भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वित्तीय स्थिरता के संदर्भ में क्रिप्टोकरेंसी पर चिंता जताई है,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने एक बार फिर वृहत-आर्थिक एवं वित्तीय स्थिरता के संदर्भ में क्रिप्टोकरेंसी पर चिंता जताई है। इन्हीं कारणों से विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक क्रिप्टोकरेंसी के वैधीकरण के विरुद्ध खड़े हुए हैं और अब भारत में भी यही परिदृश्य उत्पन्न हो रहा है।

हालाँकि, क्रिप्टोकरेंसी की प्रकृति को देखते हुए, इस तरह के लेनदेन पर प्रतिबंध का विपरीत प्रभाव भी उत्पन्न हो सकता है, जहाँ वे जाँच या संवीक्षा के दायरे से बाहर चली जाएंगी और आपराधिक कृत्यों के मामले में कानून प्रवर्तित करना कठिन हो जाएगा।

वर्तमान में, क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार तीन ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का है। भारत इतने बड़े अवसर से स्वयं को वंचित नहीं रख सकता, न उसे रहना चाहिये, बल्कि इसके विनियमन के लिये प्रभावी प्रावधान का सृजन करना चाहिये।

‘क्रिप्टोकरेंसी’ को लेकर अस्पष्टता और अव्यवस्था

  • वैश्विक सर्वसम्मति का अभाव: वर्तमान में वैश्विक स्तर पर क्रिप्टोकरेंसी के प्रति विनियामक दृष्टिकोण में एकरूपता नहीं है। विभिन्न देश उपयुक्त विनियामक ढाँचे को लेकर जटिल सवालों से जूझ रहे हैं और अलग-अलग दृष्टिकोण अपना रहे हैं।
    • ‘क्यूबा’ और ‘अल सल्वाडोर’ जैसे देशों ने बिटकॉइन को वैध मुद्रा (Legal Tender) के रूप में अनुमति दे रखी है।
      • ईरान ने भी उस पर आरोपित प्रतिबंधों को बेअसर करने में क्रिप्टोकरेंसी की क्षमता की पहचान की है और उनकी ‘माइनिंग’ (Mining) को प्रोत्साहित किया है, बशर्ते परिणामी टोकन केंद्रीय बैंक को बेचे जाएँ।
    • दूसरी ओर, चीन ने सभी क्रिप्टो लेनदेन और माइनिंग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
      • बोलीविया, नेपाल, नॉर्थ मैसेडोनिया और इंडोनेशिया कुछ अन्य देश हैं जिन्होंने क्रिप्टोकरेंसी के व्यापार, उनकी होल्डिंग और माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • भारत में क्रिप्टोकरेंसी की स्थिति: वर्तमान में देश में ऐसा कोई कानून मौजूद नहीं है, जो भारत में क्रिप्टोकरेंसी को कवर करता हो, जिसका अर्थ यह है कि यह अभी तक अवैध नहीं है।
    • भारत में, रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2018 में सभी बैंकों के लिये क्रिप्टोकरेंसी के किसी भी लेनदेन पर रोक लगा दी थी, हालाँकि वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबंध को निरस्त कर दिया था।
    • अभी कुछ समय पूर्व ही भारत के प्रधानमंत्री ने क्रिप्टोकरेंसी क्षेत्र के प्रबंधन के संबंध में एक बैठक की अध्यक्षता की थी, जहाँ आम सहमति बनी कि क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में सरकार द्वारा उठाए गए कदम समयानुकूल, प्रगतिशील और दूरदर्शी होने चाहिये।
      • सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में क्रिप्टोकरेंसी पर एक विधेयक पेश किया जाना संभावित है।

