की पूर्ति में (विशेष रूप से एक गतिशील एवं जटिल राजनीतिक अर्थव्यवस्था वातावरण के संदर्भ में) विभिन्न चुनौतियों एवं सीमाओं का भी सामना करना पड़ता है।

वित्त आयोग:

  • FCs संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत हर पाँच वर्ष पर गठित किये जाने वाले संवैधानिक निकाय हैं जो संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण पर अनुशंसाएँ प्रस्तुत करते हैं।
  • इन अनुशंसाओं में तीन मुख्य पहलू शामिल होते हैं:
    • लंबवत हस्तांतरण (Vertical Devolution): 
      • केंद्रीय करों के विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी।
    • क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution): 
      • राज्यों के बीच संसाधनों का आवंटन एक ऐसे फॉर्मूले के आधार पर किया जाता है जो उनकी वित्तीय आवश्यकताओं, क्षमताओं और प्रदर्शन को परिलक्षित करता है।
    • सहायता अनुदान (Grants-in-aid):
      • सहायता या सुधार की आवश्यकता रखने वाले विशिष्ट राज्यों या क्षेत्रों को अतिरिक्त हस्तांतरण।
      • 13वें वित्त आयोग द्वारा की गई अनुदान अनुशंसाओं में दो महत्त्वपूर्ण अनुदान न्याय वितरण और सांख्यिकीय प्रणाली के संबंध में थे।
      • न्याय विभाग ने कई पहलों की पहचान की है जहाँ समर्थन की आवश्यकता है। इनमें न्यायालयों के कार्य घंटों को बढ़ाना, लोक दालत के लिये समर्थन बढ़ाना, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को अतिरिक्त धनराशि प्रदान करना, वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से न्यायिक अधिकारियों एवं लोक अभियोजकों की क्षमता को बढ़ाना और ऐसे प्रशिक्षण की सुविधा के लिये हर राज्य में एक न्यायिक अकादमी की स्थापना को समर्थन देना शामिल है।
    • इसी प्रकार न्यायसंगत क्षैतिज वितरण के लिये लागत अंतराल (cost disabilities) का मापन महत्त्वपूर्ण है और बहुत से कारकों के कारण सेवाओं की लागत विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न होती है।

FCs की कुछ सफल अनुशंसाएँ: 

  • FCs ने विगत वर्षों में कई अनुशंसाएँ की हैं जिनका भारत में सार्वजनिक वित्त, शासन और विकास के विभिन्न पहलुओं पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इसके कुछ उदाहरण हैं:
    • ऊर्ध्वाधर/लंबवत हस्तांतरण के एक प्रमुख घटक के रूप में कर हस्तांतरण को पेश करना, जहाँ समय के साथ राज्यों की हिस्सेदारी को 10% से बढ़ाकर 42% तक किया गया है। 
    • राजकोषीय अनुशासन, जनसंख्या नियंत्रण, वन संरक्षण, बिजली क्षेत्र में सुधार आदि को प्रोत्साहित करने के लिये राज्यों के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन (performance-based incentives) की शुरूआत
    • प्राकृतिक आपदाओं के लिये राज्यों और स्थानीय निकायों की तैयारियों एवं प्रतिक्रिया क्षमता को बढ़ाने के लिये के लिये आपदा राहत निधियों की शुरुआत। 
    • स्थानीय निकायों की वित्तीय स्वायत्तता और बुनियादी सेवाओं के वितरण में उनकी जवाबदेही को सुदृढ़ करने के लिये अनुदान की शुरुआत। 
    • स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय वितरण, सांख्यिकीय प्रणाली जैसे विशिष्ट क्षेत्रों के लिये अनुदान की शुरूआत ताकि इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय अंतराल और इनकी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

FCs की अनुशंसाओं का कार्यान्वयन एवं निगरानी: 

  • FCs की अनुशंसाएँ अपनी प्रकृति में सलाहकारी होती हैं और केंद्र सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती हैं। हालाँकि इन्हें आम तौर पर मामूली संशोधन या सुधार के साथ स्वीकार कर लिया जाता है।
  • केंद्र सरकार राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम अनुशंसाओं की स्वीकृति को अधिसूचित करती है, जिसमें वह अवधि निर्दिष्ट होती है (आमतौर पर पाँच वर्ष) जिसके लिये वे मान्य होते हैं।
  • केंद्र सरकार संसद में एक व्याख्यात्मक ज्ञापन (explanatory memorandum) भी पेश करती है, जिसमें अनुशंसाओं पर की गई कार्रवाई और किसी भी सुधार/विचलन के कारण बताए जाते हैं।
  • अनुशंसाओं का कार्यान्वयन और निगरानी का कार्य केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों द्वारा किया जाता है, जो विषय वस्तु और हस्तांतरण से जुड़ी शर्तों पर निर्भर करता है।

FCs के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:  

