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महाकुंभ की अतुलनीय प्रशासनिक तैयारियां शोध का विषय है - श्रीनारद मीडिया

महाकुंभ की अतुलनीय प्रशासनिक तैयारियां शोध का विषय है

महाकुंभ की अतुलनीय प्रशासनिक तैयारियां शोध का विषय है

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रथमं तीर्थराजं तू प्रयागाख्यं सुविश्रुतिम। कामिकं सर्वतीर्थानां धर्म कामार्थ मोक्षदम।।” अर्थात तीर्थराज प्रयाग का नाम सर्वश्रेष्ठ तीर्थ के रूप में लोक विख्यात है। यह सभी तीर्थों के फलों को देने वाला अकेला तीर्थ है, जो व्यक्तिविशेष के जीवन में- धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष- नामक चारों पुरुषार्थों का प्रदाता है। यूँ तो हर 12 वें वर्ष में यहां कुंभ का आयोजन अनंत काल से हो रहा है, लेकिन महाकुम्भ का आयोजन प्रयागराज हर बार 144वें वर्ष में ही होता है। इसलिए पतित पावनी गंगा, कलंक प्रक्षालिनी यमुना और अंतर्धारा पुण्य सलिला सरस्वती नदी के त्रिवेणी संगम तट पर अवस्थित प्रयागराज, उत्तरप्रदेश, भारत गणराज्य का अलग ही महात्म्य है।

सनातन मनीषियों के मुताबिक, हर 144 वर्ष के अंतराल पर और इस बार वर्ष 2025 में पुनः ग्रहों का ऐसा शुभ संयोग बना है जिसके कारण यहाँ आना और संगम तट पर स्नान-ध्यान करना पुण्यबर्धक समझा जाता है। 2025 का दिव्य महाकुंभ 144 वर्षों की सुदीर्घ प्रतीक्षा के बाद खगोलीय गणित एवं धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक दृष्टि से ग्रह-नक्षत्रों के अभूतपूर्व मिलन के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण और मनोकामना पूर्ति की मोक्ष की पूर्ति के लिए फलदायक है।

बहरहाल यह पावन स्थल सनातन धर्मियों के साथ ही अध्यात्म एवं धार्मिक आस्था में विश्वास रखने वाले प्रत्येक मानव के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है। साथ ही, धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों को समझने एवं अध्ययन, चिंतन-मनन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन चुका है।

विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ राम चरित मानस में तीर्थराज प्रयाग का वर्णन बड़े ही श्रेष्ठ भाव से किया गया है-

माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।

देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।

वहीं, गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि जब श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त करके पुष्पक विमान से लौट रहे थे तो वह विमान से ही सीताजी को तीर्थों के दर्शन कराते और उनका वर्णन करते हुए प्रयाग पहुंचने पर कहते हैं-

बहुरि राम जानकिहिं देखाई। जमुना कलिमल हरनि सुहाई।।

तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत कोटि जन्म अघ भागा।

यानी तीर्थराज के प्रयाग के दर्शन मात्र से किसी भी मनुष्य का करोड़ों जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

इसलिए यहां पर मैं प्रयागराज महाकुंभ की आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं से इतर इसके सकारात्मक और व्यवहारिक पक्ष पर अपना विचार रख रहा हूँ। उम्मीद है कि इसके प्रति आपकी भी जिज्ञासा बढ़ेगी।

देखा जाए तो यह महाकुम्भ देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था की सुदृढ़ता, इसके लौह कवच रूपी अदम्य साहस, अपराजेय संकल्प शक्ति, अखंड आत्मविश्वास, कभी न थकनेवाली पुलिस-प्रशासनिक व्यवस्था के लिए किए गये अनुपम एवं विलक्षण प्रयास जिज्ञासु जनों के लिए शोधकार्य का विषय है। इस महाकुम्भ की कमान उत्तरप्रदेश के सुयोग्य, यशस्वी, माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के योग्य करकमलों में है।

हालांकि, कुछ विघ्न संतोषी, सनातन विरोधी और धार्मिक आस्था के प्रति अरुचि रखने वाले दोहरे चरित्र के लोग,  किसी न किसी बहाने महाकुंभ मेला की सुदृढ़ व्यवस्था में छेद करने के लिए यत्र-तत्र प्रयासरत हैं। चूंकि मैं प्रयागराज के निकटवर्ती जनपद में कार्यरत हूँ। इसलिए इससे जुड़ी बहुत सारी अनुभूतियों को संजोए हुए हूँ। जबकि, सेवा, समर्पण और आस्था से लबालब होने के कारण मन करता है कि श्रद्धालुओं के वास्ते सब कुछ ऐसा करूं जिससे मैं भी महाकुम्भ में आने जाने वाले धर्मानुरागी व्यक्तियों के लिए सहयोगी बन सकूँ।

