आत्ममंथन के लिए मिले जनादेश का सम्मान तो होना ही चाहिए

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लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम ने भाजपा के लिए दिया संदेश

धैर्य और आत्म मूल्यांकन पार्टी को करेगा अपार ऊर्जा से लैस

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


देश में लोकतंत्र के महापर्व लोकसभा चुनाव 2024 का समापन हो चुका है। परिणाम का विश्लेषण अलग अलग सियासी दलों द्वारा अलग अलग अंदाज में किया जा रहा है। जहां तक भाजपा की बात है निश्चित तौर पर परिणाम उम्मीद के अनुरूप नहीं आ पाए हैं। लेकिन भाजपा को यह बात समझना चाहिए कि लोकसभा चुनाव 2024 का जनादेश आत्ममंथन के तत्व को संपोषित करता दिख रहा है। भाजपा अगर जनादेश के इस संकेत को समझ कर भविष्य के सफर पर चलती है तो निश्चित तौर पर उसका राजनीतिक भविष्य उज्जवल होगा।

देश के 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव 15 मार्च से लेकर 4 जून 2024 के बीच संपन्न हो चुके है। सात चरणों में हुए 543 क्षेत्रों के लिए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी दल 240 सीटों के साथ पहले स्थान पर है। लेकिन उसे अपने दम पर जादुई 272 के बहुमत का ऑकड़ा नहीं मिला है। भाजपा को अपने गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मित्रों पर निर्भर होकर ही अगले पांच वर्ष तक सरकार चलानी होगी।

इस गठबंधन के मुख्य घटक आंध्र प्रदेश में प्रचंड विजयी प्राप्त तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू है। वहीं बिहार में 12 सीटें जीतकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है। जिन्होंने पहले भी एनडीए के साथ केन्द्र में रहकर सरकार चलाई है। चंद्रबाबू नायडू का भी भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार चलाने का लंबा अनुभव है। ज्ञात हो कि 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में चंद्रबाबू नायडू ने मुख्य भूमिका निभाई थी और उनका ही सांसद लोकसभा अध्यक्ष बना था।

भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री के प्रमुख दावेदार नरेंद्र मोदी की कार्यशैली में अब बदलाव देखने को मिलेगा। क्योंकि जहां उन्होंने दो बार से अपने पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार चलाई है, कोई भी निर्णय को बिना रोक-टोक, बिना किसी दबाव के लागू किया है अब उन्हें बार-बार अपने सहयोगियों से इस पर राय-सहमति बनाने की आवश्यकता पड़ेगी। लेकिन यह चुनाव एक तरह से उन्हें झटका भी दिया है कि आप अपनी बातों पर थोड़ा धैर्य रखें। आप क्या बोलते हैं, क्या समझते हैं इस पर भी ध्यान रखें।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के वोटरों में इस चुनाव को लेकर अरुचि देखी गई क्योंकि उनका यह मानना था कि मोदी के मुकाबले कोई नहीं है। वोट देकर बहुत ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला है। कार्यकर्ताओं ने पूरे मनोयोग से कार्य नहीं किया। पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी हुई।

कार्यकर्ता यह मानते रहे हैं कि मोदी का कार्य और ‘अबकी बार 400 के पार’ के नारे से सब किसी का कल्याण हो जाएगा। संघ का भी पूर्ण समर्पण सभी क्षेत्रों में नहीं मिला, इसके कई कारण भी हो सकते है। आपसी सिरफुटौवल का विशेष जोर है। भाजपा के संगठन में सुदृढ़ीकरण के लिए पिछले कुछ समय से कार्य नहीं हो रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली में बैठी सरकार अब मॉस वोट बैंक वाली सरकार हो गई है, कैडर को वह भूलते जा रहे है।

पूर्ण हिंदुत्व का मुद्दा काम नहीं आ रहा है क्योंकि हम धर्म से अधिक जाति में बंटे है और सबसे बढ़कर 1000 वर्ष तक जिसकी सैकड़ों पीढ़ियां गुलाम रही हैं उसकी मनोदशा बहुत जल्दी बदलने वाली नहीं है।

