एक देश एक चुनाव का मुद्दा बहस और चर्चा का विषय है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election) की अवधारणा कई वर्षों से भारत में बहस और चर्चा का विषय रही है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनावों में होने वाले वित्तीय खर्चे में कटौती की जा सके। प्रस्ताव के समर्थकों का तर्क है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकता है, खर्चों को कम कर सकता है और बार-बार चुनावों के कारण होने वाली परेशानियों को कम कर सकता है। हालांकि, आलोचक इसे लेकर कई तरह के सवाल उठाते रहे हैं।

भारत में चुनाव का एक ऐसा चक्र बना हुआ है, जिससे ऐसा लगता है कि देश में चुनाव होते ही रहते हैं। आजादी के बाद से देश में कई चुनाव हुए हैं, जिससे अक्सर संसाधनों और प्रशासनिक मशीनरी पर काफी दबाव पड़ता है। ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा नई नहीं है। जानकारों का मानना है कि यह प्रक्रिया उतनी की पुरानी है जितना हमारा संविधान।

देश में चार बार हुए हैं एक साथ चुनाव

साल 1950 में गणतंत्र होने के बाद, 1951 से लेकर 1967 के बीच हर पांच साल में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते रहे। देश में मतदाताओं ने साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में केंद्र और राज्यों के लिए एक साथ मतदान किया। लेकिन देश में कुछ पुराने राज्यों का पुनर्गठन और नए राज्यों के उभरने के साथ इस प्रक्रिया को साल 1968-69 में पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया।

विश्व के कई देशों ने चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ के मॉडल की विविधताओं को अपनाया है। यहां हमने उन देशों का उल्लेख किया है, जिन्होंने इस प्रक्रिया को अपनाया है। साथ ही प्रक्रिया के तहत इन देशों में किस तरह से चुनाव कराए जाते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला है।

अमेरिका

अमेरिका में राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के लिए चुनाव हर चार साल में एक निश्चित तारीख पर होते हैं। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि देश में सर्वोच्च कार्यालयों का चुनाव एक साथ कराया जा सके, जिससे एकीकृत चुनावी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया जा सके। इस प्रक्रिया में संघीय कानून द्वारा निर्धारित चुनाव की तारीखों का पालन शामिल है, जिससे चुनावी गतिविधियों के राष्ट्रव्यापी समन्वय बना रहे।

अमेरिका में चुनाव की प्रक्रिया:

1. अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत प्राथमिक चुनावों से होती है, यहां राजनीतिक दल आम चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का चयन करते हैं।

2. अमेरिका में आम चुनाव चार साल के अंतराल पर कराए जाते हैं। साथ ही यह चुनाव नवंबर के पहले मंगलवार को होते हैं।

3. अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया के तहत मतदाता राष्ट्रपति, कांग्रेस के सदस्यों, राज्यपालों, राज्य विधायकों और स्थानीय अधिकारियों सहित विभिन्न संघीय, राज्य और स्थानीय कार्यालयों के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं।

4. अमेरिका में इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली का इस्तेमाल राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए किया जाता है। जिसमें प्रत्येक राज्य को कांग्रेस में उसके प्रतिनिधित्व के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल वोट आवंटित किए जाते हैं।

5. चुनाव में जो उम्मीदवार बहुमत हासिल करता है, वो राष्ट्रपति बन जाता है। जबकि कांग्रेस के सदस्यों और अन्य अधिकारियों को उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में वोटों के आधार पर चुना जाता है।

फ्रांस

फ्रांस भी देश में चुनाव कराने के लिए कुछ इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाता है। यहां हर पांच साल में एक साथ राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली (संसद का निचला सदन) के लिए चुनाव कराए जाते हैं। यहां मतदाता एक ही मतदान प्रक्रिया के तहत राज्य के प्रमुख और उनके प्रतिनिधियों दोनों का चुनाव करते हैं। फ्रांस में ‘एक देश, एक चुनाव’ की प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली के लिए एक निश्चित कार्यकाल तय करना है।

फ्रांस में चुनाव की प्रक्रिया

1. फ्रांस में राष्ट्रपति और विधायी चुनाव हर पांच साल में कराए जाते हैं। जिसमें राष्ट्रपति का चुनाव बहुमत के आधार पर किया जाता है।

2. फ्रांस में राष्ट्रपति नेशनल असेंबली में बहुमत हासिल करने वाले दल से प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। जिसे दो-चरणीय प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है।

3. प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए उम्मीदवार पहले दौर में बहुमत हासिल करने की कोशिश करता है। यदि इस प्रक्रिया में कोई भी उम्मीदवार पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाता है, तो शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच दूसरे दौर की प्रतिस्पर्धा कराई जाती है।

