मढ़ौरा के अतीत का गौरव हमें गौरवान्वित करता है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मढ़ौरा को 01अप्रैल 1991को अनुमंडल का दर्जा मिला।  32वा स्थापना दिवस मनाया जा रहा हैं। अतीत के गौरव हमें निश्चित गौरांवित करता हैं। औधोगिक क्षेत्रों में चार फैक्ट्रियों से ख्याति, शिक्षा के क्षैत्र में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के टॉपर महान अर्थशास्त्री गोरखनाथ सिंह की प्रसिद्धि, क्रांतिकारी आंदोलन के क्षेत्र में बिरंगना रामश्वरूपा देवी के नेतृत्व में गोराकांड और महज 18 वर्ष की उम्र में शहीद रामाजीवन सिंह का बलिदान तो ऐतिहासिक महत्व के धार्मिक स्थलों में शुमार मढ़ौरा का गढ़देवी मंदिर और शिलनिधि गढ़ स्थित शिलहौरी का शिलानाथ मंदिर।

लेकिन आज हम गौरवशाली अतीत के खंडहर में सुविधा विहीन हालातों में जी रहे हैं। अब न औधोगिक नगरी रही न ही रोजगार के अवसर, शिक्षा के क्षेत्र में एक डिग्री कॉलेज भी नही खुल पाया। तब के जमाने में इंटरसिटी ट्रेन में मढ़ौरा से असम के लिए रेल की एक बोगियां रहा करती थीं। लेकिन आज जिला मुख्यालय छपरा के लिए भी पर्याप्त ट्रेनें नहीं हैं। रेल के विकाश में सबसे फिसडी हैं।

केंद्र में जिसकी सरकार रही हो लेकिन अधिकतर बिहार के रेल मंत्री हुऐ, लेकिन पुरे देश में अमान परिवर्तन के कार्य खत्म हो गए, तब मढ़ौरा-मशरक रूट के अमान परिवर्तन दो वर्ष रेल सेवा ठप्प कर किया गया और अब अमान परिवर्तन के लगाभग 5वर्ष हों चुके होंगे। दिल्ली कोलकाता तो दूर की बात जिला मुख्यालय छपरा के लिए भी पर्याप्त ट्रेनें नहीं हैं ।

ऐसा नहीं हैं इन 32 सालों में हमने सासंद, विधायक नही चुना, बिना देर के हमेशा चुना। लेकिन हमने जिसको चुना जरा उनके हालात को भी आंके। भूत में क्या थे वर्तमान में कैसे हैं और भविष्य उनका कितना उज्ज्वल हैं! हमें फिर से अपने आप को आंकना होगा। अपना भविष्य खुद संवारना होगा । सोचिए क्या करना होगा?

“मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए–!”

मढ़ौड़ा अनुमंडल के स्थापना पखवाड़ा समारोह का शुभारंभ हुआ।मरुस्थल में बरसात कराने का ध्रुव प्रयास हुआ।पहले ही दिन भोजपुरी में कहूं तो “थेई-थेई” हुआ।लोग हर्षातिरेक में कूदते रहे,सुर और ताल में गोता लगा कर आनंदित होते रहे।बच्चे-बच्चियों को एक संभावना दिखी और वे भी मस्ती में डूबते-उतराते दिखे।युवा अनुमंडल पदाधिकारी श्री योगेन्द्र कुमार ने एक सपना देखा और स्थानीय बुद्धिजीवियों ने इसे मूर्त रुप देने में सहयोग कर एक नई लकीर खींच दी।

बिहार प्रशासनिक सेवा के यूं तो सैंकड़ों अधिकारी आज भी अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में लगे हुए हैं।अर्थ और विकास की सुरसा रुपि बाधाओं से त्रस्त बिहार में सकारात्मकता लगभग शून्य स्तर पर आ गई है।एक औपचारिकता मात्र ही रह गई है अधिकारियों की सेवा।आना,दो से तीन वर्षों तक किसी क्षेत्र विशेष में नौकरी कर चले जाना एक सामान्य सी दिनचर्या बन गई है।ना कुछ संसाधन,ना ही कोई योजना-बस,हर दिन उन्हीं लकीरों पर चलना,जो सभी कर रहे हैं।एक वैसी “ड्यूटी”,जिसका कोई अर्थ नहीं है।

संपादित हुए इस आयोजन ने बिहार में कार्यरत इस युवा “एसडीओ” की समृद्ध सोच,नई दृष्टि के संग कुछ भी कर जाने की दृढ़ता को प्रकट किया है।मैं अधिकारी महोदय से नहीं मिला हूं।मुझे पता है कि ऐसे आयोजनों के लिए राज्य सरकार के पास कोई अतिरिक्त राशि भी नहीं है।फिर भी सीमित संसाधनों के घेरे में ही पूरे पंद्रह दिनों तक चलने वाले इस उत्स की कल्पना बहुत ही सुखद है।नौनिहालों से लेकर बड़े-बुजुर्गों के लिए समर्पित इस समारोह में वह सब कुछ है,जो प्रेरणा दे सके।


हमारे राज्य में ढ़ेरो अनुमंडल हैं।ग्रामीण परिवेश में स्थापित इन में कार्यरत अधिकारियों को ऐसी योजनाओं को लेकर एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना होगा।इतिहास वही रचते हैं,जो आकाश से तारों को तोड़ लाने का जज़्बा रखते हैं।
एक प्रेरक आयोजन की परिकल्पना कर उसे साकार कर देने की इस ऊर्जा को मेरा सैल्यूट श्रीमान योगेंद्र कुमार जी(एसडीओ-मढ़ौड़ा)!आपने एक सुखद संभावना के संग अपने सहचरों को भी प्रशंसनीय संदेश दिया है।

कहिये तो आसमां को ज़मीं पे उतार लायें,
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए।”

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