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श्रीहरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी- शालिग्राम का विवाहोत्सव मनाया गया

श्रीहरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी- शालिग्राम का विवाहोत्सव मनाया गया

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श्रीनारद मीडिया, उतम पाठक, दारौंदा, सीवान (बिहार):

सिवान जिला के सभी प्रखंडों सहित दारौंदा प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में 12 नम्बर मंगलवार को श्रीहरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी- शालिग्राम का विवाहोत्सव परम्परागत तरीके से मनाया गया।

हरि प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी का व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती हैं।

इस दिन लोंग उपवास रहकर सृष्टि के मालिक एवं भरण पोषण करने वाले श्रीहरि विष्णु को जगाने के बाद उनकी षोडशोपचार विधि से पूजा कर ऋतुफल सेव,संतरा,केला,सिंघाड़े,गन्ने और मिठाई आदि नैवेद्य अर्पित कर कथा सुनकर आरती की उसके बाद सुथनी और गन्ने प्रसाद के रूप में लिये।

इस दिन महिलाएं आंगन में चौका बनाकर गन्ने के सुंदर मण्डप सजाकर उसके बीच तुलसी वृक्ष और शालिग्राम को आसन पर विराजित किया। वही पंडित श्री गिरिराज मिश्र के द्वारा परम्परा गत रीति रिवाज के अनुसार विधि विधान से विवाह सम्पन्न कराया गया। विवाह के समय कई गीत व भजन हुए।

वही बगौरा के आचार्य श्री जीतेंद्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी व्रत सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से चार महीने यानि चतुर्मास के शयन के पश्चात् कार्तिक शुक्ल एकादशी को श्री विष्णु के योग निंद्रा से जागने के साथ ही अनेक शुभ मांगलिक कार्यों का आरंभ होता हैं।

भगवान शालिग्राम और तुलसी की आराधना से कष्ट दूर होते हैं,धन धान्य में वृद्धि होती हैं और मोक्ष तथा जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।

पद्मपुराण में वर्णित हैं कि इस परम पुण्य एकादशी व्रत के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी दान करते हैं वह सब अक्षय फल दायक होता हैं ।

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