कोरोना के बढ़ते खतरे, गंभीर होंगे परिणाम.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इन दिनों कोरोना संक्रमण फिर तेजी से बढ़ता देख भयभीत होना स्वाभाविक है, पर यह न भूलें कि इसमें हमारे आत्मानुशासन की कमी का मुख्य योगदान है। क्या आप इस भय के कारण ही सावधानियां बरतना चाहते हैं? आपने संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी सावधानियों को अब कम कर दिया है? यदि हां, तो यही आत्मसंयम की कमी है। गत वर्ष यही वक्त था, जब कोरोना की दहशत पांव पसार रही थी। अचानक लॉकडाउन हुआ और जिंदगी उलट-पुलट हो गयी। सबसे प्रभावित हुई हमारी दिनचर्या, लेकिन हमने प्रयास किए और उसे बहुत संयमित बनाया। क्या अब वैसी दिनचर्या नहीं रही? यदि नहीं, तो इसका परिणाम सामने है। संक्रमण फिर बढ़ रहा है।
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के मनोचिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर आरएन साहू कहते हैं, ‘कुछ लोगों के लिए कोरोना पहले भी सामान्य चीज थी तो कुछ लोग इतने डर गए कि आज भी दहशत में हैं। हमें इन दोनों स्थितियों से खुद को बचाना है। इसके लिए आत्मसंयम ही एकमात्र उपाय है।’ पर डॉक्टर साहू के मुताबिक, लोग जो चीज बाहरी दबाव में आकर करते हैं, उसे वे अधिक समय तक नहीं अपना सकते। इसलिए यहां सबसे ज्यादा जरूरत है आत्मसंयम के अभ्यास की। खुद को बाहरी प्रलोभनों से बचाए रखना ही आत्मसंयम है।
मशहूर मनोविश्लेषक नार्मन विंसेंट पील मानते थे कि मनुष्य अनंत शक्तियों का स्नेत है। पर अपनी इन शक्तियों को जाग्रत करने के लिए विनम्रतापूर्वक आत्मसंयम की राह पर चलना जरूरी है। ध्यान रहे कि आत्मानुशासन किसी सुधारात्मक लक्ष्य को हासिल करने और बुरी आदतों को नियंत्रित करने में थर्मोस्टेट की भांति कार्य करता है। यह ठीक उसी प्रकार बुरी आदतों से छुटकारा दिलाने में सक्षम है, जिस प्रकार थर्मोस्टेट घर के तापमान को नियंत्रित करता है।
क्या करें?
– यह विचार बना रहे कि भले ही मामले कम हो रहे थे, लेकिन संक्रमण के खतरे कम नहीं हुए हैं।
– बाहरी प्रलोभनों यानी भीड़ में जाने से बचें। समुचित शारीरिक दूरी का पूर्णतया पालन करें।
– जिस दिनचर्या का आपने पिछले एक साल से पालन किया है, उसे बनाये रखने का प्रयास करें। ध्यान रहे, वह दिनचर्या उतनी ही सरल है जिसे संतुलित दिनचर्या के लिए जरूरी माना जाता है।
– जिन महापुरुषों के चरित्र को जानकर हम हैरान होते हैं, जो उन्हें महान बताते हैं, उसका कारण उनका आत्मसंयम ही रहा है। इससे लक्ष्य से उनका भटकाव नहीं होता था। वे प्रलोभनों से दूर रह पाते थे। उनसे सीख लेते हुए हमें भी आत्मसंयम का अभ्यास करना चाहिए औरअपनी दिनचर्या को उसी के अनुरूप बनाना चाहिए।
शारीरिक घड़ी को सुचारु रखना होगा
मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट और कॉरपोरेट ट्रेनर डॉ. प्रकृति पोद्दार ने कहा है कि समय नियंत्रण में नहीं, पर हमारी मनोवृत्ति, हमारा व्यवहार और प्रतिक्रिया हमेशा हमारे नियंत्रण में होती है। इस बात को समझ लें तो किसी भी स्थिति में अपनी दिनचर्या को बेहतर करने में जरूर मदद मिलेगी। हमारे शरीर के भीतर भी है एक घड़ी। यह दिमाग से तालमेल बनाए रखकर हमारी शारीरिक व्यवस्था को सुचारु रखती है। कोरोना काल में यह उलट-पुलट हुआ तो बड़ी परेशानी हुई, पर धीरे-धीरे इसे सेट करने की कोशिशें हुईं। जिन्होंने अपने बॉडी क्लॉक को सामान्य रखने के लिए एक दिनचर्या बनाये रखी, उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इसलिए कोशिश करें कि हर दिन का समय तय करें। शोध बताते हैं कि जब यह शारीरिक घड़ी नियमित और सुचारु रहती है तो हम अच्छा महसूस करते हैं, अन्यथा कई प्रकार की परेशानियां जन्म ले सकती हैं।