सरकार का दावा,देश के हर तीसरे व्यक्ति को लग चुका एक टीका.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
देश में हर तीसरे व्यक्ति को कोरोना वैक्सीन की कम से कम एक डोज लगाई जा चुकी है। वहीं टीकाकरण के लिए योग्य 18 वर्ष और उससे अधिक आयुवर्ग की आधी आबादी को पहली डोज लगाई जा चुकी है। दोनों डोज लेने वाले लोग अभी कुल आबादी के 10 फीसद से भी कम हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अक्टूबर से वैक्सीन बहुतायत में उपलब्ध होगी और उसके बाद टीकाकरण की रफ्तार और भी गति पकड़ेगी।स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि गुरुवार तक देश में कोरोना रोधी वैक्सीन की कुल 57 करोड़ से ज्यादा डोज लगाई जा चुकी हैं।
33.3 फीसद लोगों को एक डोज दी गई
इनमें साढ़े 44 करोड़ से ज्यादा पहली और करीब 13 करोड़ दूसरी डोज शामिल हैं। इस तरह से कुल आबादी के 33.3 फीसद लोगों को कम से कम एक डोज और 9.6 फीसद को दोनों डोज लग गई हैं। गौरतलब है कि देश में फिलहाल कोरोना टीकाकरण अभियान के तहत 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन दी जा रही है। इस आयुवर्ग को लोगों की संख्या लगभग 94 करोड़ है।
तेजी से बढ़ेगी टीकाकरण की रफ्तार
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण के ये आंकड़े जुलाई में ही पूरे हो जाते, लेकिन भारत बायोटेक के बेंगलुरु इकाई में गड़बड़ी के कारण वैक्सीन की सप्लाई बाधित हुई। इसके बावजूद जुलाई में 13.45 करोड़ डोज लगाई गईं और अगस्त के 19 दिनों में 10.20 करोड़ से अधिक डोज दी जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि अगस्त के अंत या सितंबर तक भारत बायोटेक की बेंगलुरु इकाई में उत्पादन शुरू हो जाएगा और उसके बाद टीकाकरण की रफ्तार और तेजी से बढ़ेगी।
अक्टूबर से मांग के मुताबिक सप्लाई
अधिकारी ने बताया कि अभी राज्यों को कोटे के हिसाब से वैक्सीन की सप्लाई की जाती है। परंतु, अक्टूबर से यह कोटा खत्म हो सकता है और राज्य अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहे उतनी वैक्सीन लगा सकते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि तब प्रतिदिन टीकाकरण की रफ्तार तीन गुना बढ़कर 1.5 करोड़ से भी अधिक हो सकती है।
अपनी वैक्सीन के बलबूते चल रहा अभियान
स्वास्थ्य मंत्रालय की माने तो टीकाकरण की यह रफ्तार स्वदेशी टीके के सहारे ही हासिल करने की है। दुनिया भर की सभी वैक्सीन के लिए दरवाजे खोलने और ब्रीज ट्रायल से छूट के बावजूद सिर्फ रूसी स्पुतनिक-वी वैक्सीन ही आ सकी है। उसकी भी सप्लाई सुचारू नहीं हो पाई है। मुख्य रूप से कोविशील्ड और कोवैक्सीन के सहारे टीकाकरण अभियान चल रहा है।
जायडस कैडिला की वैक्सीन को मिली मंजूरी
देश को दो और वैक्सीन जल्द मिलने की उम्मीद है। इनमें से एक जायडस कैडिला की वैक्सीन को भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआइ) से इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी भी मिल गई है। तीन डोज वाली यह वैक्सीन 12 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को लगाई जाएगी। यह दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन है। यह सार्स-सीओवी-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करती है और मजबूत प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
जल्द मिलेगी एक और वैक्सीन
इसके अलावा बायोलाजिकल ई की वैक्सीन का ट्रायल पूरा हो चुका है। सितंबर में कंपनी इसके इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए आवेदन कर सकती है। गौरतलब है कि सरकार बायोलाजिकल ई को 30 करोड़ डोज के लिए एडवांस पेमेंट भी कर चुकी है।
