एकात्म मानववाद संबंधी सिद्धांत पर केंद्रित है मोदी सरकार.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के व्यक्तित्व व उनके वैचारिक अवदान को समझने के लिए एकात्म मानववाद के मर्म को समझना होगा। मानवीय जीवन के लिए उन्होंने एक ऐसी वैचारिक संहिता प्रस्तुत की है, जिससे व्यक्तिगत व सामुदायिक जीवन को गुणवत्ता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त होता है। आज सही अर्थों में समाज जीवन को एकात्म मानववाद से निकले मूल्यों व संस्कारों को आत्मसात करना होगा।
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन के प्रत्येक पक्ष फिर चाहे वह विचारक, संपादक, दार्शनिक अथवा अर्थशास्त्री का रहा हो, हर क्षेत्र में उन्होंने सहयोग, समन्वय व सह-अस्तित्व को वरीयता दी। अंत्योदय के जनक पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने वंचित वर्ग के हित संवर्धन के लिए साझा सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के साथ पर्यावरणीय घटकों के मर्यादित उपयोग की सम्यक दृष्टि भी प्रदान की।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अलग-अलग कालखंड में विविध दर्शन व विचारों से समाज का वैचारिक पोषण होता रहा है। प्रत्येक दर्शन जनकल्याण हेतु अपने मार्ग तय करता है, लेकिन पं. दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इसके पीछे उनके विचारों के वैशिष्ट्य के साथ उसकी व्यावहारिक स्वीकार्यता भी है। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने भारतीय मूल्यों पर आधारित जीवनशैली के जरिए समाज, अर्थ, राजनीति, पर्यावरण तमाम क्षेत्रों की समस्याओं का समाधानपरक विकल्प प्रशस्त किया।
आज विश्व जगत हर क्षेत्र में भारत से नेतृत्व की उम्मीद कर रहा है। इसके पीछे एकात्म मानववाद पर आधारित मौजूदा केंद्र सरकार की नीतियां और कार्यशैली है। यहां मैं कुछ बातों का जिक्र करना चाहूंगा, जिनसे प्रत्यक्ष रूप से पं. दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा प्रदत्त दर्शन की अभिव्यक्ति होती है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के यशस्वी नेतृत्व में भारत आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और नस्लभेद समेत तमाम मुद्दों पर दुनिया को राह दिखा रहा है। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भारत आज पिछड़े व विकासशील देशों की आवाज बन चुका है। वहीं देश के वर्तमान नेतृत्व ने विकसित देशों को पर्यावरण अनुकूल नीतियों व हरित अर्थव्यवथा की ओर उन्मुख होने के लिए भी प्रेरित किया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ हो या फिर अन्य वैश्विक मंच सभी विश्व की ज्वलंत समस्याओं के प्रति भारत के दृष्टिकोण में ही समाधान के मार्ग तलाश रहे हैं। यह एकात्म मानववाद की वैश्विक स्वीकार्यता को प्रमाणित करता है। दरअसल, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की हर नीति की आत्मा एकात्म मानववाद है। कोरोना जनित वैश्विक आपदा से लड़ने के लिए साझा सहयोग तंत्र विकसित करने से लेकर आतंकवाद के विरुद्ध पूर्ण असहनशीलता की नीति अपनाकर भारत हर जगह विश्व को एकजुट कर रहा है।
पं. दीनदयालजी उपाध्याय जी का यह स्पष्ट मानना था कि भारत के आर्थिक व सामाजिक उत्थान का मार्ग भारतीयता के दर्शन पर विकसित होना चाहिए। पूंजीवाद और समाजवाद दोनों विचारधाराओं को वह भारत के लिए अनुपयुक्त व अव्यवहारिक मानते थे। यहां मैं कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के उस आह्वान का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने मानव केंद्रित वैश्वीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।
इसके मूल में एकात्म मानववाद का विचार है। यदि हम वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था व उसके द्वारा संचालित अर्थतंत्र की बात करें तो भौतिकवाद व उपभोगवाद उसका प्रमुख चरित्र रहा है। इसके ठीक उलट, राष्ट्र के वैचारिक प्रेरणापुंज पं. दीनदयाल उपाध्याय जी अर्थव्यवस्था की कसौटी को मानव के सर्वांगीण विकास पर परखते हैं। यही वजह है कि देश का हर नागरिक जाति, भाषा, वर्ग, क्षेत्र से ऊपर उठकर एकात्म मानववाद के मूल्यों से अपनी निकटता स्थापित करता है।
एकात्म मानववाद पर समग्रता से चिंतन करने पर हमें ज्ञात होता है कि यह भारत रूपी राष्ट्र के मूल स्वभाव को अनुप्रमाणित करता है। एक ऐसा भारत जो ज्ञान आधारित उपक्रमों से वैश्विक मानचित्र को विश्वगुरू के रूप में ऊर्वर करता रहा है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी देश की एकता और अखंडता के लिए सदैव समर्पित रहे है। उनका मानता था कि राष्ट्र की निर्धनता और अशिक्षा को दूर किए बिना वास्तविक उन्नति संभव नहीं है। निर्धन और अशिक्षित लोगों की उन्नति के लिए उन्होंने अंत्योदय की संकल्पना का सुझाव दिया। उनका कहना था “अनपढ़ और मैले-कुचले लोग हमारे नारायण हैं। हमें इनकी पूजा करनी है यह हमारा सामाजिक दायित्व और धर्म है।’’ मुझे गर्व है कि विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के घटक के रूप में भारतीय जनता पार्टी के लक्ष्यावधि कार्यकर्ता अंत्योदय के इस पुनीत यज्ञ में सेवा व समर्पण की आहुति दे रहे हैं।
सनद रहे, किसी भी व्यक्ति या समाज के गुणात्मक उत्थान के लिए आर्थिक और सामाजिक पक्ष ही नहीं उसका सर्वांगीण विकास अनिवार्यता है। श्रद्धेय पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का मत था कि राष्ट्र की निर्धनता और अशिक्षा को दूर किए बिना गुणात्मक उन्नति संभव नहीं है। ख़ास बात यह है कि अंत्योदय के वैचारिक प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन मात्र लेखन व उनके चिंतन तक सीमित नहीं था। संगठन के कार्य से वह जब भी प्रवास के लिए जाते तो वरीयता के आधार पर समाज में अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के यहाँ ही ठहरते थे। राष्ट्र के वैचारिक उपासक श्रद्धेय पं. दीनदयाल उपाध्याय जी को उनकी जयंती के अवसर पर नमन करते हुए आइए हम सभी सक्षम और सशक्त भारत के निर्माण का संकल्प लें।
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