भारतीय मूल के ऋषि सुनक की सिमटती संभावनाएं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल भारतीय मूल के ऋषि सुनक और लिज ट्रास के बीच की जंग निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। सितंबर में ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री की घोषणा हो जाएगी। ऋषि इस दौड़ में बड़ी संभावना के तौर पर उभरे। ब्रिटेन के अंदर और बाहर भारतीय और एशियाई मूल के लोगों के बीच खासतौर पर उनकी लोकप्रियता आसमान छू रही थी।

पर उम्मीदवारों के बीच हुई बहस से बड़ा उलटफेर हुआ। लिज ने ऋषि पर बढ़त बना ली है। प्रधानमंत्री के नाम को लेकर हुए ताजा सर्वे में भी लिज के मुकाबले ऋषि पिछड़ गए हैं। जबकि अब तक ऋषि ब्रिटेन में धैर्य और संयम के साथ बड़े मानवतावादी आदर्शो के जोर पर अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करते दिख रहे थे। यही मजबूती आगे उन्हें ब्रिटेन के एक युवा और उत्साही नेता के तौर पर उभारने में कामयाब भी रही। ऋषि ब्रिटेन में बदले सोच और परिस्थिति के बीच एक टिकाऊ और दूरदर्शी समझ के साथ उभरे नेता रहे हैं। उनका सोच आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों ही मोर्चो पर ब्रिटेन को आगे ले जाने वाला रहा है।

विंस्टन चर्चिल की मूर्तियों को नुकसान

गौरतलब है कि ब्रिटेन में बोरिस जानसन के साथ जो हुआ, उससे पहले भी वहां बहुत कुछ व्यवस्था और समाज के स्तर पर घटित हो रहा था। बात कोविड के दौर की करें तो वहां सामुदायिक तनाव और नस्लवादी आग्रह-दुराग्रह नए सिरे से देखने को मिले। इस दौरान वहां विंस्टन चर्चिल की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया।

इस बीच ऋषि ने उस अभियान का समर्थन किया जिसमें ब्रिटेन की विविधता का जश्न मनाने के लिए काले और अल्पसंख्यक नस्लों के लोगों (बीएएमई) को ब्रितानी सिक्कों पर दिखाने की मांग जोर पकड़ रही थी। सुनक तब इस बात को लेकर खासे उत्सुक दिखे कि उनके देश के सिक्के पिछली पीढ़ी के उन लोगों के काम को दर्शाएं जिन्होंने इस देश की और राष्ट्रमंडल देशों की सेवा की है।

साफ है कि ब्रिटेन अपने काले इतिहास और कटु अनुभवों से आगे निकलने के लिए छटपटा रहा था। इससे पहले ब्रेक्जिट की भी जो समीक्षा दुनियाभर में हुई, उसमें यह बात खासतौर पर रेखांकित हुई थी कि ब्रिटेनवासी अपनी अस्मिता और इतिहास में अपने नायकत्व को देखने के प्रति खासे भावुक रहे हैं। यूरोपीय संघ में उनकी यह पहचान कहीं दब रही थी, नए परिवर्तनों के बीच टूट-बिखर रही थी।

गांधी की स्मृति में सिक्का 

ऋषि सुनक भारतीय मूल के ब्रितानी नागरिक हैं। भारत और भारत के राष्ट्रपिता के प्रति उनका लगाव स्वाभाविक लग सकता है। पर यह पहली बार नहीं था जब ब्रितानी सिक्के पर महात्मा गांधी की तस्वीर डालने की बात वहां के वित्त मंत्री ने की। ऋषि से पूर्व वित्त मंत्री रहते हुए साजिद जावेद ने भी ‘द रायल मिंट’ (ब्रितानी टकसाल) को कहा था कि महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं सालगिरह के जश्न के मौके पर सिक्का जारी होना चाहिए।

भविष्य में आने वाले सिक्कों में विविधता

दरअसल ब्रिटेन अपने इतिहास और अपनी अस्मिता पर लगे धब्बों को धोना चाहता रहा है। इसकी मिसाल है वह पत्र जो बतौर वित्त मंत्री ऋषि ने ‘द रायल मिंट’ के अध्यक्ष लार्ड वाल्डग्रेव को लिखा। इसमें वे कहते हैं, ‘काले, एशियाई और अल्पसंख्यक नस्ल के लोगों ने ब्रिटेन की साझा संस्कृति के विकास में बड़ा योगदान दिया है।

पीढ़ियों तक अल्पसंख्यक नस्लों के लोगों ने इस देश के लिए लड़ाई लड़ी है और अपनी जान दी है, इस देश को हमने मिलकर बनाया है, अपने बच्चों को पढ़ाया है, बीमारों की सेवा की है, बुजुर्गो की तीमारदारी की है और उनके उद्यमी उत्साह से हमने अपने कुछ बहुत ही रोमांचक और सक्रिय व्यापार को शुरू किया है, नौकरियों को पैदा किया है और विकास को बढ़ावा दिया है।’ इसी पत्र में वे लिखते हैं, ‘मैं जानता हूं कि आप भविष्य में आने वाले सिक्कों में विविधता दर्शाने के लिए पहले से ही विचार कर रहे हैं और मैं आपके इन प्रयासों का स्वागत करता हूं। मुङो उम्मीद है कि ये अभियान हम सभी को ऐसा करने के महत्व और उसकी आवश्यकता को याद दिलाता है।’

