सीवान की मेधा शक्ति ने राष्ट्रीय चेतना का जगाया था अलख

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जिले  के विद्वान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी मेधा से राष्ट्रीय आंदोलन को दिया था प्रभावी वैचारिक आयाम

आजादी के अमृत महोत्सव के संदर्भ में आलेख श्रृंखला
✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान मेधा की धरती रही है। ब्रिटिश हुकूमत से देश को स्वाधीन कराने के लिए राष्ट्रीय चेतना के शंखनाद में सिवान की मेधा शक्ति ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। चाहे वो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद हो या मौलाना मजहरुल हक साहब या हो बृजकिशोर प्रसाद या दाढ़ी बाबा, इन सभी सिवान के महान सपूतों ने राष्ट्रीय आंदोलन में जनचेतना को तरंगित करने, राष्ट्रीय विचार का अलख जगाने के लिए उत्कृष्ट प्रयास किया। आजादी के अमृत महोत्सव मनाने जा रहे राष्ट्र को अपने इन अमर विभूतियों के योगदानों का सादर नमन करना चाहिए तथा आनेवाली पीढ़ी को इन महापुरुषों के कृतित्व और योगदान के बारे में बताना चाहिए ताकि सिवान का हर नागरिक अपने गौरवपूर्ण इतिहास पर गर्व कर सके।

सिवान के महान सपूतों ने राष्ट्रीय चेतना की प्रबल बयार बहाई

यद्यपि राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में संचार के साधनों की पहुंच सीमित आबादी तक ही थी। फिर भी सिवान में राष्ट्रीय चेतना का स्तर सदैव ऊंचा रहा। जिले में महात्मा गांधी,मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू, सुभाषचंद्र बोस सरीखे राष्ट्रीय नेताओं के दौरों के समय सिवान के जनता की भागीदारी इस ज्वलंत राष्ट्रीय चेतना का अप्रतिम प्रमाण है। राजेंद्र बाबू, मौलाना साहब और बृजकिशोर बाबू ने जहां अखबारों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना के प्रसार का प्रयास किया वहीं दाढ़ी बाबा ने शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का गंभीर प्रयास किया। असहयोग आंदोलन के समय पटना में स्थापित होनेवाले बिहार विद्यापीठ के संचालन में भी सिवान के मेधा की बड़ी भूमिका रही।

राजेंद्र बाबू की मेधा तो राष्ट्रीय स्तर पर रही सुप्रतिष्ठित

सिवान के जीरादेई के राजेंद्र बाबू तो बिहारी मेधा के परिचय ही रहे। छात्र जीवन से ही उन्होंने युवा सम्मेलनों में शिरकत की और अपने आलेखों के भारतमित्र, भारत उदय, कमला के प्रकाशन द्वारा राष्ट्रीय चेतना के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कालांतर में राजेंद्र बाबू ने ‘देश’ और ‘पटना लॉ वीकली’ के संपादन का दायित्व भी संभाला, जो राष्ट्रीय चेतना को लेकर बेहद मुखर था। लोकप्रिय अखबार सर्च लाइट के लिए संसाधन उपलब्धता में राजेंद्र बाबू का विशिष्ट योगदान रहा। राजेंद्र बाबू ने 1934 के अखिल भारतीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन और 1939 के अधिवेशन में अध्यक्ष के कार्यभार को संभालने के साथ राष्ट्रीय आंदोलन की नीति रणनीति के निर्धारण में विशेष भूमिका निभाई। अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के अधिवेशनों में सक्रिय भागीदारी के साथ असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, चंपारण सत्याग्रह आदि के दौरान राजेंद्र बाबू ने अपने भाषणों से राष्ट्रीय जनचेतना के जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश के स्वतंत्र होने पर भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में राजेंद्र बाबू ने आधुनिक भारत के वैधानिक कलेवर को एक सुदृढ़ आयाम दिया।

मौलाना साहब का त्याग, समर्पण राष्ट्रीय आंदोलन की रही थाती

मौलाना मजहरूल हक साहब का सिवान के फैजपुर स्थित आशियाना तो स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति का मुख्य स्थल था। 1910 में इंपीरियल कांग्रेस के सदस्य के तौर पर मार्ले मिंटो सुधारों की कमियों पर ध्यान आकृष्ट कराया। 1919 में रॉलेट एक्ट के खिलाफ जलसों में शिरकत की।1920 में मौलाना साहब ने पूरे बिहार का दौरा कर जनचेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बिहार नेशनल कॉलेज और बिहार विद्यापीठ के चांसलर, सदाकत आश्रम की निजी जमीन पर स्थापना के साथ बिहार में शिक्षा के अलख को जागृत करने में मौलाना साहब की अहम भूमिका रही। साप्ताहिक देश के प्रकाशन द्वारा मौलाना साहब ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया।

बृजकिशोर बाबू की बौद्धिकता और रणनीति भी रही सुप्रतिष्ठित

सिवान के श्रीनगर के बृजकिशोर बाबू ने गांधी जी को चंपारण बुलाने में तार्किक आधार पर प्रेरित किया था। चंपारण सत्याग्रह में गांधी जी को बृजकिशोर बाबू ने विशेष सहयोग प्रदान किया था। गांधी जी के जेंटल मैन बिहारी ब्रजकिशोर बाबू ने असहयोग आंदोलन के दौर में अपनी चमकती वकालत छोड़ कर देश सेवा के लिए अपना अहम योगदान दिया। नमक सत्याग्रह के दौरान बृजकिशोर बाबू की गोपनीयता की रणनीति ने अंग्रेजों को जबरदस्त चुनौती दी थी। पटना विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना में भी बृजकिशोर बाबू का महत्वपूर्ण योगदान रहा। साप्ताहिक देश के माध्यम से अपने आलेखों से राष्ट्रीय आंदोलन में चेतना के संचार में बृजकिशोर बाबू आगे रहे। जैजोर गांव के कपिल देव प्रसाद श्रीवास्तव ने बृजकिशोर बाबू के साथ मिलकर शिक्षा के माध्यम से जनचेतना के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सिवान के इन सपूतों का भी रहा अहम योगदान

सिवान में आर्य समाज के संस्थापक, डीएवी पीजी कॉलेज सहित अन्य शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना के माध्यम से वैद्यनाथ प्रसाद यानी दाढ़ी बाबा ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान शिक्षा के माध्यम से जनचेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण योगदान किया था। सिवान के कागजी मोहल्ला के बाबा खलील दास ने देश प्रेम के गीतों और अन्य साहित्यिक कृतियों के माध्यम से जनचेतना के संचार में अहम भूमिका निभाई थी। गोरेयाकोठी के नारायण सिंह ने भी शिक्षा का अलख जगाने के लिए कई शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की थी। महाराजगंज के अमर शहीद उमाकांत प्रसाद की दिलेरी और बहादुरी से ब्रिटिश हकीमों की नींदे गायब रहा करती थी। उन्होंने भी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना के साथ स्थानीय लोगों में राष्ट्रीयता की भावना के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस तरह सिवान के कई महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी मेधा, विद्वता के बूते सीमित संसाधनों के आधार पर राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय चेतना को जागृत कर ब्रिटिश हुकूमत को जबरदस्त चुनौती पेश की। आज जबकि हम स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो हम सभी का कर्तव्य है कि हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के कृतित्व को बच्चे बच्चे तक पहुंचाएं। ताकि राष्ट्रीय चेतना हमारी रगों में बदस्तूर बहती रहे। जिससे हम अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों को समझ सकें और आनेवाली पीढ़ी अपने पूर्वजों की गौरवगाथा का गुणगान कर सके।

 

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