भारत का झंडा भीकाजी कामा ने पहली बार विदेशी धरती पर फहराया था

भारत का झंडा भीकाजी कामा ने पहली बार विदेशी धरती पर फहराया था

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“ऐ दुनियावालों देखो, यही है भारत का झंडा। यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो। इस झंडे को भारत के लोगों ने अपने खून से सींचा है। इसके सम्मान की रक्षा में जान दी है। मैं इस झंडे को हाथ में लेकर आजादी से प्यार करने वाले दुनियाभर के लोगों से अपील करती हूं कि वो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन करें।” विदेशी धरती पर भारतीय झंडा फहराने के बाद अपने भाषण में शक्तिशाली आवाज में यहीं बोला था भीकाजी कामा ने। इस भाषण को सुनने के बाद वहां मौजूद सभी लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ भीकाजी कामा और भारत को जानना शुरू कर दिया था।

अब आप सोच रहे होंगे की आखिर कौन थी भीकाजी कामा, ये भारत की पहली महिला है जिन्होंने साल 1907 में विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय झंडा लहराया था। बता दें कि उन्होंने भारत का झंडा जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में हिस्सा लेने वाले सभी देशों के झंडों के साथ भारत के लिए ब्रिटिश का झंडा लगाया गया था। भीकाजी कामा को ये मंजूर नहीं था कि वे भारत के लिए ब्रिटिश का झंडा फहराए और इसलिए उन्होंने नया झंडा बनाया और सभा में फहराया। वो पहली बार था जब विदेश की धरती पर एक महिला भारतीय झंडा फहरा रही थी।

उस दौरान जो झंडा फहराया गया था वो बहुत अलग था। उस झंडे में हरा, पीला और लाल रंग की तीन पट्टियां थीं। सबसे ऊपर हरा रंग था और उसपर 8 कमल के फूल थे जो कि भारत के 8 प्रांतों को दर्शाते थे। वहीं उसके नीचे पीले रंग की पट्टी थी जिसपर लिखा था वंदे मातरम। सबसे नीचे की पट्टी पर नीला रंग था जिसपर सूरज और चांद बने थे। सूरज हिंदी धर्म के लिए और चांद मुस्लिम धर्म के लिए दर्शाए गए थे। बता दें कि पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में ये झंडा अब भी सुरक्षित रखा है। इस झंडे को भीकामजी कामा और श्याम जी कृष्ण वर्मा ने डिजाइन किया था।

24 सितंबर 1861 में पैदा हुआ भीकाजी कामा बॉम्बे के एक अमीर पारसी भीकाई सोराब जी पटेल के घर पैदा हुई थी। उस वक्त पारसी समुदाय काफी ज्यादा मशहूर हुआ करता था। अपनी पढ़ाई उन्होंने एलेक्जेंड्रा नेटिव गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूशन से की। उनकी शादी साल 1885 में रुस्तम कामा से कर दी गई। भीकाजी के पति उनसे बिल्कुल अगल थे। वह ब्रिटिश समर्थक वकील थे और आगे चलकर एक बड़े नेता बनना चाहते थे और ये चीज भीकाजी को नहीं भांति थी जिसके कारण दोनों की एक-दुसरे से बिल्कुल भी नहीं पटी।

भीकाजी अपना सारा समय सामाजिक कार्यों में ही देने लगी थी। जब 1896 में प्लेग बीमारी से महामारी फैलने लगी तो भीकाजी पीड़ितों की सेवा करती थी और इस कारण से वह भी इस बीमारी के चपेट में आ गई थी। तबीयत बिगड़ने लगा तो इलाज के लिए उन्हें ब्रिटेन भेजा गया। वहीं उनकी मुलाकात भारतीय राष्ट्रवादी श्याम जी कृष्ण वर्मा से हुई। ब्रिटेन के भारतीय समुदाय में श्याम जी कृष्ण काफी जाने-माने चेहरे थे। बता दें कि जब भारत की पहली महिला होने के नाते विदेशी सरजमीं पर भारत का झंडा फहराया, तो भीकाजी कामा काफी ज्यादा सुर्खियों में आ गई और उनकी खूब चर्चा होती थीं।

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