भूमि, शिक्षा और शासन का नवीन कलेवर बिहार को कर रहा ऊर्जस्वित!

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बिहार सदा रहा संभावनाओं से भरपूर, बस थोड़े से सार्थक प्रयास लौटा सकते बिहार का प्राचीन गौरव

बिहार दिवस के संदर्भ में विशेष आलेख श्रृंखला
भाग 02
✍️गणेश दत्त पाठक, स्वतंत्र टिप्पणीकार :

श्रीनारद मीडिया :

बिहार मेधा की धरती रही है। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थली बिहार सदा से संभावनाओं से परिपूर्ण रही है प्रशासनिक, राजनीतिक स्तर पर कुछ कमियों ने बिहार की छवि पर नकारात्मक असर डाला है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों के प्रयास उम्मीद जगाते हैं कि भविष्य में बिहार एक नए स्वरूप में प्रकट हो सकता है। बस आवश्यकता थोड़े से सार्थक प्रयासों में समन्वय की है।

भूमि विवाद से मिलेगी निजात

भूमि बिहार में आन बान शान की आधारशिला रही है। 1910 के सर्वे के बाद फिर कभी भू सर्वेक्षण नहीं हुआ था। तबसे कई पीढ़ियां गुजर गई और भूमि विवाद बिहार में कानून व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गई। हाल में बिहार सरकार द्वारा शुरू किए गए भू सर्वेक्षण का काम 20 जिलों में तकरीबन पूरा हो गया है और 18 जिलों में प्रक्रियाएं शुरू हो गई है। प्रत्येक जमीन का नया खतियान बनाया जा रहा है। भू सर्वेक्षण के लिए अत्याधुनिक मशीनों का उपयोग किया जा रहा है। इंच इंच जमीन के मालिकाना हक को स्पष्ट किया जा रहा है। जमीन के दाखिल खारिज की प्रक्रिया को भी आसान बनाया गया हैं। जमीन के मामले में अंचल कर्मियों के मनमानी को सीमित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। भू अभिलेखों का डिजिटलीकरण भविष्य के लिए बेहतर व्यवस्थाओं का सृजन कर रहा है।

बिहार बोर्ड ने कायम किया मिसाल

नालंदा विश्वविद्यालय वाला बिहार शिक्षा का महान केंद्र रहा है। कुछ वर्षों पहले बिहार में हाईस्कूल और इंटर स्तर की पढ़ाई तथा परीक्षाएं मजाक बन चुकी थी। चीट पुर्जे और परीक्षा के दौरान स्कूल की खिड़कियों पर अभिभावकों की भीड़ बिहार की पहचान बन चुकी थी। लेकिन एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी श्री आनंद किशोर के नेतृत्व में बिहार बोर्ड ने क्रांतिकारी पहल करते हुए बोर्ड परीक्षाओं के पूरे कलेवर को सुधार लिया है। कभी लेट लतीफी के लिए ख्यात बिहार बोर्ड आज देश में सबसे पहले परीक्षा लेकर सबसे पहले रिजल्ट भी घोषित कर रहा है तो परीक्षा भी तकनीकी कलेवर तले कदाचार मुक्त हो रही है। परीक्षाओं के समय पर होने से छात्रों को बहुत लाभ मिल रहा है। लेकिन विश्वविद्यालय स्तर पर लेट लतीफी की स्थिति अभी बरकरार हैं। जिस पर ध्यान देना होगा। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता की सुधार के लिए बुनियादी ढांचा के विकास का प्रयास किया गया है। परंतु शिक्षक छात्र संबंध में परिवर्तन के लिए अभी काफी कुछ करना होगा।

ई प्रशासन से जगी आस

सुशासन बिहार के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। आरटीपीएस काउंटर, e गवर्नेस, लोक सेवाओं का अधिकार गारंटी अधिनियम, लोक शिकायत निवारण अधिनियम, बिहार पुलिस के आधुनिकीकरण के प्रयास संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक स्तर पर तो कुछ असर करते दिख रहे हैं। परंतु प्रशासन के व्यवहारतामक स्तर पर अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है।

फिर भी जमीन, शिक्षा और प्रशासन के संबंध में किए गए सुधार बिहार के लिए एक उज्जवल भविष्य के तरफ संकेत कर रहे हैं। परंतु भ्रष्टचार का दलदल, सियासी दांव पेच, जातिवाद आदि बिहार में विकास को चुनौती देते दिख रहे हैं।

फिर भी संभावनाओं का बिहार अपने ऊर्जस्वित, तरंगित और प्रेरित कलेवर को जाहिर करता दिख रहा है। प्रयास समर्पित और संवेदनशील तरीके से हो तो निश्चित तौर जनभागीदारी से स्थिति में बदलाव आ सकता है। अपने स्वर्णिम अतीत से ऊर्जस्वित बिहार प्रेरित होकर एक नया मुकाम हासिल कर सकता है।
जय बिहार?

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