  • डेटा अंतराल और गुणवत्ता संबंधी मुद्दे: 
    • FCs संघ और राज्यों की वित्तीय स्थिति और प्रदर्शन का आकलन करने के लिये आधिकारिक डेटा स्रोतों पर भरोसा करते हैं, लेकिन ये डेटा प्रायः अपूर्ण, असंगत या पुराने होते हैं। 
    • उदाहरण के लिये अंतर-राज्य व्यापार प्रवाह, सार्वजनिक सेवाओं की इकाई लागत और विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के परिणामों पर कोई विश्वसनीय डेटा उपलब्ध नहीं है।
  • राजनीतिक अर्थव्यवस्था संबंधी घटक:
    • FCs को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों, नागरिक समाज समूहों जैसे विभिन्न हितधारकों के प्रतिस्पर्द्धी हितों एवं मांगों के बीच एक संतुलन साधने की आवश्यकता होती है।
    • उन्हें देश और दुनिया में बदलते राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्यों को भी ध्यान में रखना पड़ता है।
  • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: 
    • FCs को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनकी अनुशंसाएँ वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में व्यवहार्य, स्वीकार्य और प्रभावी हों।
    • हालाँकि केंद्र और राज्य सरकारें उनकी अनुशंसाओं को कैसे लागू करती हैं या उनकी निगरानी कैसे करती हैं, इस पर उनका कोई सीधा नियंत्रण नहीं होता है। 
    • उन्हें विलंब, विचलन, गैर-अनुपालन या प्राप्तकर्ताओं द्वारा धन के दुरुपयोग जैसे मुद्दों से भी निपटना पड़ता है।
  • मूल्यांकन संबंधी कठिनाइयाँ:
    • FCs को राजकोषीय स्वास्थ्य, शासन गुणवत्ता और विकास प्रदर्शन जैसे विभिन्न संकेतकों पर उनकी अनुशंसाओं के प्रभाव और परिणामों का आकलन करना होता है।
    • हालाँकि उन्हें कार्य-कारण को उत्तरदायी ठहराने, प्रभावों के पृथक्करण, परिणामों के मापन और अपने हस्तक्षेपों के मूल्य-निर्धारण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

16वें वित्त आयोग के समक्ष नवीन मुद्दे:  

  • जीएसटी परिषद का सह-अस्तित्व: 
    • जीएसटी परिषद (GST Council) एक स्थायी संवैधानिक निकाय है जो कर दरों और जीएसटी से संबंधित अन्य मामलों पर निर्णय लेती है।
    • इसके निर्णय वित्तीय संसाधनों को साझा करने के लिये FCs के राजस्व अनुमानों और गणनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। 
    • जीएसटी परिषद के निर्णयों और FCs की गणनाओं के बीच एक संगति स्थापित करने के लिये एक तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है।
  • रक्षा और आंतरिक सुरक्षा हेतु वित्तपोषण: 
    • एक उत्तर चिंतन के रूप में 15वें वित्त आयोग को यह निर्धारित करने के लिये अतिरिक्त विचारार्थ विषय (term of reference) सौंपा गया था कि क्या रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा के वित्तपोषण के लिये एक अलग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
    • इसने इस उद्देश्य के लिये एक गैर-व्यपगत निधि (non-lapsable fund) के सृजन की अनुशंसा की, जिसे सरकार ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया, लेकिन इसके कार्यान्वयन पर अभी भी कार्य किया जाना शेष है।
  • कोविड-19 महामारी का प्रभाव:
    • कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक वित्त के मामले में अभूतपूर्व व्यवधान एवं अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न की है।
    • इसने स्वास्थ्य प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है।
    • 16वें वित्त आयोग को केंद्र और राज्यों की राजकोषीय स्थिति एवं प्रदर्शन पर महामारी के प्रभाव एवं निहितार्थ के साथ-साथ उनकी व्यय संबंधी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को भी ध्यान में रखना होगा।

आगे की राह: 

  • राजकोषीय स्वायत्तता और समता को संवृद्ध करना: 
    • FCs को केंद्र और राज्य सरकारों की संबंधित संवैधानिक ज़िम्मेदारियों एवं व्यय आवश्यकताओं के आधार पर उन्हें पर्याप्त और अनुमानित संसाधन प्रदान करने पर लक्षित होना चाहिये।
    • उन्हें विभिन्न राज्यों की राजकोषीय क्षमताओं, उनके प्रदर्शन और उनकी विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उनके बीच संसाधनों का निष्पक्ष एवं पारदर्शी वितरण भी सुनिश्चित करना चाहिये। 
  • राजकोषीय दक्षता और जवाबदेही को बढ़ावा देना:
    • FCs को केंद्र और राज्य सरकारों को राजकोषीय समेकन, ऋण स्थिरता, राजस्व जुटाने, व्यय युक्तिकरण जैसी ठोस राजकोषीय नीतियों एवं अभ्यासों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • उन्हें सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता में सुधार लाने के लिये भी प्रोत्साहित करना चाहिये, विशेषकर स्वास्थ्य, शिक्षा, अवसंरचना जैसे प्राथमिकता क्षेत्रों में।
  • उभरते मुद्दों और चुनौतियों को हल करना: 
    • FCs को देश और दुनिया में बदलते आर्थिक एवं सामाजिक परिदृश्यों के प्रति उत्तरदायी एवं सक्रिय होना चाहिये।
    • उन्हें जीएसटी के कार्यान्वयन, कोविड-19 महामारीजलवायु परिवर्तन, डिजिटल रूपांतरण आदि से उत्पन्न मुद्दों एवं चुनौतियों को हल करना चाहिये।
    • उन्हें देश में सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देने के लिये नए अवसरों और तंत्रों की भी तलाश करनी चाहिये।
  • संस्थागत क्षमता और विश्वसनीयता को सुदृढ़ करना:
    • FCs को विश्वसनीय एवं अद्यतन डेटा स्रोतों का उपयोग करने, सुदृढ़ एवं नवोन्मेषी पद्धतियों को लागू करने, विशेषज्ञों एवं हितधारकों के साथ संलग्न होने जैसे प्रयासों के साथ अपनी विश्लेषणात्मक और सलाहकारी क्षमताओं में सुधार लाना चाहिये। 
    • उन्हें अपनी रिपोर्टों एवं अनुशंसाओं को व्यापक रूप से प्रसारित करने, प्रतिक्रिया एवं सुझाव आमंत्रित करने, विभिन्न अभिकर्ताओं के बीच जागरूकता एवं आम सहमति का निर्माण करने के रूप में अपनी संचार और आउटरीच रणनीतियों को भी संवृद्ध करना चाहिये। 
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