लोकतंत्र बचाओ,संविधान बचाओ की गूंज में धारा 370, राम मंदिर एवं अनेक कार्यक्रम गुम हो गए। मोदी सरकार तो आएगी लेकिन इसकी संख्या कम होनी चाहिए, ऐसा मन जनता ने बना लिया था। विपक्षी दलों ने यह संदेश जनता में पहुंचने में सफल रहीं की 400 की संख्या इसलिए मांगी जा रही है कि संविधान में संशोधन करके दलितों, पिछड़ों, वंचितों का आरक्षण समाप्त किया जाएगा, लोकतंत्र को खत्म किया जाये। लेकिन आप तो यह चार सौ की संख्या 1984 में इंदिरा गांधी के हत्या के बाद मिली सहानुभूति लहर में कांग्रेस को 414 सीटें मिली थी, उसका रिकॉर्ड तोड़ने के लिए मांग रहे थे, जिसे जनता समझ नहीं पाई और आप समझने में भी असफल रहे।

चुनाव प्रचार की भव्यता, अनावश्यक खर्च आम व्यक्ति के आंखों में खटक गया। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को लेकर हफ्तों तक प्रशासन एवं कार्यकर्ताओं की लगातार कड़ी मेहनत एवं कई क्षेत्रों में प्रशासन की सख्ती ने आम जनता का मोह अवश्य ही भंग किया।

वर्ष 2004 की तरह ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे के बराबर ‘अबकी बार 400 पार की’ हवा भी उत्तर प्रदेश, बंगाल और महाराष्ट्र में निकाल दी गई। दलित, पिछड़ा, यादव और सबसे बढ़कर मुसलमान ने मोदी की नवाचार कार्य, बड़े सुधार पर अगले चुनाव तक अवश्य ही रोक लगा दी है।

अयोध्या की हार भारतीय जनता पार्टी को लगातार परेशान कर रहा है। इस चुनाव का जब भी इतिहास लिखा जाएगा उसमें अयोध्या की बात अवश्य होगी। यह लिखा जाएगा कि अयोध्या में मंदिर निर्माण से हिंदू की जातियां खुश नहीं थी केवल साधु-संत, महात्मा आनंद में थे। अब यह हिंदू कौन है वह इस हार से स्पष्ट हो गया है। भारत की सेकुलर छवि के रूप में बाबरी ढांचा के ध्वंस को लेकर तथाकथित सेकुलर जमात नाराज रही, इसलिए अयोध्या में भाजपा की हार हुई। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अयोध्या को भव्य बनाने में जिस घरों को तोड़ा गया, जमीन का अधिग्रहण किया गया, उन लोगों का मुआवजा नहीं दिया गया, इसका भी रोष जनता में था। इसकी पूर्ति उन्होंने चुनाव में कर दी।

पांच किलो अनाज, जनधन योजना, किसान निधि योजना, शौचालय, मुफ्त राशन, डायरेक्ट खाते में पैसा ट्रांसफर जैसे कार्यक्रम से संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, महंगाई, बेरोजगारी, अग्नि वीर कहीं बड़ा मुद्दा हो गया। दिल्ली में स्थित सरकार के लिए उत्तर प्रदेश के रास्ते से गुजरना होता है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने ऐसा जाल बिछाया जिसमें भाजपा फंस गई और उसे अपने निकलने के लिए एक मात्र भरोसा मोदी का मैजिक रहा, जो सातवें चरण के चुनाव में पूरी तरह से टूट गया। गुटबाजी, क्षेत्रवाद, आपसी कलह ने भाजपा को संगठनिक स्तर पर उत्तर प्रदेश में कमजोर किया।

रोजगार महंगाई,अग्नि वीर जैसे मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी संवेदनशील होकर जनता को समझाने में विफल रही। अब आगे 2024 में ही महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव होने हैं। वर्ष 2025 में दिल्ली और बिहार में भी चुनाव होना है ऐसे में यह देखना होगा कि सरकार कैसे आगे बढ़ती है? एक बार फिर 10 साल के बाद गठबंधन की सरकार केंद्र में लौट आई है।

लेकिन भाजपा के लिए सुखद पहलू यह है कि उसने गुजरात,दिल्ली हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सबसे बढ़कर मध्य प्रदेश में अपेक्षा से अधिक सफलता मिली है। सबसे बड़ी अप्रत्याशित जीत केरल में 1952 के बाद पार्टी को मिली है, उसका पहली बार खाता खुला है और त्रिशूर सीट को जीता है। इस घुप अंधेरे में आशा की किरण अवश्य जगी है। पहली बार भगवान जगन्नाथ की भूमि उड़ीसा में कमल खिला है।

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को मंथन करना होगा। इस निराशा से उबरना होगा। संघ को साथ में लेकर चलना होगा। जनता के मन मिजाज को पहचानना होगा। विपक्षी दलों के शतरंज चाल और उनकी एकता को समझने के लिए लगातार प्रयास करना होगा। संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान देना होगा। सोशल मीडिया प्लेटफार्म को और सुदृढ करने की आवश्यकता है।

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