देश को बच्चों के लिए पहली कोरोना रोधी वैक्सीन मिल गई है। भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआइ) ने जायडस कैडिला की तीन डोज वाली कोरोना रोधी जायकोव-डी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। यह 12 साल के बच्चों से लेकर बड़ों को भी लगाई जाएगी। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने शुक्रवार को कहा कि इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने के साथ ही यह पहली वैक्सीन होगी जो 12-18 वर्ष आयु के बच्चों एवं किशोरों को लगाई जाएगी।
पीएम मोदी ने बड़ी उपलब्धि बताया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जायकोव-डी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दिए जाने को महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत कोरोना से लड़ाई पूरी बहादुरी से लड़ रहा है। दुनिया की पहली डीएनए आधारित जायडस कैडिला की वैक्सीन भारतीय विज्ञानियों के इनोवेटिव उत्साह को दर्शाती है। वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
तीन डोज वाली है यह वैक्सीन
देश में अभी तक जो वैक्सीन लगाई जा रही है वह 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए है। इसके अलावा ये सभी दो डोज वाली वैक्सीन हैं, जबकि जायकोव-डी तीन डोज की। अहमदाबाद स्थित इस फार्मा कंपनी ने अपनी इस वैक्सीन के आपात इस्तेमाल के लिए डीसीजीआइ के पास पहली जुलाई को आवेदन दिया था।
दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन
डीबीटी ने बताया कि यह दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन है। अभी तक जितनी भी वैक्सीन हैं वह एम-आरएनए आधारित हैं। हालांकि, दोनों ही वैक्सीन एक ही काम करतीं, बस इनके काम करने का तरीका अलग है। प्लाज्मिड डीएनए-आधारित जाइकोव-डी सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करती है और मजबूत प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
बिना सुई के लगाई जाएगी
जायकोव-डी को लेना भी आसान होगा और इसमें दर्द भी नहीं होगा। इसको लगाने के लिए नुकीली सुई का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा बल्कि इसे फार्माजेट तकनीक से लगाया जाएगा। इस तकनीक में बिना सुई वाले इंजेक्शन में दवा भरी जाती है और फिर उसे एक मशीन में लगाकर बांह में दिया जाता है।
28,000 वालंटियर पर किया गया ट्रायल
कंपनी का कहना है कि उसने भारत में अब तक 50 से अधिक केंद्रों पर इस वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल किया है। वैक्सीन के तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल 28 हजार से ज्यादा वालंटियर पर किया गया था। इसमें यह 66.6 फीसद प्रभावी पाई गई है। कोरोना वैक्सीन के लिए देश में यह सबसे बड़ा ट्रायल था। पहले और दूसरे चरण के परीक्षण में इसे सुरक्षित और कारगर पाया गया था।
मंजूरी पाने वाली छठी वैक्सीन
इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी यानी ईयूए हासिल करने वाली यह देश की छठी वैक्सीन है। इससे पहले कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पुतनिक-वी, माडर्ना और जानसन एंड जानसन की वैक्सीन को मंजूरी दी जा चुकी है। लेकिन इनमें से अभी कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक-वी का ही इस्तेमाल किया जा रहा जा रहा है। जायडस कैडिला ने एक बयान में कहा है कि उसकी हर साल इस वैक्सीन की 10-12 करोड़ डोज का उत्पादन करने की योजना है।
- यह भी पढ़े……
- कोरोना का होगा अंत और देश बनेगा सेहतमंद.
- अफगानिस्तान में परियोजनाओं पर कैसे हुई धन की बर्बादी.
- कैसे हवाई जहाज में उड़ेंगे हवाई चप्पल वाले?
- रक्षाबंधन के दिन आसमान में दिख सकता है ‘ब्लू मून’.
- बक्सर जेल में बीवी के साथ रहता था हत्यारा कैदी, प्रशासन की आंख में धूल झोंककर हुआ फरार