शीत युद्ध की दस्तक,दो धड़ों में बंटी दुनिया.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
रूस के राष्ट्रपति की ओर से युद्ध के ऐलान के बाद सबसे ज्यादा चर्चा विश्व युद्ध को लेकर हो रही है। पूरे विश्व के दो भागों में बंटने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। आज के समय जितने खतरनाक हथियार तमाम देशों के पास हैं, उतने पहले और दूसरे युद्ध के समय के नहीं थे। ऐसे में हालात बहुत गंभीर हो सकते हैं। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 80 और 90 के दशक से पहले भी कई दशकों तक कोल्ड वॉर चला। अस्सी के दशक और आज के हालात पूरी तरह अलग हैं। तब विश्व पूरी तरह दो धड़ों में बंटा था और अमेरिका-रूस के इर्द-गिर्द दुनिया घूम रही थी। तब चीन की इतनी ताकत नहीं थी तब और अब में कई देशों के समीकरण भी पूरी तरह से बदल चुके हैं। इस बार रूस उस कोल्ड वॉर का बदला भी लेना चाहता है।
पूरी दुनिया पर आर्थिक नजरिए से असर
नाटो 12 देशों से शुरू हुआ था। एक तरह से आज उसमें 65 देश जुड़े हैं जो कुल मिलाकर देश के सैन्य बलों का 57% हैं। इनकी शक्ति बहुत प्रभावी है। रूस को लगता है कि उसे नाटो ने चारों तरफ से घेर लिया है इसलिए जो उससे हो पाएगा, वह करेगा। यूक्रेन की सीमाओं पर उनकी विशाल सेना(रूस की कुल युद्ध शक्ति का लगभग 60%) का जमावड़ा रूस पर नाटो और संभावित पश्चिमी आक्रमण पर उनकी चिंताओं को कम करता है। उन्होंने यह भी आदेश दिया है कि बेलारूस में 30,000 रूसी सैन्यकर्मी अनिश्चितकाल तक रहेंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि मिन्स्क भी मास्को से कसकर बंधे रहे। यह प्रभावी रूप से नए क्षेत्र को जोड़ता है जहां पुतिन सैन्य बलों और यहां तक कि संभावित परमाणु हथियारों को तैनात कर सकते हैं। पुतिन ने आर्थिक जोखिमों की गणना की है। लेकिन इसका पूरी दुनिया पर आर्थिक नजरिए से असर होगा। पहले कोल्ड वॉर में प्रॉक्सी वॉर होता था लेकिन आज सीधी लड़ाई है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में लड़ाकू सेना का सबसे बड़ा जमावड़ा है। बदले में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस पर प्रतिबंधों की झड़ी लगा दी है। लेकिन पुतिन इस बार पूरे आर-पार के मूड में दिख रहे हैं। वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया। एक तरफ जहां भारत, चीन और यूएई ने रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर वोटिंग से किनारा किया तो वहीं इस प्रस्ताव पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, आयरलैंड, अल्बानिया, गबोन, मैक्सिको, ब्राजील, घाना और केन्या जैसे देशों ने अपनी मुहर लगाई।
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