चिठ्ठी आई है..’ गाने से पंकज उधास ने कमाया ‘नाम’,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अपनी खूबसूरत आवाज से लाखों दिलों को जीतने वाले दिग्गज और मशहूर गजल गायक पंकज उधास अपना जन्मदिन 17 मई को मनाते हैं। पंकज उधास न केवल गजल के लिए बल्कि अपने बेहतरीन गानों के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों के गानों में अपनी शानदार आवाज से दर्शकों के दिलों को जीता है। जन्मदिन के मौके पर हम आपको पंकज उधास से जुड़ी खास बातों से रूबरू करवााते हैं।
पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को गुजरात के जैतपुर में हुआ था। वह तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके दोनों बड़े भाई मनहर और निर्मल उधास मशहूर गायक थे। इन दोनों भाइयों ने उधास परिवार में गायकी शुरू की थी। इसके बाद पंकज उधास भी अपने भाइयों के नक्श कदम पर चल दिए और गायिकी शुरू की। उन्होंने राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी से चार साल तबला बजाना सिखा। इसके बाद पंकज उधास ने मास्टर नवरंग से शास्त्रीय संगीत गायिकी की बारीकियां सिखीं।
पंकज उधास को बॉलीवुड में पहला मौका साल 1972 में आई फिल्म कामना से मिला था। संगीतकार ऊषा खन्ना की सलाह पर उनको इस फिल्म में गाने का मौका दिया गया था। यह फिल्म तो फ्लॉप रही लेकिन पंकज उधास के गाने की काफी तारीफ हुई थी। लेकिन उन्हें असली पहचान साल 1986 में आई अभिनेता संजय दत्त की फिल्म ‘नाम’ के गाने ‘चिठ्ठी आई है..’ से मिली थी। उसके बाद से उन्होंने कई फिल्मों के लिए अपनी रूहानी आवाज दी है। इसके अलावा उन्होंने कई एल्बम भी रिकॉर्ड किए हैं। साथ ही बेहतरीन गजल भी गाई हैं। पद्मश्री पंकज उधास ने भारतीय संगीत को एक नयी उंचाई दी है।
पंकज उधास को उनके बेहतर काम के लिए साल 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। पंकज को जब यह सम्मान दिए जाने की घोषणा हुई थी, तो उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वह बताते हैं उनकी गायिकी के लाखों प्रशंसकों में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख भी शामिल थे। एक दिन किसी समारोह में पंकज के साथ-साथ महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख भी बतौर अतिथि शामिल हुए।
पंकज की परफॉर्मेंस के बाद स्टेज के पीछे दोनों की मुलाकात हुई। थोड़ी देर बातचीत के बाद विलासराव ने पंकज को बताया कि वह उनके कितने बड़े प्रशंसक हैं और उन्होंने पंकज से पूछा कि क्या आपको पद्मश्री मिल चुका है? तो पंकज ने जवाब दिया नहीं। फिर बातचीत यहीं पर खत्म हो गई। इसी बीच साल 2005 में पंकज ने अपनी गायिकी के 25 वर्षों का सफर पूरा कर लिया और इसके साथ-साथ वह कैंसर पीड़ितों के लिए काम करने वाली कुछ संस्थाओं के माध्यम से कैंसर पीड़ितों की भी मदद करते रहे। साल 2006 में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब उनको पद्मश्री दिए जाने की घोषणा हुई, तो एक दोस्त ने उन्हें फोन करके बधाई दी। इस पर पंकज ने पूछा कि किस बात की बधाई? तो उस दोस्त ने बताया कि आपको पद्मश्री से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई है। तब जाकर पंकज ने टीवी पर खबरें देखीं और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
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