वाकई महाकुम्भ अखंड सनातन गर्व, हिन्दू महापर्व का दिव्य-भव्य, मानवीय मूल्यों की एकता को आलोकित करने वाला, एक अविचल और अलौकिक अनुभूति लिए माननीय योगी जी की प्रशासनिक दक्षता का एक ऐसा दिव्य प्रयास है जहाँ सबकुछ आँखों के सामने ठहर जाता है कि हम ऐसे सफल सुप्रयासों की कैसे-कैसे प्रशंसा करें। क्योंकि पूरी व्यवस्था में किंचित मात्र भी कमी नहीं है। जो लोग स्वभाव वश इस पुनीत प्रयासों में कमी ढूंढते हैं, वह भी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं, क्योंकि कमी कहीं नहीं है। किसी भी व्यवस्था में नहीं है।

जरा सोचिए यदि 40 करोड़ लोग ऐसे ही जलाशय, समुद्र या नदी में स्नान करते, जहाँ ईश्वरीय प्रताप या दिव्यता के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद न होता तो करोड़ों लोग स्किन रोग के शिकार हो जाते। परन्तु यह पुण्य तीर्थराज प्रयागराज हैं; जहाँ सभी तरह से मां गंगा-यमुना-सरस्वती के पावन संगम पर स्नान करने से ही नहीं अपितु दर्शन लाभ से भी धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हालांकि ईश्वर सबके धैर्य, पराक्रम, साहस, प्रशासनिक दक्षता, धार्मिक आस्था और त्याग की परीक्षा लेता है। योगी जी का भी लिया, जो अव्वल अंकों से पास हो गए। क्योंकि

काल प्रवाह वश गत 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के शाही स्नान से ठीक पहले जो घटना घटित हुई, वह माननीय श्री योगी जी के पुरुषार्थ पूर्ण किए गए कार्य की परीक्षा थी, धार्मिक आस्था से लबालब उनके अदम्य साहस की परीक्षा थी, जिसने एक-एक व्यक्ति को, हम सभी को द्रवित किया। वहीं, धर्म विरोधी आस्था रखने वालों और उन्माद फैलाने वालों को आलोचना का अवसर भी दिया।

परन्तु ऐसे धार्मिक आस्था के केन्द्र बिंदु साहसी प्रतापी पुरुष माननीय योगी आदित्यनाथ जी, जिन्होंने संयोग वश केवल ठाना है उत्तरप्रदेश के गौरव को, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के राम-राज्य की अवधारणा को, धरातल पर पुनः प्रतिस्थापित करने के लिए। इसलिए वह हृदयविदारक घटना से सिर्फ द्रवित ही नहीं हुए, अपितु मन वचन कर्म से आहत होकर, अंदर से रोकर भी, बाहर से आने वाले महाकुम्भ के यात्रा को कैसे और अधिक सुदृढ़ बनाया जाए, ऐसे भाव से कुछ क्षण के लिए भावुक होकर, मन के अंदर रोकर भी पुन: व्यवस्था में लग गए।

इसलिए यहां याद आती है महाकवि निराला की ‘राम शक्ति पूजा’ की कुछ मार्मिक पंक्तियां जो योगी जी के मन का संधान कर कार्य करने के लिए उपयोगी बनी। जब सभी हताश निराश आलोचना के शिकार थे- “है अमानिशा; उगलता गगन घन अंधकार; खो रहा दिशा का ज्ञान; स्तब्ध है पवन-चार; अप्रतिहत गरज रहा पीछे अंबुधि विशाल; भूधर ज्यों ध्यान-मग्न; केवल जलती मशाल। स्थिर राघवेंद्र को हिला रहा फिर-फिर संशय, रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय; जो नहीं हुआ आज तक हृदय रिपु-दम्य-श्रांत, एक भी, अयुत-लक्ष में रहा जो दुराक्रांत, कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार, असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।।

माननीय योगी जी का मन अशांत था परन्तु कभी पराजय न मानने वाले योगी जी मौनी अमावस्या की पूर्व की बेला में हुई घटना से दु:खी होकर बैठने वाले नहीं थे। उन्होंने खुद कमान सम्भाली और महाकुम्भ के आयोजन स्थल से सटे सभी जनपदों में हाई अलर्ट जारी कर करोड़ों श्रद्धालुओं को पड़ोसी जनपदों में होल्ड कराया। जिसकी संरचना एवं व्यवस्था माननीय मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की अध्यक्षता में गठित/आयोजित बैठकों में से पूर्व से ही थी।

