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चीन पर नकेल का नाम है 'क्वाड',कैसे? - श्रीनारद मीडिया

चीन पर नकेल का नाम है ‘क्वाड’,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिका में भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों के बीच ऐतिहासिक मुलाकात और बातचीत हुई। ये बातचीत ‘क्वाड’ समिट के तहत हुई। लेकिन ये क्वाड आखिर है क्या? भारत को क्वाड से क्या फायदा है और चीन को आखिर क्वाड से इतना क्यों डर लगता है और कैसे चीन को क्वाड के जरिए हिंद महासागर में आने से रोका जा सकता है? आखिर 17 साल पहले चीन के खिलाफ ये चार बड़े देश क्य़ों साथ आए? आइए जानते हैं-

क्या है क्वाड?

क्वाड(QUAD) यानी क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलाग(Quadrilateral Security Dialogue)। 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया साथ आए थे। इसे ‘सुनामी कोर ग्रुप’ नाम दिया गया था। उस समय इस गठजोड़ ने राहत एवं बचाव कार्यो को गति देने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि तात्कालिक उद्देश्य पूरा होने के बाद यह समूह बिखर गया। 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री एबी शिंजो ने क्वाड के गठन का विचार दिया था। हालांकि आस्ट्रेलिया ने समर्थन नहीं किया और यह गठजोड़ नहीं बन पाया। 2017 में आसियान सम्मेलन से ठीक पहले आस्ट्रेलिया के विचार बदले और क्वाड अस्तित्व में आया।

चीन पर लगाम

बात चाहे हिंद-प्रशांत क्षेत्र की हो या उससे इतर की, दुनिया के लोकतांत्रिक देश क्वाड को चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर नकेल की तरह देख रहे हैं। माना जाता है कि चीन के समानांतर एक आर्थिक व सामरिक गठजोड़ उसे चुनौती दे सकता है। अभी क्वाड एक अस्थायी समूह है, जिसे आर्थिक व सुरक्षा आधारित अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में ढाला जा सकता है। फिलहाल आत्मनिर्भरता की नीति पर बढ़ते हुए भारत ने दिखाया है कि वह चीन का सामना करने के लिए तैयार है।

फसाद की जड़

हिंदू-प्रशांत क्षेत्र से अमेरिका के आर्थिक हित जुड़े हैं। यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में 1.9 लाख करोड़ डालर (करीब 140 लाख करोड़ रुपये) का अमेरिकी कारोबार दो महासागरों और कई महाद्वीपों को छूने वाले इस क्षेत्र से होकर गुजरा था। दुनिया का 42 फीसद निर्यात और 38 फीसद आयात यहीं से होकर जाता है। इस क्षेत्र की यथास्थिति को बदलने की चीन की कोशिश अमेरिका के लिए चिंता की बात है। दूसरी ओर, जिस तरह से चीन लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन कर रहा है, उसने अन्य क्वाड देशों की चिंता भी बढ़ाई है।

गठबंधन के आयाम

दुनियाभर में हालात तेजी से बदल रहे हैं। इस समय 5जी और 6जी तकनीकों को भी ध्यान में रखकर कदम बढ़ाने की जरूरत है। चीन का सामना करना है तो टेक्नोलाजी के क्षेत्र में उसकी दिग्गज कंपनियों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसी तरह भारत और जापान के बीच का रणनीतिक गठजोड़ दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है। क्वाड देश नौसना और अन्य मामलों में अपनी विशेषज्ञता का भी लाभ ले सकते हैं। इससे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है।

साझी परेशानी बना चीन

क्वाड के सभी सदस्य देशों के साथ चीन के संबंध तनावपूर्ण हैं। अमेरिका के साथ चीन की तनातनी जगजाहिर है। वहीं कोरोना महामारी के स्रोत की जांच की मांग के बाद से आस्ट्रेलिया भी चीन के आर्थिक प्रतिबंध ङोल रहा है। भारत और जापान का चीन के साथ सीमाई विवाद है।

भारत के पास मौका

अमेरिका व चीन के बीच ट्रेड वार, कोरोना के मामले में चीन का दुनिया को देरी से बताना और वुहान, हांगकांग, शिनजियांग और गलवन घाटी मामलों में चीन की आक्रामक नीति ने भारत के समक्ष रास्ते खोल दिए हैं। भारत अपनी नीतियों में बदलाव कर व्यापक निवेश हासिल कर सकता है। इससे रोजगार की स्थिति सुधरेगी और क्वाड में भारत की अहमियत भी बढ़ेगी। क्वाड के सदस्य देश संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हुए और साइबर सिक्योरिटी सिस्टम को मजबूत कर डिफेंस डिप्लोमेसी बढ़ा सकते हैं। क्वाड समान विचारधारा वाली ऐसी लोकतांत्रिक शक्तियों का समूह है, जो द्विध्रुवीय दुनिया की विचारधारा को खत्म करने और बहुपक्षीय व्यवस्था को बनाने का माध्यम बनेगा।

क्वाड से अमेरिका के हित

क्वाड के अन्य देशों के साथ गठजोड़ अमेरिका के लिए स्वाभाविक है। आस्ट्रेलिया और जापान से उसकी संधियां हैं और भारत उसका महत्वपूर्ण रणनीतिक साङोदार है। डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने इन देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया और अब बाइडन प्रशासन भी क्वाड पर आगे बढ़ रहा है।

जापान के लिए भी है बहुत कुछ

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री एबी शिंजो खुला एवं मुक्त हंिदू-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने की दिशा में क्वाड के महत्व को स्वीकारते थे। उन्होंने ट्रंप प्रशासन को इसके लिए तैयार करने में भूमिका निभाई थी। जापान दुनियाभर से अपने कारोबार के लिए समुद्री रास्ते पर बहुत हद तक निर्भर है। जापान के रक्षा बलों ने आस्ट्रेलिया और भारत के साथ संबंधों को मजबूत किया है। साथ ही, उसने पूरे क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग, ट्रेड और इन्फ्रा के विकास पर निवेश किया है।

इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता क्वाड के अन्य सदस्य देशों की ही तरह जापान के लिए भी चिंता का कारण है। जापान इस क्षेत्र में चीन की आर्थिक गतिविधियों पर भी नजर रखे हुए है। चीन के बढ़ती दखल को रोकने के लिए वह दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को सहयोग व कारोबार का नया विकल्प देना चाहता है।

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