संबद्ध चिंताएँ

  • क्रिप्टोकरेंसी पर वैध चिंताएँ: ये चिंताएँ इस तथ्य से उपजी हैं कि उनके मूल्यों के आकलन के लिये कोई अंतर्निहित आस्ति और कोई बेंचमार्क मौजूद नहीं है। इसके अलावा, क्रिप्टोकरेंसी अपनी प्रकृति में बेहद अस्थिर हैं।
    • जागरूकता, पारदर्शिता और स्पष्टता की कमी निवेशकों, विशेष रूप से खुदरा निवेशकों के धन को जोखिम में डालती है।
      • इतनी अधिक मात्रा में पूंजी धारण करने वाले इस उद्योग की भारत में निगरानी या विनियमन की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है।
      • क्रिप्टो का जिस तरह से विज्ञापन किया जा रहा है, वह भी प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित बैठक में विचार का एक विषय रहा था।
  • क्रिप्टो के संबंध में अस्पष्ट दृष्टिकोण: एक मुद्रा, एक परिसंपत्ति या एक कमोडिटी के रूप में क्रिप्टोकरेंसी के प्रति अलग-अलग देशों में अलग-अलग दृष्टिकोण प्रचलित हैं। इसे किस रूप में देखा जाता है और किस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है, उस पर विनियामक व्यवस्था का निर्धारण हो सकेगा।
    • भारत सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में क्रिप्टोकरेंसी पर एक विधेयक पेश कर सकती है और यह क्रिप्टो लेनदेन को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के रूप में वर्गीकृत कर सकती है।
    • हालाँकि, यहाँ यह सवाल उठेगा कि क्रिप्टोकरेंसी पर उपयुक्त विनियामक किस प्रकार का होगा।
  • क्रिप्टो पर प्रतिबंध लगाना एक विवेकहीन समाधान: केंद्रीय बैंक द्वारा सावधानी और सतर्कता का सुझाव तो उपयुक्त है, लेकिन इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना विवेकपूर्ण कदम नहीं माना जा सकता।
    • क्रिप्टोकरेंसी की प्रकृति को देखते हुए, इस तरह के लेनदेन पर प्रतिबंध का विपरीत प्रभाव भी उत्पन्न हो सकता है, जहाँ वे जाँच या संवीक्षा के दायरे से बाहर चली जाएंगी और आपराधिक कृत्यों के मामले में कानून प्रवर्तित करना कठिन हो जाएगा।
    • इससे प्रतिबंध का मूल उद्देश्य ही पराजित हो जाएगा।
  • प्रतिबंध मौजूदा प्रावधानों के विपरीत है: क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाना इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा प्रस्तुत ‘ब्लॉकचेन पर राष्ट्रीय रणनीति मसौदा, 2021’ की भावनाओं के विरुद्ध होगा, जहाँ ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी को इंटरनेट पर ‘लेयर ऑफ ट्रस्ट’ के निर्माण के लिये पारदर्शी, सुरक्षित और कुशल बताया गया है।
    • यह विरोधाभासी दृष्टिकोण ही है कि ब्लॉकचेन को तो प्रौद्योगिकी-संचालित नवाचार के एक अंग के रूप में प्रोत्साहित किया जाए, लेकिन इसकी अनुषंगी क्रिप्टो परिसंपत्ति पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया जाए।

  • क्रिप्टो के लिये नियामक ढाँचा:भारत में क्रिप्टो के संबंध में तत्काल एक नियामक ढाँचे का निर्माण किये जाने की आवश्यकता है।
    • इस ढाँचे को विभिन्न क्रिप्टोकरेंसियों, बिक्री, खरीद के साथ-साथ एक्सचेंज और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म जैसे मध्यस्थों से संबद्ध विभिन्न पहलुओं से निपटने की आवश्यकता होगी।
    • सरकार को संबद्ध जोखिमों की पहचान करनी चाहिये और उन्हें संबोधित करने के लिये एक उपयुक्त नियामक ढाँचा तैयार करना चाहिये।
    • यह विनियमन धन-शोधन और आतंक-वित्तपोषण जैसे मुद्दों की निगरानी और घोटालों पर रोक में भी सहायता कर सकता है।
  • निवेशक संरक्षण: जबकि परिष्कृत निवेशकों को मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं भी हो, खुदरा निवेशकों को क्रिप्टोकरेंसी और उनसे जुड़ी अस्थिरता के संबंध में सतर्क करने की आवश्यकता है।
    • एक कुशल नियामक ढाँचा निवेशकों के लिये उत्तरदायित्व के साथ-साथ शिकायत निवारण तंत्र की पूर्ति करेगा।
  • अविनियमित क्षेत्र को स्वरूप प्रदान करना: भारत को इस समय जिस बात की आवश्यकता है, वह है क्रिप्टोकरेंसी के अविनियमित क्षेत्र को एक स्वरूप प्रदान करना, बजाये इसके कि क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित कर दिया जाए। यह खुदरा निवेशकों के लिये एक सुरक्षा कवच तैयार करेगा।
    • इसके साथ ही, यह भारत में सक्रिय क्रिप्टो कंपनियों के पलायन को रोकेगा, जिससे पूंजी का पलायन नहीं होगा।
    • यह भारत और भारतीयों के लिये उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में आगे बढ़ने और इस क्षेत्र में अग्रणी एवं नवप्रवर्तक बनने के लिये एक स्वस्थ पारितंत्र का निर्माण करेगा।
  • क्रिप्टोकरेंसी अपरिहार्य है—इसे किसी भी सार्थक प्रवर्तनीय तंत्र के माध्यम से प्रतिबंधित या व्यवस्था से बाहर नहीं किया जा सकता है। क्रिप्टो पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना अव्यावहारिक और अति-प्रतिबंधक कदम होगा।
  • सरकार के लिये यह अनिवार्य हो जाता है कि वह ऐसे कानून लेकर आए जो प्रौद्योगिकी के दृष्टिकोण को समझे, सभी हितधारकों के आदानों को ध्यान में रखे और नागरिकों को इस नए युग की प्रौद्योगिकी से मिल सकने वाले लाभों का उपभोग करने में सक्षम बनाए।

 

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