4. फ्रांस में नेशनल असेंबली के सदस्यों को एकल-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों से चुना जाता है। साथ ही इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाता है कि विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।

स्वीडन

स्वीडन, देश में चुनाव के जिस मॉडल को अपनाता है उसके तहत संसद (Riksdag) और स्थानीय सरकार के लिए आम चुनाव हर चार साल में एक साथ आयोजित कराए जाते हैं। वहीं नगरपालिका और काउंटी परिषद चुनाव, राष्ट्रीय चुनावों के साथ होने से मतदाताओं को एक ही दिन में कई चुनावी प्रक्रियाओं में शामिल होने का मौका देती है।

इस प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय और स्थानीय विधायिकाओं के कार्यकाल को सिंक्रोनाइज किया जाता है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार के विभिन्न स्तरों के चुनाव एक साथ कराए जा सकें। स्वीडन में इस चुनावी प्रक्रिया के चलते चुनावी दक्षता और मतदाताओं की सक्रियता दोनों की ही बढ़ावा मिलता है। साथ ही इस प्रक्रिया से अलग-अलग चुनाव कराने का प्रशासनिक बोझ भी कम होता है।

स्वीडन में चुनाव की प्रक्रिया

1. स्वीडन की संसद रिक्सडैग के लिए आम चुनाव हर चार साल में होते हैं। जिसमें मतदाता proportional representation system के माध्यम से संसद सदस्यों का चुनाव करते हैं।

2. नगरपालिका और काउंटी परिषदों के लिए स्थानीय सरकार के चुनाव भी हर चार साल में होते हैं। आमतौर पर यह चुनाव उसी दिन कराए जाते हैं जिस दिन राष्ट्रीय चुनाव होते हैं।

3. स्वीडन में बहुदलीय प्रणाली लागू है, जिसमें मतदाता राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से उम्मीदवारों का चयन करते हैं।

4. चुनाव प्रक्रिया की देखरेख स्वीडिश चुनाव प्राधिकरण द्वारा की जाती है, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

कनाडा

कनाडा ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रणाली का सख्ती से पालन नहीं करता है। यहां हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए चुनाव हर चार साल में कराए जाते हैं। जो की देश को राष्ट्रीय स्तर पर एक सुसंगत चुनावी ढांचा देता है। इसके अलावा देश के कुछ प्रांत स्थानीय स्तर के चुनावों को संघीय चुनावों के साथ कराते हैं।

कनाडा में चुनाव की प्रक्रिया

1. हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए संघीय चुनाव हर चार साल में होते हैं, जिसमें प्रधानमंत्री निश्चित कार्यकाल के आधार पर या परिस्थितियों के आधार पर चुनाव का आह्वान करते हैं।

2. संसद के सदस्यों को फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है, जिसमें प्रत्येक चुनावी प्रांत में सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार हाउस ऑफ कॉमन्स में एक सीट पर जीत हासिल करता है।

3. प्रांतीय चुनाव प्रत्येक प्रांत के चुनावी कानूनों और प्रथाओं के आधार पर आयोजित किए जाते हैं। जिसमें चुनावी प्रणालियों, चुनाव की तारीखों और मतदान की प्रक्रियाएं अलग-अलग होती है।

एक देश-एक चुनाव की चुनौतियां

  • लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है, लेकिन इसे उससे पहले भी भंग किया जा सकता है। ऐसे में एक देश-एक चुनाव संभव नहीं होगा।
  • लोकसभा की तरह ठीक विधानसभा का भी कार्यकाल पांच साल का होता है और ये भी पांच साल से पहले भंग हो सकता है। अब ऐसे में सरकार के सामने चुनौती होगी कि एक देश-एक चुनाव का क्रम कैसे बरकरार रखा जाए।
  • एक देश-एक चुनाव पर देश के सभी दलों को एक साथ लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि इस पर सभी पार्टियों के अलग-अलग मत हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि एक देश-एक चुनाव से राष्ट्रीय पार्टी को फायदा पहुंचेगा, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों को इसका खामियाजा भुगतना होगा। यानी कि उन्हें नुकसान पहुंचेगा।
  • फिलहाल देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, जिस वजह से ईवीएम और वीवीपैट की सीमित संख्या हैं, लेकिन अगर एक देश-एक चुनाव होते हैं तो एक साथ इन मशीनों की अधिक मांग होगी, जिसे पूर्ति करना बड़ी चुनौती होगी।
  • अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो अतिरिक्त अधिकारियों और सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में ये भी एक बड़ी चुनौती होंगी।
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