गांधी से बापू तक का सफर अप्रैल 1917 में शुरू हुआ, जिसका पहला स्टेशन चंपारण था,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यह बात उस समय की है, जब मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे। दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में किए गए उनके आंदाेलन की गूंज तो थी, लेकिन भारत में अभी वे महात्मा (Mahatma Gandhi) या बापू (Bapu) नहीं थे। उनकी मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी व बापू तक का सफर अप्रैल 1917 में शुरू हुआ, जिसका पहला स्टेशन बिहार का चंपारण (Champaran) था। इस यात्रा की शुरुआत चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल (Raj Kumar Shukla) ने कराई, जिसका निमित्त नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार का तीनकठिया कानून (Teenkathia Law) बना।
गाेपाल कृष्ण गाेखले ने दी भारत भ्रमण की सलाह
साल 1915 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। पराधीन भारत में उनकी दिलचस्पी देख उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने उन्हें भारत भ्रमण की सलाह दी। गोखले ने गांधी में भविष्य का बड़ा नेता देख लिया था। वे समझते थे कि भारत को लेकर गांधी के किताबी में जमीनी समझ भी जरूरी है।
राजकुमार शुक्ल ने चंपारण चलने का किया आग्रह
साल 1916 के गांधी कांग्रेस के अधिवेशन के लिए लखनऊ पहुंचे थे। वहां चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल भी पहुंचे थे। राजकुमार शुक्ल ने गांधी को चंपारण के किसानों के दुख-दर्द से अवगत कराते हुए वहां चलने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि चंपारण के किसानों पर तीनकठिया कानून के माध्यम से अंग्रेज किस तरह जुल्म कर रहे थे। अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के ‘नील के दाग’ वाले अध्याय में गांधी लिखते हैं कि लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन के पहले तक वे चंपारण का नाम तक नहीं जानते थे।
वहां नील की खेती और इस कारण वहां के हजारों किसानों के कष्ट की भी कोई जानकारी नहीं थी। गांधी लिखते हैं कि राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वहां उनका पीछा पकड़ा और वकील बाबू (उस वक्त बिहार के नामी वकील और जयप्रकाश नारायण के ससुर ब्रजकिशोर प्रसाद) के बारे में कहते कि वे सब हाल बता देंगे। साथ हीं चंपारण आने का निमंत्रण देते।
चंपारण में लागू था नील की अनिवार्य खेती का कानून
नेपाल सीमा से सटे बिहार के चंपारण में उस वक्त अंग्रेजों ने हर बीघे में तीन कट्ठे जमीन पर अंग्रेजों के लिए नील की अनिवार्य खेती का ‘तिनकठिया कानून’ लागू कर रखा था। बंगाल के अलावा यहीं नील की खेती होती थी। इसके बदले किसानों को कुछ नहीं मिलता था। इतना ही नहीं, किसानों पर कई दर्जन अलग-अलग कर भी लगाए गए थे। चंपारण के समृद्ध किसान राजकुमार शुक्ल इस शोषण के खिलाफ उठ खड़े हुए। इसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें कई तरह से प्रताडि़त किया। वे चाहते थे कि गांधी जी यहां आकर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ ने लोगों को एकजुट करें।
चंपारण से गांधीजी का राजनीति में धमाकेदार उदय
राजकुमार शुक्ल के प्रयासों का ही नतीजा था कि गांधीजी साल 1917 में चंपारण आए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में आजमाए सत्याग्रह और अहिंसा के अपने अस्त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण में ही किया। इस आंदोलन ने 135 सालों से शोषित चंपारण के किसानों को मुक्त किया। यह गांधी का देश की राजनीति में धमाकेदार उदय हुआ। इसके साथ देश को एक नया नेता मिला तो नई तरह की अहिंसक राजनीति भी मिली। जैसे गंगा का उद्गम गंगोत्री से हुआ है, ठीक वैसे हीं गांधी से बापू और महात्मा बनने के सफर का पहला स्टेशन ही चंपारण है।
राजकुमार शुक्ल के साथ इतिहास ने नहीं किया न्याय
अब कुछ बात राजकुमार शुक्ल की भी। 23 अगस्त 1875 को बिहार के पश्चिमी चंपारण में जन्में राजकुमार शुक्ल चंपारण के एक बड़े किसान थे। अधिक पढ़े-लिखे नहीं होने तथा सामाजिक लोगों में भी बहुत उठ-बैठ नहीं रहने के बावजूद किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। गांधी को देश की राजनीति में स्थापित करने वाले चंपारण अत्याग्रह के आयोजन में उनका अहम योगदान रहा, लेकिन इतिहास ने उनके साथ न्याय नहीं किया। वे केवल आजादी के सिपाहियों की लिस्ट में एक नाम भर बनकर रह गए हैं। भारत की स्वतंत्रता के पहले हीं 20 मई 1929 को मोतिहारी में उनकी मृत्यु हो गई। बाद में भारत सरकार ने उनपर दो स्मारक डाक टिकट भी प्रकाशित किए।
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