निश्चित रूप से एक शब्द या एक वाक्य में बिना अतिश्योक्ति पूर्ण शब्दों में कहा जाए कि योगी जी ने सभी जनपदों के श्रद्धालुओं को होल्ड कराकर घटना को रोका। फिर श्रद्धालुओं को धार्मिक आस्था के प्रतीक महाकुम्भ में मात्र 10 घंटों की प्रतीक्षा के साथ पुनः महाकुम्भ में प्रवेश कराकर शाही पर्व का स्नान कराया, वह बेहद सराहनीय पहल है।

निराला की निम्नलिखित पक्तियां उन पर सटीक बैठती हैं- “अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति! कहते छल-छल, हो गए नयन, कुछ बूंद पुनः ढलके दृगजल, रुक गया कंठ, चमका लक्ष्मण-तेजः प्रचंड, धँस गया धरा में कपि गह युग पद मसक दंड।” दरअसल, इस घटना से माननीय योगी जी आहत ही नहीं हुए अपितु उनका अन्त:करण भी रोया। फिर भी इस घटना से तत्काल उबरकर महाकुम्भ 2025 को अलौकिक एवं विश्व पटल पर मानवीय चेतना का केन्द्रविंदु बनाने के लिए पुनः ततपर हो गए।

उन्होंने पुन: राम जी के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर मन में दृढ निश्चय किया कि महाकुम्भ की गरिमा को भव्य, दिव्य और अलौकिक बनाना है| इसलिए याद किया- “विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण, हे पुरुष-सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण, आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर, तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर; रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सका त्रस्त, तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त, शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन, छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनंदन!”

प्रधानमंत्री मोदी जी के उपरोक्त परामर्श एवं आशीर्वाद से महाकुम्भ 2025 में योगी जी एवं उनकी टीम उत्तरप्रदेश विशेषकर महाकुम्भ की टीम एवं पड़ोसी जनपदों की टीम अनवरत प्रयास एवं कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के साथ लगी है। मन में महाकुंभ के महात्म्य एवं विश्व के सबसे विशाल धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं आर्थिक लाभ की दृष्टि से आकलन करने वाले विशेषज्ञ के लिए महाकुंभ 2025 का प्रयागराज में आयोजन सभी की मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति का आध्यात्मिक एवं धार्मिक समागम है।

वहीं, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक समागम के लिए आने वाले सहृदयी श्रद्धालुओं की मनवांछित आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक यात्राओं के प्रयोजन के लिए उत्तरप्रदेश सरकार की ने अभूतपूर्व व्यवस्था की है। यदि कहा जाए कि ऐसी उत्कृष्ट व्यवस्था,, जो इस वर्ष 2025 के महाकुंभ में प्रयागराज में माननीय योगी जी के नेतृत्व में की गई है, वह न कभी हुई थी और आगे भी न होगी, यदि माननीय योगी आदित्यनाथ जी का नेतृत्व उत्तरप्रदेश अथवा केंद्रीय नेतृत्व में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नहीं मिलेगा तो।

इस बार महाकुंभ के महात्म्य एवं गरिमा को नई ऊर्जा एवं व्यवस्था की दृष्टि से ऐसी आभा, शोभा, महात्म्य एवं ऐश्वर्यवान व्यवस्था मिली है, जो हमें राम-राज्य की उस स्मृति शेष व्यवस्था की याद दिलाती है जबकि हमारे राष्ट्र का भव्य गौरव, समृद्धि, ऐश्वर्य और समृद्धि सभी शिखर पर थे, जिसको ललचायी दृष्टि, ईर्ष्यालू स्वभाव से देखने वाले लुटेरे सबकुछ लूटने के लिए आकर्षित हुआ करते थे।

परंतु वर्तमान में देश की व्यवस्था माननीय मोदी जी के रूप ऐसे संत, तपस्वी, साहसी, राष्ट्रभक्त नितांत समष्टि/समिष्ट की समृद्धि के प्रति समर्पित राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत व्यक्तित्व के हाथ में है, जहां से केवल राष्ट्र के विकास के लिए ही पीड़ा है, दर्द है और समर्पित व्यक्तित्व के उत्कृष्ट कार्य शैली से राष्ट्र का नवनिर्माण राम-राज्य की परिकल्पना के मानकों की पूर्णता की ओर बढ़ रहा है।