जब अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को स्वीकार किया

जाहिर है कि ऋषि केवल वित्तीय क्षेत्र के संबंध में नहीं सोच रहे होंगे। वह कहीं न कहीं यह मानते भी रहे हैं कि आर्थिक विकास का एक छोर सभ्यता और समाज से जुड़ा है। लिहाजा वित्तीय फैसले के घेरे में उन सब बातों की फिक्र को शामिल करना होगा, जिससे कोई राष्ट्र नैतिक मूल्यों के किसी भी दबाव का ईमानदारी से सामना कर सके।

बहरहाल, वह दिन भी आया जब ब्रितानी मुद्रा ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को स्वीकार किया। पिछले साल ब्रिटेन के वित्त मंत्री के रूप में ऋषि सुनक ने भारत के राष्ट्रपिता के जीवन और विरासत को यादगार बनाने के लिए पांच पाउंड का एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया। सोने और चांदी सहित कई मानकों में उपलब्ध, विशेष संग्राहक सिक्का हीना ग्लोवर द्वारा डिजाइन किया गया और इसमें गांधी के सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से एक, ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है,’ लिखा हुआ है। इसके साथ-साथ भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल की छवि उकेरी गई है।

ऋषि के जैसे-जैसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री होने की संभावना कमजोर पड़ रही है, वैसे-वैसे एक सकारात्मक और गहरे मानवीय मूल्य के साथ की जाने वाली राजनीति की चुनौती भी बढ़ रही है। ऋषि अगर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री नहीं होते हैं, तो यह मौजूदा दौर में अहिंसक मूल्यों के साथ राजनीति के खतरे और जोखिम को जाहिर करेंगे।

साथ ही यह भी साफ होगा कि बड़े और ताकतवर देशों की आपसी ¨हसक स्पर्धा और साम्राज्यवादी आग्रहों के बीच अहिंसक मानवीय सरोकारों को स्थान दिलाने की राह आसान नहीं है। लोकतंत्र के साथ विश्व स्तर पर मानवीय सहयोग, सद्भाव और सहअस्तित्व की बात करने वाले भारत जैसे देश के लिए भी यह एक बड़े सबक की तरह होगा। यह समझना होगा कि अहिंसा और सद्भाव गहरे मानवीय मूल्य हैं, लिहाजा इनकी रक्षा के लिए धैर्य और अविचलित आस्था के साथ प्रयास करना होगा।

कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों के एक नवीनतम सर्वे में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की दौड़ में पूर्व चांसलर ऋषि सुनक अपनी प्रतिद्वंद्वी विदेश सचिव लिज ट्रस को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। वे अंतर को कम कर रहे हैं। हालांकि सर्वेक्षणों में अभी भी सुनक अपनी प्रतिद्वंद्वी लिज ट्रस से 34 अंकों से पीछे हैं। सुनक ने इसे प्रतियोगिता के शुरुआती दिन करार दिए हैं।

समाचार एजेंसी रायटर की रिपोर्ट के मुताबिक सुनक ने बुधवार को सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों के बीच प्रचार से पहले एक ट्वीट में कहा कि अभी शुरुआती दिन हैं। आने वाले हफ्तों में मैं आप में से कई लोगों से मिलने की उम्मीद कर रहा हूं। सुनक के इस ट्वीट से जाहिर है कि वह अपने प्रतिद्वंद्वी लिज ट्रस को शिकस्‍त देने की पूरी कोशिश करेंगे।

वहीं समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक एक निजी ग्राहक के लिए इतालवी सार्वजनिक मामलों की कंपनी टेकने ने पिछले सप्ताह एक सर्वेक्षण किया। 807 कंजरवेटिव सदस्यों पर किए गए इस सर्वेक्षण में सुनक को 43 प्रतिशत का समर्थन मिला जबकि ट्रस के पक्ष में 48 प्रतिशत सदस्य दिखे। नौ प्रतिशत सदस्यों ने बोरिस के स्थान पर नए प्रधानमंत्री के लिए दोनों में से किसी का पक्ष नहीं लिया। इस तरह सुनक व ट्रस में महज पांच अंकों का अंतर रह गया है।

यह पिछले महीने नाकआउट चरणों के अंत में किए गए यूगोव सर्वेक्षण के ठीक विपरीत है। उस सर्वेक्षण में ट्रस की 42 वर्षीय ब्रिटेन के पूर्व मंत्री पर 24 अंकों की बढ़त दिखाई गई थी। ताजा सर्वे में टोरी के सदस्यों से दोनों फाइनलिस्टों और उनकी नीति योजनाओं पर उनके विचार जाने गए थे। जवाबों में सामने आया कि अधिकांश मसलों पर सदस्यों ने सुनक का समर्थन किया।

द टाइम्स न्यूजपेपर ने सुनक के प्रचार में जुटे एक सूत्र के हवाले से कहा कि सर्वे में दिखाया गया था कि ट्रस बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन सच में ऐसा नहीं है। वे (सुनक) जहां भी जाते हैं, उन्हें अच्छा समर्थन मिल रहा है। अभी भी बहुत सारे लोग समर्थन के लिए मंथन में लगे हैं।

 

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