यह उसी का परिणाम है कि अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है, काशी विश्वनाथ, वृंदावन धाम, मां विंध्यवासिनी धाम के कॉरिडोर का निर्माण कर धर्मप्रिय भारतीयों नागरिकों की आस्था में अभिवृद्धि कराकर, वैश्विक औद्योगिक विकास के लिए माननीय मुख्यमंत्री, उत्तरप्रदेश श्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश में इन्वेस्टर्स सम्मिट कराकर उद्योग के विकास को बढ़ाया है।

उद्योग और विकास की अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर साकार किए जाने की हर दृष्टि पूर्ण संवेदनशीलता का आभाष दिलाती है। क्योंकि धर्मशास्त्रों में कहा गया है- “भूखे भजन नहीं होत हरि गोपाल।” सभी भूख के लिए उद्योग है और सबकी भूख की पूर्ति के लिए नैतिक विकास की अवधारणा को सिद्ध करने के लिए संस्कृति, धर्म और राष्ट्र प्रेम आवश्यक है। युगों-युगों की इस रीति, प्रीति और धार्मिक आस्था के केंद्रविन्दु में रहा प्रयागराज, जो तीर्थों का राजा है, महाकुंभ के आयोजन का केंद्रबिन्दु रहा है। इसलिए हम पावन प्रयागराज की धार्मिक मान्यता और यहां स्नान करने आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था की ऊर्जा को कम नहीं कर सकते हैं।

दरअसल, प्रयाग शब्द की उत्पत्ति की बात करें तो कहा गया है कि, “यत्रायजत भतात्मा पूर्व मेव पितामह। प्रयागमिति विख्यातं तस्माद भरतसत्तम।।” अर्थात प्रयाग शब्द की व्युत्पत्ति यज्ञ धातु से मानी जाती है। महाभारत के वन पर्व के अनुसार, इस तीर्थ का नाम प्रयाग इसलिए पड़ा कि यहां स्वयं ब्रह्मा ने प्रकृष्ट (उत्कृष्ट) यज्ञ संपन्न किया था। पुराणों में कहा गया है कि अयोध्या, मथुरा, मायापुरी, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका- ये सप्त पुरियां हैं और इन्हें तीर्थराज प्रयाग की पत्नियों की संज्ञा दी गई है। सातों पुरियों में काशी श्रेष्ठ है। ये तीर्थराज की पटरानी है, इसीलिए तीर्थराज ने इन्हें सबसे निकट स्थान दिया है। 

निर्मल मन से कहूं तो मैं ज्ञानी नहीं हूं। कबीरदास जी के भाव, आदर्श से प्रेरित होकर उनके अनुरूप कहना चाहूंगा, कि प्रयाग की धरती ने लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत क्या नहीं दिया! सुयोग्य प्रशासक, सुयोग्य साहित्यकार, सुयोग्य और निष्ठापूर्ण लेखनी के लिए प्रतिबद्ध पत्रकार, लेखक, कवि और अध्यात्म, धर्म की पताका को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने वाले संत समाज, उनके ऊर्जावान, धर्मध्वज के संवाहक, संन्यासी एवं महामंडलेश्वर और आधुनिक युग में न्याय के ध्वज न्यायाधीश तथा संघर्ष कर न्याय दिलाने वाले अधिवक्ता गण, उद्यमी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के सिरमौर भारत के प्रधानमंत्री और अन्य राजनीतिज्ञ, उत्तरप्रदेश के विकास के लिए संघर्षरत छात्र-छात्राएं और  मुख्यमंत्री यही कर्मभूमि और प्रयागराज विश्वविद्यालय की शिक्षा के अनुपम देन हैं।

महाकुंभ 2025 में सेवाभाव से कार्य करने से, हृदय से आनंदित होकर निष्ठा और धर्मपरायणता प्रदर्शित करने से, माननीय योगी जी के नेतृत्व में सम्पूर्ण विश्व में भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक ध्वज की पताका को सम्पूर्ण शान के साथ प्रदर्शित किया है, यह मेरा अटल आत्मविश्वास है। सच कहूं तो महाकुम्भ 2025 का समापन भव्य, दिव्य एवं वैश्विक स्तर पर सदैव अनुकरणीय, चिरस्मरणीय एवं व्यवस्था अनिर्वचनीय रहेगी। सनातन धर्म की जय होगी। विशेषकर महाकुम्भ की टीम एवं पड़ोसी जनपद की टीम अनवरत प्रयास एवं कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के साथ लगी हुई है।

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